रविवार, 21 अप्रैल 2024
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मदर्स डे विशेष : मां पर 10 खास कविताएं

मदर्स डे विशेष : मां पर 10 खास कविताएं। Happy Mothers Day Poems - 10 short mothers day poems
स्नेह का झरना है मां
 
ममता का सागर है मां
स्नेह का झरना है मां
लोरी के मीठे बोल गाकर
सपनो को जगाती है मां
त्याग की मूर्ति है मां
समय साक्षी है इसका
इतिहास नया रचती है मां
-आशा वडनेरे
 
मां, तुमसे ही सब सीखा
 
असहाय न पाया कभी
सिर उठाए तुम्हारा जीना देखा
आशा में रख विश्वास
असफलता को गले लगाना देखा
सतत् कर्म, पूजा से बढ़कर
तुमसे ही पाठ पढ़ा
सम्हालो कि ‘जीवन है सौग़ात-
मां ! तुमसे ही यह सीखा।
-चंद्रकला जैन
 
 
संपूर्ण सृष्टि मां का पर्याय
 
मां पर लिखने के लिए
मैंने ज्यों ही क़लम उठाई
प्रथम पूज्य आराध्य गजानन
तुम्हारी ही याद आई
ज्यों तुमने संपूर्ण सृष्टि को
मां का पर्याय बताया
इससे बेहतर मां को आज तक
कोई समझ न पाया।
-विनीता मोटलानी
 
 
मां, मैं ख़ुश होती हूं
 
मां मैं ख़ुश होती हूं
जब बनाती हूं बची हुई रोटियां का
रोटी पित्जा,
या नहीं करती अलग से आराम
जब मानती हूं कार्यान्तरण ही है विश्राम
या सुनती हूं सबको जब स्वीकारती हूं
ऐसा ही नहीं होता है वैसा भी हो सकता है
मां मैं ख़ुश होती हूं कि आपसे
वंशानुगत और सीखी अच्छाइयों से
मैं और अच्छी इंसान होती जाती हूं।
-डॉ. किसलय पंचोली
 
 
शाश्वत प्रेम मां का
 
शाश्वत है प्रेम मां का
कोई नहीं है जोड़ उसका
क्या लिखें शब्द नहीं हैं
इतना है, आदर जिसका
सदैव बना रहे
बच्चों के सर हाथ उसका
बस यही है ईश से
मेरी आज प्रार्थना।
-बकुला पारेख
 
गुनगुनी धूप होती है मां
 
सर्द हवाओं के बीच
गुनगुनी धूप होती है
डूब रही मन की नौका
सबल पतवार होती है
पतझड़ में जो मधुमास खिला दे
वह जीवनदायिनी मां होती है।
-निशा विलास देशपांडे

 
मां ने आशीष भिजवाया
 
गुलदावदी की ख़ुशबू में
मां का एहसास नज़र आया
मंद-मंद हरियाली हवाओं में
मां का आंचल लहराया
माना आज नहीं मां संसार में
सृष्टि शृंगार की डोली में
मां ने आशीष भिजवाया।
-रश्मि लोणकर
 
मां साथ थीं
 
मेरी ख़ुशियों को कभी
ग़म की नज़र नहीं लगी
मां साथ थीं
दुनिया की तपिश
छाँह सी लगी।
-अमर खनूजा चड्ढा

 
शेष रह जाती है मां
 
केवल बच्चा जन्म नहीं लेता,
जन्म ले लेती है एक मां भी
उसके पहले तो वह होती है,
लड़की, बेटी, बहू, पत्नी, सखी
और न जाने क्या-क्या हो जाती है मां
गोद में लेते ही नवजात को
धरणी की धीर और प्रकृति सी उदारता
जाने कहां से आ जाती है उसमें
अल्हड़ता बदल जाती है गरिमा में
सब कुछ सिमट जाता है किलकारी में
बिसूर जाता है अपना होना
शेष रह जाती है केवल मां
और क्या इसके बाद कुछ होना शेष रहता है?
-डॉ. गरिमा संजय दुबे

 
मां तेरे आंचल में
 
मैं लड़ूंगी, झगड़ूंगी तुझसे
कभी-कभी तेरी कोई
बात भी नहीं मानूंगी
पर जब थक जाऊंगी
इस दुनिया से लड़ते-लड़ते
बस तेरे ही आंचल में आ
हौले से छुप जाऊंगी।
-डॉ. दीपा मनीष व्यास
 
साभार- मेरे पास मां है