मेधा पाटकर अस्पताल में भर्ती, हालत खतरे से बाहर
इंदौर। सरदार सरोवर बांध से मध्यप्रदेश में विस्थापित होने वाले लोगों के उचित पुनर्वास की मांग को लेकर 12 दिन के अनशन के बाद सोमवार देर रात निजी अस्पताल में भर्ती कराई गईं नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख मेधा पाटकर की स्थिति अब खतरे से बाहर है। इस बीच, आंदोलन के कार्यकर्ताओं का आरोप है कि मेधा को अस्पताल में नजरबंद कर लिया गया है।
इंदौर संभाग के आयुक्त संजय दुबे ने बताया कि मेधा शहर के बॉम्बे हॉस्पिटल की गहन चिकित्सा इकाई (आईसीयू) में भर्ती हैं। इलाज शुरू होने के बाद उनकी हालत खतरे से बाहर है। लेकिन 12 दिन के अनशन के कारण वह बेहद कमजोर हो गई हैं। उन्हें कुछ दिन तक डॉक्टरों की देख-रेख और इलाज की जरूरत है।
दुबे ने बताया कि मेधा की सेहत में सुधार के लिए उन्हें अस्पताल में जरूरी दवाएं दी जा रही हैं। उनकी हालत फिलहाल स्थिर है।
इस बीच, निजी अस्पताल परिसर में बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया है और उसके आस-पास बैरिकेड लगाए गए हैं। अस्पताल के बाहर मेधा समर्थक लगातार जुट रहे हैं।
नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता चिन्मय मिश्र ने आज अस्पताल में मेधा से मुलाकात की। मिश्र ने मुलाकात के बाद कहा कि प्रशासन ने मेधा को अस्पताल में इलाज की आड़ में एक तरह से नजरबन्द कर दिया है। वह अपने समर्थकों से मिलना चाहती हैं। लेकिन उन्हें इसकी इजाजत नहीं दी जा रही है।
उन्होंने कहा कि मेधा निजी अस्पताल में अपना महंगा इलाज नहीं कराना चाहतीं। वह इस अस्पताल से बाहर निकलना चाहती हैं।
उधर, संभाग आयुक्त दुबे ने नर्मदा बचाओ आंदोलन की 62 वर्षीय प्रमुख को नजरबंद किए जाने के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि हमें मेधा के स्वास्थ्य की चिंता है। वह आईसीयू में भर्ती हैं और कोई भी अस्पताल मरीजों के स्वास्थ्य के मद्देनजर हर किसी आगंतुक को आईसीयू में जाने की अनुमति नहीं देता। वैसे कुछ लोगों को मेधा से मिलने की अनुमति दी गई है।
नजदीकी धार जिले के चिखल्दा गांव में मेधा और अन्य लोगों ने अपना 12 दिन लंबा अनशन समाप्त करने का प्रशासन का अनुरोध कल यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि अभी सभी विस्थापितों का उचित पुनर्वास नहीं हुआ है।
इसके बाद प्रशासन ने पुलिस बल की मदद से सभी अनशनकारियों को आंदोलन स्थल से उठाकर इंदौर, बड़वानी और धार के अस्पतालों में भर्ती करा दिया था।
संभाग आयुक्त के मुताबिक सभी अनशनकारियों को डॉक्टरों की इस लिखित रिपोर्ट के आधार पर अस्पतालों में भर्ती कराया गया कि लगातार 12 दिन तक अनशन के कारण उनकी जान को खतरा है। (भाषा)