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Last Modified: शुक्रवार, 9 अगस्त 2024 (14:26 IST)

विश्व आदिवासी दिवस पर छुट्टी को लेकर गर्माई सियासत,कांग्रेस ने लगाया आदिवासी वर्ग के अपमान का आरोप

kamalnath_jitu patwari
भोपाल। आज विश्व आदिवासी दिवस पर मध्यप्रदेश की सियासत गर्मा गई है। आदिवासी दिवस पर छुट्टी को लेकर भाजपा और कांग्रेस आमने सामने है। सरकार की ओर से विश्व आदिवासी  दिवस पर कमलनाथ सरकार के समय किए गए अवकाश को रद्द करने को लेकर कांग्रेस ने भाजपा सरकार पर आदिवासियों के अपमान का आरोप लगाया है।

पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने  सरकार को घेरते हुए कहा कि “आप सबको विदित है कि प्रदेश में जब कांग्रेस की सरकार थी तो 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस का अवकाश घोषित किया गया था। बाद में भारतीय जनता पार्टी सरकार ने इस अवकाश को समाप्त कर दिया।मैंने 25 जुलाई 2024 को लिखे पत्र में मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव से यह अवकाश घोषित करने की माँग की थी। लेकिन मुख्यमंत्री ने इस तरफ़ कोई ध्यान नहीं दिया। इस तरह मध्य प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी सरकार का आदिवासी विरोधी चेहरा एक बार फिर सामने आ गया है।कल 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस है, लेकिन बार बार आग्रह करने के बावजूद मध्य प्रदेश सरकार ने विश्व आदिवासी दिवस का सार्वजनिक अवकाश बहाल नहीं किया है। मध्य प्रदेश पहले से ही आदिवासी अत्याचार में नंबर वन है। आदिवासी अधिकारों की रक्षा के प्रति भाजपा पूरी तरह लापरवाह है। और अब विश्व आदिवासी दिवस का अवकाश देने से मना कर भाजपा ने अपने इस व्यवहार पर आधिकारिक मुहर लगा दी है”।

भाजपा ने बनाई दूरी, मुख्यमंत्री का तंज- कांग्रेस के आदिवासी वर्ग के अपमान के आरोप को भाजपा ने सिरे से खारिज किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनजातीय गौरव दिवस मनाकर आदिवासियों का सम्मान किया है। वहीं मुख्यमंत्री निवास पर रानी दुर्गावती महिला सरपंच सम्मेलन के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने बिना आदिवासी दिवस का जिक्र करते हुए कहा कि छुट्टी तो होती रहती है लेकिन मध्यप्रदेश मे सभी जन्माष्टमी से लेकर सभी त्यौरा मनाए।

आदिवासी पर सियासत क्यों?- मध्यप्रदेश में लंबे समय से आदिवासी सियासत के केंद्र में है। आदिवासियों के सियासत के केंद्र में होने की सबसे बड़ी वजह मध्यप्रदेश में आदिवासी का एक बड़ा वोट बैंक होना है। मध्यप्रदेश का चुनावी इतिहास बताता है कि आदिवासी जिसके साथ जाते है उसकी प्रदेश में सरकार बनती है। 2003 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 41 सीटों में से बीजेपी ने 37 सीटों पर कब्जा जमाया था। चुनाव में कांग्रेस केवल 2 सीटों पर सिमट गई थी। वहीं गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने 2 सीटें जीती थी। इसके बाद 2008 के चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 41 से बढ़कर 47 हो गई। इस चुनाव में बीजेपी ने 29 सीटें जीती थी। जबकि कांग्रेस ने 17 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं 2013 के इलेक्शन में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी ने जीती 31 सीटें जीती थी। जबकि कांग्रेस के खाते में 15 सीटें आई थी। वहीं 2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी सीटों के नतीजे काफी चौंकाने वाले रहे। आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी केवल 16 सीटें जीत सकी और कांग्रेस ने दोगुनी यानी 30 सीटें जीत ली। जबकि एक निर्दलीय के खाते में गई।

वहीं दिसंबर 2023 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो तो प्रदेश में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 विधानसभा सीटों पर भाजपा ने 24 सीटों पर जीत हासिल की है वहीं कांग्रेस ने 22 सीटों पर जीत हासिल की है। ऐसे में अगर विधानसभा चुनाव के कुल नतीजों को देखा जाए तो आदिवासी बाहुल्य सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला लगभग बराबरी का नजर आता है। अगर विधानसभा चुनाव के नतीजों देखे तो भाजपा ने विधानसभा चुनाव में आदिवासी सीटों पर 2018 की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है। ऐसे में भाजपा अब लोकसभा चुनाव में आदिवासी वोटरों पर अपनी पकड़ और मजबूत करना चाहती है।

बता दें कि साल पहली बार साल 2018 में विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर 9 अगस्त को एमपी में सरकारी छुट्टी घोषित की गई थी. ये छुट्टी आदिवासी विकास खंड वाले 20 जिलों में थी. इसके बाद प्रदेश में जब कांग्रेस की सरकार बनी और बागडोर कमलनाथ के हाथों में आई यानी वे CM बने तो 2019 में उन्होंने इस दिन अवकाश की घोषणा की थी.
 
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