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Last Updated : शनिवार, 16 मई 2020 (22:14 IST)

Mahabharat 9 May Episode 85-86 : जब किया श्रीकृष्ण ने चमत्कार, घटोत्कच का बलिदान

Mahabharat 9 May Episode 85-86 : जब किया श्रीकृष्ण ने चमत्कार, घटोत्कच का बलिदान - Jayadrath ghatothkach ka vadh
बीआर चौपड़ा की महाभारत के 9 मई 2020 के सुबह और शाम के 85 और 86वें एपिसोड में बताया जाता है कि कुरुक्षेत्र के युद्ध में किस तरह जयद्रथ और घटोत्कच का वध होता है। इस एपिसोड में श्रीकृष्ण की नीति और चमत्कार देखने को मिलता है।
 
बीआर चोपड़ा की महाभारत में जो कहानी नहीं मिलेगी वह स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें... वेबदुनिया महाभारत
 
दोपहर के एपिसोड में अर्जुन द्वारा जयद्रथ का सूर्यास्त के पहले वध करने की शपथ के बाद दोनों सेनाएं सूर्य की ओर देख रही हैं। उधर, धृतराष्ट्र पूछते हैं संजय से कि तुम्हारा मन क्या कहता है कि क्या अर्जुन आज सूर्यास्त के पहले जयद्रथ का वध कर पाएगा? यदि नहीं कर पाया तो क्या आचार्य द्रोण युधिष्ठिर को बंदी बना लेंगे? संजय बताओ कि आचार्य द्रोण कर क्या रहे हैं? संजय युद्ध भूमि की ओर देखता है।
 
उधर, युद्ध भूमि में धृष्टदुम्न और आचार्य द्रोण में युद्ध चल रहा होता है। धृष्टदुम्न हारने लगता है तो सात्यकि बीच में आ कूदता है। तब सात्यकि और आचार्य द्रोण में युद्ध होने लगता है। सात्यकि घायल हो जाते हैं तो युधिष्ठिर कहते हैं धृष्टद्युम्न से कि अब आपको उन्हें सहायता करना होगी। तब धृष्टद्युम्न सहायता के लिए कुछ महारथियों को भेज देते हैं।
 
तभी युधिष्ठिर वासुदेव के शंख की ललकार सुनकर आशंकित हो जाते हैं और कहते हैं कि कहीं ऐसा तो नहीं कि मेरा अर्जुन वीरगति को प्राप्त हो गया हो? और, क्रोध में आकर वासुदेव ने शस्त्र उठा लिए हों? तब युधिष्ठर भीम से कहते हैं कि तुम वहां जाओ और देखो। लेकिन भीम कहते हैं कि आपकी सुरक्षा अर्जुन की सुरक्षा से ज्यादा महत्वपूर्ण है। तब युधिष्ठिर सात्यकि को आदेश देते हैं कि आप जाकर देखो। सात्यकि कहते हैं कि अर्जुन ने मुझे आपकी सुरक्षा में नियुक्ति किया है।फिर भी युधिष्ठिर दबाव बनाकर सात्यकि को भेज देते हैं।
 
तब एक सैनिक यह खबर द्रोण को बता देता है। द्रोण अपनी सेना को आक्रमण का आदेश देते हैं। उधर, यह देखकर युधिष्ठिर घबराकर कहता है कि हे भगवान गांडिव की टंकार सुनाइये। भीम कहते हैं कि आप घबराइए मत भ्राताश्री। प्रिय अर्जुन के साथ स्वयं वासुदेव हैं। लेकिन युधिष्ठर नहीं मानते हैं और वह भीम को आदेश देते हैं कि तुम भी अर्जुन की सहायता के लिए जाओ। तब भीम पांचाल नरेशों को युधिष्ठिर की सुरक्षा का जिम्मा सौंपकर चले जाते हैं।
 
यह देखकर द्रोण कहते हैं हे महारथी भीम अर्जुन की सहायता के लिए जा रहा है। भीम का वहां पहुंच जाना हमारे लिए शुभ नहीं है। इसलिए मैं तो युधिष्ठिर को रोकता हूं और आप भीम को रोकिए। महारथी भीम को नहीं रोक पाता है तो खुद द्रोण उन्हें रोकने के लिए पहुंच जाते हैं। भीम अपनी गदा से द्रोणाचार्य को रथ से गिरा देते हैं और सारथी से कहते हैं कि रथ आगे लो। उधर अर्जुन कमल व्यूह को भेदते हुए अंदर घुसता जाता है।
 
इधर, शिविर में उत्तरा से द्रौपदी कहती है कि पुत्री सूर्योदय से कहो कि जिस जयद्रथ के कारण सात कायरों ने मिलकर तेरे माथे कि बिंदिया मिटाई है उसके वध का दृश्य देख बिना आज अस्त ना हो। दोनों सूर्यदेव से प्रार्थना करते हैं। उधर, धृतराष्ट्र पूछते हैं संजय से कि आज सूर्यास्त क्यों अस्त नहीं हो रहा संजय? संजय कहता है कि कुंती पुत्र भीम आचार्य द्रोण के आठ रथ तोड़ चुके हैं। यह सुनकर धृतराष्ट्र चिंतित हो जाते हैं।
 
उधर, युद्ध भूमि में भीम को दुर्योधन का एक भाई रोकता है। तब भीम कहते हैं कि मैंने तुम्हारे 20 भाइयों का वध कर दिया फिर भी तुम्हें मुझसे भय नहीं लगता? तब दोनों में युद्ध होता है। भीम उसका वध करके आगे बढ़ जाता है। तभी उसको रोकने के लिए कर्ण उसके सामने आ जाते हैं। दोनों के बीच घमासान होता है। भीम से गदा युद्ध में कर्ण घायल हो जाता है तो अन्य कौरव भीम से लड़ने लग जाते हैं। बीच में कर्ण पुन: भीम से तलवार युद्ध करने लगता है तो भीम उसकी तलवार तोड़ देते हैं।
 
उधर, सात्यकि से एक महारथी का युद्ध चल रहा था उसमें सात्यकि मूर्च्छित होकर गिर पड़ता है तभी अर्जुन बीच में आकर उन्हें बचाता है। 
 
उधर, भीम से कर्ण भाला युद्ध करता है तभी भीम का भाला गिर जाता है और कर्ण भीम के गले में भाला रख देते हैं। उस वक्त उन्हें कुंती को दिया वचन याद आ जाता है और वह भीम को छोड़कर चले जाते हैं। यह घटना संजय धृतराष्ट्र को बताते हैं कि किस तरह भीम ने आपके 21 पुत्रों का वध कर दिया और कर्ण भीम को छोड़कर चला गया।
 
दूसरी ओर दु:शासन से दुर्योधन कहता है कि जाओ और सिंधु नरेश की रक्षा करो। फिर वह आसमान में देखकर कहता है कि हे सूर्यदेव आज शीघ्र ही अस्त हो जाओ।
 
उधर हजारों सैनिकों को मारता हुआ अर्जुन कमल व्यूह तोड़ते हुए सिंधु नरेश के नजदीक पहुंचने का प्रयास करता रहता है। लेकिन वह देखता है कि अश्वत्थामा, कृपाचार्य, दु:शासन आदि कई महारथी अपनी सेना के साथ सामने खड़े हैं और सबसे पीछे सिंधु नरेश खड़ा है। 
 
अर्जुन का अश्वत्थामा आदि के साथ युद्ध चल ही रहा होता है कि तभी दुर्योधन भी आ धमकता है। यह युद्ध देखकर श्रीकृष्ण चिंतित हो जाते हैं। फिर वे सूर्य की ओर देखते हैं और चमत्कार करते हैं। उनके हाथ के इशारे से अंधेरा छा जाता है। 
 
सभी की नजरें आसमान में टिक जाती है। यह देखकर सिंधु नरेश प्रसन्न होकर अट्टाहास करने लगता है। कौरव पक्ष में हर्ष की लहर दौड़ जाती है। युद्ध रुक जाता है। अर्जुन श्रीकृष्ण की ओर देखकर उदास हो जाते हैं। तभी दुर्योधन चीखता है। अर्जुन तुम अग्नि समाधी ले लो। 
 
फिर रथ पर सवार सिंधु नरेश अट्टाहास करता हुआ पीछे से आगे आकर अर्जुन के सामने आकर खड़ा हो जाता है और चीखकर कहता है अग्नि समाधी कब लोगे सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन? बताओगे नहीं? यह कहकर वह फिर जोर-जोर से लगातार हंसने लगता है।
 
अर्जुन गर्दन झुकाए रथ पर खड़े रहते हैं और श्रीकृष्ण मुस्कुराते रहते हैं। तभी श्रीकृष्ण के इशारे से सूर्य निकलने लगता है। यह देखकर सभी दंग रह जाते हैं। श्रीकृष्ण खड़े होकर कहते हैं कि अभी सूर्यास्त नहीं हुआ पार्थ। देखो वो रहा सूर्य और ये रहा जयद्रथ। यह देखकर खुशी के मारे अर्जुन चीखते हैं- जयद्रथ अभी सूर्यास्त नहीं हुआ। अर्जुन अपने धनुष पर बाण चढ़ा लेते हैं। यह देखकर जयद्रथ भयभीत हो जाता है और वह रथ से नीचे उतरकर भागने लगता है।
 
यह देखकर दुर्योधन, दु:शासन, कृपाचार्य, अश्वत्थामा आदि सभी भयभीत होकर देखने लगते हैं। अर्जुन कहता है भाग जयद्रथ भाग, मेरे अभिमन्यु का वध तुने किया था। अर्जुन चीखता हुआ कहता है भाग और बाण छोड़ देते हैं। विद्युत की गति से उसका बाण जयद्रथ की गर्दन पर लगता है और उसका सिर उड़ता हुआ वन में बैठे उसके पिता की गोद में जाकर गिर जाता है। उसके पिता घबराकर उस सिर को भूमि पर फेंक देते हैं। जैसे ही भूमि पर सिर गिरता है उसके पिता का सिर भी फूट जाता है।
 
शाम के एपिसोड में घटोत्कच को युद्ध भूमि मैं देखकर कौरव पक्ष के सैनिक घबरा जाते हैं। सैनिक उस पर अग्निबाण चलाते हैं। घटोत्कच अपने पैरों से सेना को कुचलने लगता है। उधर द्रोणाचार्य से दुर्योधन पूछता है कि हे आचार्य दिनभर युद्ध करने के बाद पांडवों में इतनी शक्ति कहां से आ गई? द्रोणाचार्य कहते हैं कि ये तो असुरों की शैली दिखाई दे रही है। इस पर दुर्योधन पूछता है कि असुर? ये असुर कहां से आ गए?
 
तभी दोनों को अट्टाहास की आवाज सुनाई देती है तो वे ऊपर देखते हैं। उन्हें विशालकाय मानव नजर आता है जो दोनों के सामने खड़ा हुआ था। द्रोणाचार्य अपने धनुष पर बाण चढ़ाते हैं। दुर्योधन भी ऐसा ही करके उस पर बाण छोड़ते हैं। लेकिन किसी के भी बाणों का उस पर असर नहीं होता है।
 
इस बीच कर्ण भी घटोत्कच से लड़ने आ जाता है। कर्ण भी तीर छोड़ता है लेकिन घटोत्कच उसके तीर को हाथ में पकड़कर कहता है कि आप के बारे में सुना है कि आप बड़े दानवीर हो। अब आप पुत्र घटोत्कच की ओर ये पुरस्कार ग्रहण कीजिये। ऐसा कहकर घटोत्कच अपने हाथ में पकड़ा तीर कर्ण पर फेंक देता है जिससे कोहराम मच जाता है। यह देखकर द्रोणाचार्य से दुर्योधन कहता है कि गुरुदेव युद्ध की समाप्ति का शंख बजाइये नहीं तो ये भीम पुत्र किसी को जीवित नहीं छोड़ेगा। द्रोणाचार्य ऐसा ही करते हैं।
 
उधर, शिविर में भीम अपने पुत्र घटोत्कच को सभी पांडवों से मिलाते हैं। वह सभी को प्रणाम करने के बाद अर्जुन को प्रणाम करके कहता है कि वीर अभिमन्यु का जो स्थान रिक्त हुआ है उसकी जगह आप पुत्र मानकर नहीं लेकिन सेवक मानकर मुझे स्वीकार करें। यह सुनकर अर्जुन कहते हैं कि तुम तो अभिमन्यु से बड़े हो पुत्र। तुम अपना स्थान स्वयं ग्रहण करो। तब घटोत्कच कहता है कि यदि ऐसा है तो संकट के समय मुझे युद्ध करने का आदेश क्यों नहीं दिया? मैं मानता हूं कि मेरी मां छत्रा‍णी नहीं है किंतु.... तभी श्रीकृष्ण कहते हैं कि किंतु जो तुम जैसे महावीर को जनम दे वो आदरणीय नारी छत्राणी न भी हो तब भी वे छत्राणी ही है, क्योंकि नागफनी के पौधे पर चमेली का फूल तो नहीं आ सकता। हे पुत्र कोई जन्म से ब्राह्मण या छत्रिय नहीं होता। तुम वीरों की जाति के हो क्योंकि तुम महावीर हो।
 
तब श्रीकृष्ण से घटोत्कच पूछता है कि यदि ऐसा नहीं है तो माता द्रौपदी, माता सुभद्रा के पुत्रों की तरह मैं यहां क्यों नहीं था? तब श्रीकृष्ण कहते हैं, हे पुत्र सबके आने और जाने का एक उचित समय होता है। तुम यहां ठीक समय पर आए हो। और हे महावीर भारववर्ष के भविष्य के लिए तुम सैदव आदरणीय रहोगे और छत्राणियों के पुत्र तुम्हें सदैव आदर सहित प्रणाम करते रहेंगे। धन्य है वे माता जिसने ऐसा पुत्र जन्मा। भरतवंश सदा तुम्हारा ऋणि रहेगा पुत्र।
 
इधर, भीम पुत्र घटोत्कच की माता हिडिम्बा के पास सूचना मिलती है किस तरह घटोत्कच ने युद्ध में कौरव सेना के छक्के छुड़ा दिए। सूचना देने वाला राक्षस यह भी बताता है कि किस तरह श्रीकृष्ण ने घटोत्कच की तारीफ की। यह सुनकर हिडिम्बा खुश हो जाती है।
 
उधर, गांधारी और कुंती रात्रि में पितामह भीष्म से मिलने के लिए पहुंचती हैं। भीष्म, कुंती और गांधारी के बीच इस युद्ध की विभीषिका पर वार्तालाप होता है।
 
दूसरी ओर युद्ध शिविर में दुर्योधन और गांधारी के बीच कटु वार्तालाप चल रहा होता है तभी युधिष्ठिर अपने भाइयों के साथ आकर माता गांधारी से मिलकर कहते हैं कि हम अपने 98 भाइयों और आपके पौत्र अभिमन्यु की मृत्यु पर शोक प्रकट करने आए हैं माताश्री। यह सुनकर दुर्योधन बीच में ही बोलता है मेरे और दु:शासन के पुत्रों पर भी शोक प्रकट कर लीजिए ज्येष्ठ भ्राताश्री। क्योंकि क्या पता फिर शोक प्रकट करने का अवसार मिले या न मिले। और ध्यान रहे कि युद्ध अभी समाप्त नहीं हुआ है। यह सुनकर भीम कहता है कि जब तक मेरी प्रतिज्ञा पूरी न हो जाए तब तक युद्ध समाप्त हो ही नहीं सकता भ्राता दुर्योधन।.. युधिष्ठर भीम को रोकते हैं। लेकिन अर्जुन भी शुरू हो जाते हैं। सभी के बीच वाद विवाद होता है। दुर्योधन वहां से निकल जाता है।
 
फिर पांडव माता कुंती से मिलते हैं। कुंती अर्जुन से पूछती हैं कि क्या तुम ये बता सकते हो कि युद्ध कब समाप्त होगा? अर्जुन कहता है कि जब तक दुर्योधन, दु:शासन, कर्ण और शकुनि में से एक भी जिंदा रहेगा तब तक युद्ध समाप्त नहीं होगा। तब माता कुंती कहती है कि कर्ण ने क्या किया है पुत्र? वह तो दुर्योधन का ऋणि है। वही ऋ‍ण उतारने का प्रयत्न कर रहा है। तब अर्जुन कहता है कि दुर्योधन का कोई भी ऋ‍ण उतारने के लिए द्रौपदी को वैश्या कहना जरूरी नहीं था।
 
उधर, शिविर में दुर्योधन व कर्ण के समक्ष द्रोणाचार्य कहते हैं कि मैं तो घटोत्कच के विषय में सोचते-सोचते थक गया। किंतु मेरी समझ में उसके लिए कोई उपाय नहीं आ रहा। यह समझलो कि घटोत्कच एक अचूक अस्त्र है जो पांडवों के हाथ लग गया है। उसे पराजित करने के लिए किसी दिव्यास्त्र की आवश्यकता होगी। यह सुनकर दुर्योधन कहता है दिव्यास्त्र? ऐसा कहकर वह कर्ण की ओर देखने लगता है। तब कर्ण कहता है कि मेरी ओर यूं ना देखो मित्र। इंद्र की दी हुई शक्ति मैंने अर्जुन के लिए बचा रखी है। घटोत्कच का उपाय या तो तुम स्वयं करो या फिर आचार्य सोचें।
 
अगले दिन के युद्ध में घटोत्कच फिर से कौरव सेना का संहार करने लग जाता है। वह आकाश में उड़कर आग के गोले के गोले फेंककर हाहाकार मचा देता है। यह देखकर कर्ण उससे युद्ध करने लगता है लेकिन घटोत्कच कर्ण को घायल कर देता है। फिर दुर्योधन भी घटोत्कच से युद्ध करने लगता है। दुर्योधन को घटोत्कच भयभीत, परेशान और घायल कर देता है।
 
दुर्योधन वहां से भाग जाता है और कर्ण के पास पहुंचकर कहता है कि मैं तुमसे पूछ रहा हूं मित्र की स्वयं अपने खून से नहाया अपने रथ पर खड़ा यह मित्र तुमको कैसा लग रहा है? अब थोड़ी देर के बाद न तो तुम्हारा ये मित्र रहेगा और न ही उसकी सेना। फिर तुम इस रणभूमि में अर्जुन को ढूंढते रहना। यदि तुम्हारे लिए अर्जुन का महत्व दुर्योधन से अधिक है तो जाओ मैं तुम्हें अपनी मित्रता के बंधन से मुक्त करता हूं।
 
यह कड़वे वचन सुनकर कर्ण कहता है कि ऐसा न कहो मित्र ऐसा न कहो। फिर कर्ण हाथ जोड़कर दिव्यास्त्र का आह्वान करते हैं और उनके हाथ में इंद्र का शक्ति अस्त्र आ जाता है। वे उसे माथे से लगाते हैं और घटोत्कच की ओर छोड़ देते हैं। वह अस्त्र सीधा घटोत्कच की छाती में जाकर लगता है।
 
संपूर्ण युद्ध में तहलका मच जाता है घटोत्कच की चीख सुनकर। सभी उसकी ओर देखने लगते हैं। उसकी चीख आसमान में गुंजने लगती है। यह देखकर भीम कहते हैं कि अपना आकार बढ़ा पुत्र, अपना आकार बढ़ा और शत्रु सेना पर गिर। मरते हुए भी घटोत्कच पिता की आज्ञा का पालन करके आकार बढ़ाने लगता है। अंत में वह भीम को देखकर उन्हें हाथ जोड़कर नमस्कार करके कहता है पिताश्री! मेरा अंतिम प्रणाम। ऐसा कहकर वो शत्रु सेना पर गिरकर दाम तोड़ देता है।
 
यह देखकर पांचों पांडव रोने लगते हैं, लेकिन श्रीकृष्ण मुस्कुरा रहे होते हैं। यह देखकर भीम कहता है तुम मेरे वीर पुत्र के वीरगति को प्राप्त होने पर हंस रहे हो श्रीकृष्ण? तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैं उसके वीरगति को प्राप्त होने पर नहीं हंस रहा हूं मंछले भैया। मैं तो ये सोचकर प्रसन्न हो रहा था कि आज अर्जुन बच गया। जिस दिन से ये युद्ध आरंभ हुआ उसी दिन से मैं इस चिंता में था कि कर्ण के पास इंद्र की शक्ति है जिसे कोई कवच नहीं रोक सकता और इसीलिए मैं अब तक अर्जुन को कर्ण के सामने नहीं आने दे रहा था। अब आप ही बताइये मंझले भैया ये शोक की घड़ी है या आनंद की? आपके पुत्र ने तो वीर अभिमन्यु से भी कई गुना अधिक महत्वपूर्ण कार्य किया है और इसके लिए आने वाले सारे युग वीर घटोत्कच को प्रणाम करते रहेंगे।
 
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