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Written By ND

क्‍योंकि उसका भी है स्‍वाभिमान...

क्‍योंकि उसका भी है स्‍वाभिमान... -
-नूरी खान

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चौंकिए नहीं, जी हाँ, हम बच्चों के ही स्वाभिमान की बात कर रहे हैं। अक्सर अपने बच्चों की तुलना दूसरे बच्चों से करते समय या अपने बच्चों की क्षमताओं को नकारते समय हम नहीं सोचते कि अनजाने में ही हम उनके नन्हे दिल को ठेस पहुँचा रहे हैं। हम सहज में ही ये हरकत कर जाते हैं, पर जाने-अनजाने बच्चे के नैसर्गिक विकास पर रोक लगा देते हैं।

बहुत से बच्चे ये जानते हैं कि उनके माता-पिता उन्हें प्यार करते हैं, लेकिन उन्हें इस बात का भरोसा नहीं होता कि वे उन्हें सम्मान की दृष्टि से भी देखते हैं। एक बच्चे को यह पता चल जाता है कि आप उसके लिए जान तक दे सकते हैं। लेकिन आपके मन में उसे पूर्ण रूप से स्वीकार करने के प्रति जो संदेह है, उसे भी वे भाँप लेते हैं। अक्सर उसके कार्यों के प्रति हमारी घबराहट उसकी आत्माभिमान की भावना को विकसित नहीं होने देती। ऐसे अनेक बच्चे हैं जो अपनों के बीच ही विषमता झेल रहे होते हैं। हर बच्चे को योग्य नहीं समझा जाता,न स्वीकार ही किया जाता है। हमारी सारी प्रशंसा उन बच्चों तक सीमित होती है जिनमें रूप और बुद्धिचातुर्य जन्मजात मौजूद होता है। यह एक दोषपूर्ण व्यवस्था है, जो सामान्य बच्चों में हीन भावना भरकर उन्हें कमजोर बनाती है।

माता-पिता होने के नाते आप अपने बच्चों के बारे में बेहतर जानते हैं। उनमें सुदृढ़ आत्मगौरव और मनोबल का विकास कैसे हो, यही आपके बच्चे के लिए आपकी प्राथमिकता होनी चाहिए और यही आपके द्वारा बच्चे को दी गई जीवन की सबसे अच्छी सौगात होगी, जो उसे औरों से श्रेष्ठ बनाएगी।

आइए देखें कुछ युक्तियाँ जिनसे आप अपने नौनिहालों का मनोबल बढ़ाकर उनमें आत्मसम्मान और आत्मगौरव की भावना पैदा कर मुश्किल राहों का भी मजबूत राही बना सकते हैं।

स्वयं का मूल्यांकन कीजिए

क्या आप स्वयं इस बात से परेशान हैं कि आपका बच्चा साधारण-सा है? तो इस भावना को अपने अंदर से निकालिए, क्योंकि बच्चा वही धारणा बनाता है जो आपकी नजरों से झलकती है। वह अपना महत्व तभी स्वीकारता है जब वह माता-पिता को स्वयं के प्रति आश्वस्त पाता है। बच्चा अव्यक्त भावों को भी समझता है। अतः अपने बच्चों के प्रति अपनी सोच दृढ़ कीजिए। वह जो कर रहा है या करना चाहता है, उसे स्वयं करने दें। उसके प्रति सहज और आश्वस्त बने रहें। मेहमानों से बात करते वक्त कुछ गलत हो जाने पर उसे उलाहना न दें या शर्मिन्दगी न महसूस करें। इससे बच्चा अपने प्रति हीन और दुर्भावना पैदा कर सकता है।

बच्चों को अपनी कमी पूरी करने के गुण सिखाए

माता-पिता होने के नाते आपका यह कर्तव्य है कि आप बच्चों के विश्वसनीय और प्रिय साथी बनें। एक ऐसा मजबूत सहारा बनें जिसकी मदद से वे बाधाओं पर विजय प्राप्त कर सकें। बच्चों की क्षमताओं का आकलन कर उसके कौशल को परखें, उसे प्रोत्साहित करें और तब तक उसका मार्गदर्शन करें, जब तक वह अपने कार्य को पूर्ण न कर ले। उसमें प्रतिस्पर्धा का भाव जगाएँ। गुणों की पूजा करने वाली इस दुनिया के मैदान में आपके बच्चे को उतरना है तो यथासंभव उसे दूसरों से आगे निकलने में मदद करें। बच्चों को प्रतिस्पर्धा के साथ जीवन के मानवीय गुणों की सीख भी दें, ताकि भविष्य में जीवन-मूल्यों के प्रति वे निष्ठावान बने रहें और सफल जीवन-यापन करें।

अनुशासन और सम्मान के नाम पर यह न करें

अनुशासन हर बच्चे के जीवन में जरूरी है, ताकि आगे भी वह अपने जीवन को सुचारु ढंग से रख सके। लेकिन अनुशासन का अर्थ यह नहीं कि अवज्ञा करने पर आप बच्चे को दंडस्वरूप पिटाई लगाएँ। पिटाई बच्चे के हौसले को तोड़ देती है। यदि आप शारीरिक दंड के बहाने अपना गुस्सा भी उस पर उतारते हैं तो यह अनुचित है। किशोरवय बच्चे तो इसे अपने आत्मसम्मान पर सबसे बड़ी चोट समझते हैं। ऐसे बच्चे कुंठाग्रस्त हो, अनुशासनहीन बन उग्र रूप धारण कर लेते हैं, जो आगे चलकर परिवार के लिए बड़ी समस्या का रूप भी ले सकता है।

अतः अपने बच्चों को जानिए, समझिए, उन्हें सम्मान दीजिए ताकि वे आपका और दूसरों का सम्मान करने में कोताही न बरतें।

पढ़ाई पर नजर रखें

महज स्कूल में भर्ती करा देने व अच्छे शिक्षक का प्रबंध कर ट्यूशन लगा देने से ही उसकी शिक्षा के प्रति आपकी जिम्मेदारी पूर्ण नहीं होती। ज्यादा नहीं तो सिर्फ 15 या 20 मिनट ही अपने व्यस्ततम समय में से उसे दें। उससे जानें उसने स्कूल में क्या किया? क्या पढ़ाया। किस विषय में उसे रुचि है, कौन-सा विषय कमजोर है। जानने की कोशिश करें कि कहीं कमजोर विषय को वह जान-बूझकर कम समय तो नहीं दे रहा? उससे जाने उसके शिक्षक कैसे हैं? सहपाठी मित्रों से वह कैसा व्यवहार रखता है? उसे अपने शिक्षक और मित्रों से कैसा व्यवहार करना चाहिए, इसका ज्ञान देते-लेते रहना चाहिए। इससे बच्चे और आपके मध्य सामंजस्य बना रहेगा और बच्चों को लगेगा, माता-पिता हम पर ध्यान ही नहीं देते वरन हमारे प्रति पूर्ण रूप से जागरुक और समर्पित हैं।

अत्यधिक संरक्षण भी न दें, जिससे वह आपके बिना एक कदम भी न चल सके। अपनी योग्यता के अनुसार उसे उसके स्वयं के कार्य करने दें, क्योंकि कई बार अत्यधिक संरक्षणशील अभिभावक बच्चे की सामान्य प्रगति भी प्रभावित करते हैं।

बच्चों के आत्माभिमान की प्रगति में माता-पिता की दिलचस्पी महत्वपूर्ण होती है। इन्हीं कुछ बातों को ध्यान में रख आप बच्चे को सही लक्ष्य की ओर प्रेरित कर पाएँगे और तभी वह अपना मस्तक, चाहे छोटा या बड़ा, पूरे विश्वास और निडरता के साथ उठाकर चलेग