मां, मैं तुम्हारे सी दिखने लगी हूं
- निहारिका सिंह
मां, अच्छा लगता है ये सुनकर किमैं अब तुम्हारे सी दिखने लगी हूं।पहले लगा क्या खुद को खो दिया है?फिर जाना मैं तुमसे अलग थी ही कहां।तुम पृथ्वी सी मेरा ग्रहमैं चंद्रमा सी तुम्हारा उपग्रह,दूर रहकर भी तुम्हारे इर्द-गिर्दतुम्हारी ही सीखों की राह परप्रदक्षिणा करती, निश्चित गति से।मां, तुम जिस सूर्य को अर्घ्य देती होवही सुबह मेरा दरवाजा खटकाता है,तुम जिस पूनम के चांद को पूए चढ़ाती होवही मेरी खीर में अमृत बरसाता है तुम्हारी तुलसी चौरे के अंकुरमेरे आंगन में उग आए हैं,तुम्हारी तरह बातें भूल जाने के गुणमुझमें भी उभर आए हैं तुम्हारी तरह दाल का छौंक लगानेऔर सौंधी रोटियां सेंकने का अभ्यास करतेमां मैं तुम्हारी सी दिखने लगी हूं।