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Last Modified: गुरुवार, 2 मई 2024 (16:52 IST)

Parshuram jayanti 2024 : भगवान परशुराम का श्रीकृष्ण से क्या है कनेक्शन?

Parshuram jayanti 2024 : भगवान परशुराम का श्रीकृष्ण से क्या है कनेक्शन? - Parshuram shri krishna
Mahabharata War: भगवान परशुराम अष्ट चिरंजीवियों में से एक है। अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कंडेय ऋषि। इसी के साथ जामवंतजी भी अजर अमर माने गए हैं। भगवान परशुराम ने महाभारत में अंबा को न्याय दिलाने के लिए भीष्म पितामह से युद्ध किया था परंतु इस युद्ध का कोई परिणाम नहीं निकला क्योंकि भीष्म पितामह को इच्‍छामृत्यु का वरदान प्राप्त था। इसके अलावा श्रीकृष्ण का भी परशुरामजी से खास कनेक्शन था।
बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि आखिरकार श्रीकृष्ण के पास सुदर्शन चक्र कैसे और क्यूं आया। अर्थात किस तरह उन्हें सुदर्शन चक्र मिला। कंस वध के बाद श्रीकृष्ण को मथुरा छोड़कर जाना पड़ा था। कंस वध के बाद मथुरा पर शक्तिशाली मगध के राजा जरासंध के आक्रमण बढ़ गए थे। मथुरा पर उस वक्त यादव राजा उग्रसेन का आधिपत्य था।
 
श्रीकृष्ण ने सोचा, मेरे अकेले के कारण यादवों पर चारों ओर से घोर संकट पैदा हो गया है। मेरे कारण यादवों पर किसी प्रकार का संकट न हो, यह सोचकर भगवान कृष्ण ने बहुत कम उम्र में ही मथुरा को छोड़कर कहीं अन्य जगह सुरक्षित शरण लेने की सोची। दक्षिण में यादवों के 4 राज्य थे। आदिपुरुष, पद्मावत, क्रौंचपुर और चौथा राज्य यदु पुत्र हरित ने पश्‍चिमी सागर तट पर बसाया था।
 
पद्मावत राज्य में वेण्या नदी के तट पर भगवान परशुराम निवास करते थे। वे वहां आश्रम में विद्या देते थे। उनके चमत्कार और शक्ति के किस्से सभी को मालूम थे। बलदाऊ से विचार-विमर्श कर श्रीकृष्‍ण ने निर्णय लिया कि सबसे पहले उनसे ही मिला जाए। सभी यादवों ने कृष्णा और कोयना के संगम में सभी ने स्नान किया। फिर करहाटक तीर्थक्षेत्र को पार कर वे वेण्या नदी के परिसर में आ गए। सभी के स्वागत के लिए परशुराम द्वारा भेजे गए कंधों पर चमकते हुए परशु लिए दो जटाधारी उनके पास आ खडे हुए। यहां तक की यात्रा में लगभग डेढ़ माह बीत चुका था। आश्रम के प्रदेश द्वार पर भृगुश्रेष्ठ परशुराम और सांदीपनि उनके स्वागत के लिए खड़े थे। दोनों ने श्रीकृष्ण और दाऊ को गले लगा लिया। आश्रम में परशुराम ने सभी को फलाहार खिलाया और सभी के रुकने और विश्राम करने की व्यवस्था की।
विश्रामआदि के बाद परशुराम ने कहा कि श्रीकृष्ण को गोमांतक पर्वत पर रहने की सलाह दी। गोमांतक पर्वत पार करके सोमनाथ का ज्योतिर्लिंग था और उसके पार लगभग 32 किलोमीटर दूर कुशस्थली थी जिसे बाद में द्वारिका कहा गया। गोमांतक पर्वत यादवों के एक पड़ाव व एक सैन्य शिविर में बदल गया। वहां जरासंध की सेना ने हमला कर दिया और पर्वत के चारों ओर आग लगा दी। जैसे तैसे सभी यादव बच गए। 
 
इस विजय के बाद एक दिन श्रीकृष्‍ण अपने भाई दाऊ और साथी विपृथु और कुछ गिने-चुने यादवों के साथ परशुराम से मिलने गए और उनको जरासंध के आक्रमण का हाल सुनाया। श्रीकृष्ण ने कहा कि उस निर्दयी ने गोमंतक जैसा अद्भुत पर्वत जला डाला। तब परशुराम ने कहा- हे श्रीकृष्ण, मुझे तुम्हारी आंखों में अपना उत्तराधिकारी दिखाई दिया है अत: में आज तुमको वह उपहार सौंपता हूं जिसके तुम ही एकमात्र योग्य हो और जिसके बारे में मैं तुम्हें अपनी पहली मुलाकात में बताया था। अब वह समय आ गया है कि मैं तुम्हें वह सौंप दूं।
तब परशुराम ने धीरे-धीरे अपनी आंखें बंद कर लीं और कुछ मंत्र बुदबुदाने लगे। ऐसे मंत्र जो पहले कभी श्रीकृष्‍ण ने भी नहीं सुने थे। तभी तेज प्रकाश उत्पन्न हुआ और संपूर्ण आश्रम प्रकाश से भर गया। दाऊ, श्रीकृष्ण आदि सभी की आंखें चौंधिया गईं। जब प्रकाश मध्यम हुआ, तब उन्होंने देखा कि परशुराम की दाहिनी तर्जनी पर 12 आरों वाला वज्रनाभ गरगर घूमने वाला सुदर्शन चक्र घूम रहा है। उसे देखकर सभी चकित होकर भयभीत भी हो गए। परशुराम की तर्जनी पर घूमता चक्र स्पष्ट दिखाई दे रहा था। परशुराम ने नेत्र संकेत से श्रीकृष्‍ण को नजदीक बुलाया और कान में कहा, प्रत्यक्ष ही देखो, इस सुदर्शन चक्र के प्रभाव को। उन्होंने मंत्र बुदबुदाते हुए उस तेज चक्र को प्रक्षेपित कर दिया और वह तेज गति से वेण्या नदी को पार कर आंखों से ओझल हो गया। कुछ ही देर बाद वह पुन: लौटता हुआ दिखाई दिया और वह उसी वेग से लौटकर पुन: तर्जनी अंगुली पर स्थिर हो गया। परशुराम ने पुन: कुछ मंत्र बुदबुदाया और फिर वह जैसे प्रकट हुआ था, वैसे ही लुप्त हो गया।
 
तब परशुराम ने श्रीकृष्ण को आचमन कराकर उनको सुदर्शन की दीक्षा देकर कहा, आज से मेरे इस सुदर्शन चक्र के अधिकारी तुम हो गए हो। हे वासुदेव, इसकी जन्मकथा तो तुम जानते ही हो। सबसे पहले यह शिव के पास था। इससे त्रिपुरासुर की जीवनलीला समाप्त कर दी गई थी। उसके बाद यह विष्णु...ऐसा बोलकर परशुराम मुस्कराने लगे। विष्णु क्या हैं? यह मैं तुम्हें क्या बताऊं वासुदेव श्रीकृष्ण। तुम जानते ही हो। विष्णु के बाद यह चक्र अग्नि के पास था। अग्नि ने वरुण को दिया और वरुण से यह मुझे प्राप्त हुआ है। हे वासुदेव, बलराम के हल से इस धरती में बीज बोने हैं और इस सुदर्शन चक्र से इस धरती की रक्षा करनी है। आज से यह तुम्हारा हुआ जिम्मेदारी से इसका उपयोग करना।
 
श्रीकृष्‍ण और दाऊ के मुख से सुदर्शन प्राप्त करने वाली घटना सुनकर सत्यकि तो सुन्न ही रह गया था। यादवों के तो हर्ष का ठिकाना नहीं रहा। उत्सव जैसा माहौल था। अत्यंत हर्ष के साथ दो दिनों तक भृगु आश्रम में रहने के बाद क्रौंचपुर के यादव राजा सारस के आमंत्रण पर उनके राज्य के लिए निकल पड़े।
 
संदर्भ : वी.सावंतजी की किताब युगांधर