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100 कौरव और 5 पांडवों की ये रोचक बातें आप शायद ही जानते होंगे

100 कौरव और 5 पांडवों की ये रोचक बातें आप शायद ही जानते होंगे | kaurav pandav katha
महाभारत ग्रंथ विचित्र और रोचक बातों से भरा है। बहुत कम लोग ही इस ग्रंथ की रोचक बातों को जानते हैं। आओ यहां जानते हैं कौरव और पांडवों से जुड़ी कुछ रोचक बातें।
 
 
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मान्यता अनुसार महाभारत की सबसे बड़ी बात यह कि कौरव और पांडव कुरु वंश के नहीं थे। भीष्म पितामह को ही अंतिम कौरव माना जाता था। कौरव महाभारत में हस्तिनापुर नरेश धृतराष्ट्र और गांधारी के पुत्र थे। ये संख्या में 100 थे। पांडव भी हस्तिनापुर के पूर्व नरेश पाण्डु के पुत्र थे। धृतराष्ट्र के बड़े भाई पाण्डु थे। पाण्डु के वन चले जाने के बाद धृतराष्ट्र को सिंहासन मिला। लेकिन सत्य यह है कि कौरव न तो धृतराष्ट्र के पुत्र और पांडव भी पाण्डु के पुत्र नहीं थे। एक मात्र युयुत्स धृतराष्ट्र का पुत्र था।
 
 
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कुंती का विवाह राजा पाण्डु से हुआ था। बाल्यावस्था में कुंती ने ऋषि दुर्वासा की सेवा की थी। इसी के फलस्वरूप दुर्वासा ने कुंती को एक मंत्र दिया जिससे वह किसी भी देवता का आह्वान कर उससे पुत्र प्राप्त कर सकती थी। विवाह से पूर्व इस मंत्र की शक्ति देखने के लिए एक दिन कुंती ने सूर्यदेव का आह्वान किया जिसके फलस्वरूप कर्ण का जन्म हुआ।

 
 
किंदम नामक ऋषि के श्राप के चलते कुंती और माद्री पाण्डु के साथ ही वन में रहने लगीं। जब पाण्डु को ऋषि दुर्वासा द्वारा कुंती को दिए गए मंत्र के बारे में पता चला तो उन्होंने कुंती से धर्मराज का आवाह्न करने के लिए कहा जिसके फलस्वरूप धर्मराज युधिष्ठिर का जन्म हुआ। इसी प्रकार वायुदेव के अंश से भीम और देवराज इंद्र के अंश से अर्जुन का जन्म हुआ। कुंती ने यह मंत्र माद्री को बताया। तब माद्री ने अश्विनकुमारों का आवाह्न किया, जिसके फलस्वरूप नकुल व सहदेव का जन्म हुआ।
 
 
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इसी तरह धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी को महर्षि वेदव्यास ने सौ पुत्रों की माता होने का वरदान दिया था। समय आने पर गांधारी को गर्भ ठहरा लेकिन वह दो वर्ष तक पेट में रुका रहा। घबराकर गांधारी ने गर्भ गिरा दिया। उसके पेट से लोहे के गोले के समान एक मांस पिंड निकला। तब महर्षि वेदव्यास वहां पहुंचे और उन्होंने कहा कि तुम सौ कुण्ड बनवाकर उन्हें घी से भर दो और उनकी रक्षा के लिए प्रबंध करो। इसके बाद महर्षि वेदव्यास ने गांधारी को उस मांस पिण्ड पर ठंडा जल छिड़कने के लिए कहा। जल छिड़कते ही उस मांस पिण्ड के 101 टुकड़े हो गए।

 
 
गांधारी ने उन सभी मांस पिंडों को घी से भरे कुंडों में रख दिया। दो वर्ष बाद समय आने पर उन कुण्डों से पहले दुर्योधन का जन्म हुआ और उसके बाद अन्य गांधारी पुत्रों का। जिस दिन दुर्योधन का जन्म हुआ था उसी दिन भीम का भी जन्म हुआ था।
 
 
कहते हैं कि जन्म लेते ही दुर्योधन गधे की तरह रेंकने लगा। उसका शब्द सुनकर गधे, गीदड़, गिद्ध और कौए भी चिल्लाने लगे, आंधी चलने लगी, कई स्थानों पर आग लग गई। यह देखकर विदुर ने राजा धृतराष्ट्र से कहा कि आपका यह पुत्र निश्चित ही कुल का नाश करने वाला होगा अत: आप इस पुत्र का त्याग कर दीजिए लेकिन पुत्र स्नेह के कारण धृतराष्ट्र ऐसा नहीं कर पाए। 100 पुत्रों के अलावा गांधारी की एक पुत्री भी थी जिसका नाम दुश्शला था, इसका विवाह राजा जयद्रथ के साथ हुआ था।
 
 
कौरवों के अतिरिक्त धृतराष्ट्र का एक पुत्र और था, उसका नाम युयुत्सु था। जिस समय गांधारी गर्भवती थी और धृतराष्ट्र की सेवा करने में असमर्थ थी। उन दिनों एक वैश्य कन्या ने धृतराष्ट्र की सेवा की, उसके गर्भ से उसी साल युयुस्तु नामक पुत्र हुआ था। युयुत्सु पांडवों के खेमे में चले गए थे।
 
 
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एक बार दुर्योधन ने धोखे से भीम को विष खिलाकर गंगा नदी में फेंक दिया। बेहोशी की अवस्था में भीम बहते हुए नागलोक पहुंच गए। वहां विषैले नागों ने भीम को खूब डंसा, जिससे भीम के शरीर का जहर कम हो गया और वे होश में आ गए और नागों को पटक-पटक कर मारने लगे। यह सुनकर नागराज वासुकि स्वयं भीम के पास आए। उनके साथी आर्यक नाग में भीमसेन को पहचान लिया। आर्यक नाग भीमसेन के नाना का नाना था। आर्यक नाग ने प्रसन्न होकर भीम को हजारों हाथियों का बल प्रदान करने वाले कुंडों का रस पिलाया, जिससे भीमसेन और भी शक्तिशाली हो गए।
 
 
द्रोणाचार्य अपने पुत्र अश्वत्थामा को अधिक प्रेम करते थे। उन्होंने शिष्यों को पानी लाने के लिए जो बर्तन दिए थे, उनमें औरों के तो देर से भरते लेकिन अश्वत्थामा का बर्तन सबसे पहले भर जाता, जिससे वह अपने पिता के पास पहले पहुंचकर गुप्त रहस्य सीख लेता। यह बात जब अर्जुन को समझ में आई तो वह वारुणास्त्र से अपना बर्तन झटपट भरकर द्रोणाचार्य के पास पहुंच जाता। यही कारण था कि अर्जुन और अश्वत्थामा की शिक्षा एक समान हुई।
 
 
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जब पाण्डव वारणावत जाने लगे तो विदुरजी ने युधिष्ठिर को सांकेतिक भाषा में उस महल का रहस्य युधिष्ठिर को बता दिया और उससे बचने के उपाय भी दिए। दरअसल यह महल लाख का बनाया गया था जिसमें आग लगाकर पांडवों को मारने की योजना था।

 
 
विदुरजी द्वारा सतर्क कर दिए जाने के बाद एक दिन कुंती ने ब्राह्ण भोज कराया। जब सब लोग खा-पीकर चले गए तो वहां एक भील स्त्री अपने पांच पुत्रों के साथ भोजन मांगने आई और वे सब उस रात वहीं सो गए। उसी रात भीम ने स्वयं महल में आग लगा दी और गुप्त रास्ते से बाहर निकल गए। लोगों ने जब सुबह भील स्त्री और अन्य पांच शव देखे तो उन्हें लगा कि पांडव कुंती सहित जल कर मर गए हैं।
 
 
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भीम ने दुर्योधन की जंघा उतार दी थी। वह खून में लथपथ होकर रणभूमि पर गिरा हुआ था। भूमि पर गिरे हुए ही उसने श्रीकृष्ण की ओर देखते हुए अपने हाथ की तीन अंगुलियों को बार-बार उठाकर कुछ बताने का प्रयास किया। ऐसे में श्रीकृष्ण उसके पास गए और कहने लगे कि क्या तुम कुछ कहना चाहते हो? तब उसने कहा कि उसने महाभारत के युद्ध के दौरान तीन गलतियां की हैं, इन्हीं गलतियों के कारण वह युद्ध नहीं जीत सका और उसका यह हाल हुआ है। यदि वह पहले ही इन गलतियों को पहचान लेता, तो आज जीत का ताज उसके सिर होता।

 
 
श्रीकृष्ण ने सहजता से दुर्योधन से उसकी उन तीन गलतियों के बारे में पूछा तो उसने बताया, पहली गलती यह थी कि उसने स्वयं नारायण के स्थान पर उनकी नारायणी सेना को चुना। दूसरी गलती उसने यह बताई की कि अपनी माता के लाख कहने पर भी वह उनके सामने पेड़ के पत्तों से बना लंगोट पहनकर गया। तीसरी गलती यह थी कि युद्ध में आखिर में जाने की भूल की। यदि वह पहले ही जाता तो कई बातों को समझ सकता था और शायद उसके भाई और मित्रों की जान बच जाती। श्रीकृष्ण ने विनम्रता से दुर्योधन की यह सारी बात सुनी, फिर उन्होंने उससे कहा, 'तुम्हारी हार का मुख्य कारण तुम्हारा अधर्मी व्यवहार और अपनी ही कुलवधू का वस्त्राहरण करवाना था। तुमने स्वयं अपने कर्मों से अपना भाग्य लिखा। 
 
 
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अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण के जीजा थे तो दूसरी ओर श्रीकृष्ण दुर्योधन के समधी थे। अर्जुन ने श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा से विवाह किया था। दुर्योधन की पुत्री लक्ष्मणा ने श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब से प्रेम विवाह किया था। अर्जुन की माता कुंति भगवान श्रीकृष्ण की बुआ अर्थात वसुदेवजी की बहन थी। अर्जुन पुत्र अभिमन्यु की पत्नी वत्सला श्रीकृष्ण के भाई बलराम की बेटी थी। अब सोचिए इन सभी का आपस में क्या रिश्ता हुआ?
 
 
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पांडु पत्नी माद्री के भाई अर्थात नकुल और सहदेव के सगे मामा शल्य के पास विशाल सेना थी। लेकिन दुर्योधन की आवभगत से प्रसन्न होकर उन्होंने युद्ध में दुर्योधन का साथ दिया था। दुर्योधन को अपने खुद के मामा शकुनी का भी साथ मिला था।...इस तरह हमने देखा की कौरव और पांडवों की ऐसे कई बाते हैं जिनके बारे में आम जनता नहीं जानती होगी। इसी तरह की ओर भी बातें कौरव और पांडवों के संबंध में है।