महावीर जन्म कल्याणक : एक नजर में...
भगवान महावीर के जन्मकल्याणक पर लें अहिंसा का संकल्प
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आई. एम. पहाड़िया
जैनियों के चौबीसवें और अंतिम तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी के जन्मदिवस चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के दिन, महावीर जन्म कल्याणक मनाया जाता है।
आज से 2611 वर्ष पूर्व मगध की राजधानी वैशाली (बिहार प्रांत) में राजा सिद्धार्थ का राज्य शासन था। उन दिनों मचे हुए कर्म-काण्डों, पशु एवं नर बलि की वजह से साथ ही हिंसा की अधिकता से चारों ओर त्राहि-त्राहि मची हुई थी। समस्त राज्य की प्रजा, किसी महापुरुष (तीर्थंकर) के जन्म की राह देख रही थी, उन्हीं दिनों रानी त्रिशला ने रात्री के अंतिम प्रहर में अत्यंत मनभावना एवं सुहावने स्वप्न देखे।
सुबह राजा सिद्धार्थ ने उसका अर्थ पूछवाया और उन्हें खबर दी गई कि उनके यहां तीर्थंकर का जन्म होने वाला है। वैसा ही हुआ, उन्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई उसकी नाम 'वर्धमान' रखा गया। कालांतर में वर्धमान ने काफी लंबे समय तक विश्व कल्याण के लिए तप किए इसलिए उनका नाम 'महावीर' पड़ गया।
प्रायः महावीर महावीर जन्म कल्याणक माह अप्रैल में आता है। यह दिन जैनियों के दोनों सम्प्रदाय (श्वेताम्बर एवं दिगम्बर) के लिए किसी उत्सव से कम नहीं होता है। कई दिनों पूर्व से इसकी तैयारियां प्रारंभ हो जाती हैं।
इस पर्व पर सुबह प्रभात फेरी निकाली जाती है। जिसमें विभिन्न स्थलों से पधारे जैनी, महिला संगठन, जैन सोश्यल ग्रुप संस्थाएं, भजन मण्डलियां भाग लेती हैं, भगवान महावीर के जीवन को चित्रित करती झांकियां जुलूस का मुख्य आकर्षण होती हैं।
अंत में जुलूस अपने निश्चित स्थान पर पहुंचकर धर्मसभा में परिवर्तित हो जाता है। जहां भगवान महावीर स्वामी के किए गए उपदेशों का वाचन होता है।
सभी जैनी मंदिर, तीर्थों, प्रतिष्ठानों पर विद्युत सज्जा की जाती है जो मुख्य आकर्षण का केंद्र रहती है। इस महान पर्व पर हमारा संकल्प सामाजिकता की भावना, प्रेम, अहिंसा, एकता और अमन को बढ़ाने का होना चाहिए।