सूर्य नमस्कार या बाध्यता ?
प्रीति सोनी
देश में आजकल बयानों की बहार सी आई हुई है। आए दिन कोई न कोई नेता ,सांसद या अन्य महापुरूष विवादित बयान देकर चर्चाओं का बाजार गर्म कर देता है।ताजा मामला है वाराणसी का, जहां मनाए जा रहे रजत राजित सिंहासन महोत्सव के तीसरे और अंतिम दिन समापन में शामिल होने आए भाजपा सांसद, महंत आदित्यनाथ ने एक और विवादित बयान ये कहकर दे दिया कि, जो लोग सूर्य नमस्कार को नहीं मानते, उन्हें समुद्र में डूब जाना चाहिए ..
साथ ही उनका ये भी कहना था कि एक संकीर्ण मानसिकता के लोग साम्प्रदायिकता के दायरे में कैद करने वाले लोग भारत की ऋषि परम्परा का अपमान कर रहे है, सूर्य नमस्कार को जो लोग साम्प्रदायिक कह रहे है। बयान के आधार पर आदित्यनाथ का नजरिया एकतरफा हो सकता है, लेकिन वे किसी को सूर्य नमस्कार करने के लिए बाध्य नहीं कर सकते। ये बात बहुत अच्छी है कि 21 जून को विश्व के 163 देशों में से 43 मुस्लिम देश भी योग दिवस को मनाऐंगे। ये उनका अपना स्वतंत्र निर्णय है, कि वे योग दिवस मनाएं और सूर्य नमस्कार को मानें या न मानें।
जहां तक बात हमारे देश की है, तो यहां प्रत्येक व्यक्ति को यदि अपने अनुसार धर्म चुनने और उसका अनुसरण करने की स्वतंत्रता है, तो सूर्य नमस्कार करने या न करने का उसका निर्णय भी अपने आप में स्वतंत्र है। अगर वो सूर्य नमस्कार को मानता है तो माने, न मानता हो तो बेशक न माने। उसके लिए आखिर समुद्र में डूबने की नौबत क्यों आए भला.....
प्राकृतिक तौर पर देखें तो निश्चित रूप से सूर्य का प्रकाश संसार के प्रत्येक व्यक्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, और उससे मिलने वाली उर्जा का उपयोग हर इंसान करता है, लेकिन इसके लिए सूर्य या प्रकृति ने कभी कोई कीमत नही मांगी, तो उसके पक्ष में मांगने या थोपने की किसी मनुष्य की क्या बिसात ....कोई भी इंसान, चाहे वह किसी भी धर्म का हो अगर सांप्रदायिकता के चश्मे को अलग कर देखें, तो व्यक्तिगत तौर पर किसी भी विषय को लेकर उसकी अपनी मान्यताऐं और विश्वास है, सो सूर्य नमस्कार को लेकर भी हो सकती है।वर्तमान में जहां देश के कई लोग जन्म देने वाली माता और जीवन बनाने वाले पिता तक को सम्मान देना उचित नही समझते, वहां आप तो बात सूर्य नमस्कार की बात कर रहे हैं ।