मप्र में भाजपा को बहुमत आसानी से
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राजेश सिरोठिया मप्र में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के बाद सुषमा स्वराज ही ऐसी भाजपा नेत्री हैं, जिनकी प्रत्याशियों ने सभाएँ कराने का आग्रह किया। भाजपा ने भाजश अध्यक्ष उमा भारती के प्रहारों को निस्तेज करने के लिहाज से भाजपा की राष्ट्रीय महासचिव सुषमा स्वराज को मैदान में उतारा है। वैसे भी मप्र से राज्यसभा सदस्य होने के नाते पार्टी ने उनसे ज्यादा प्रचार की अपेक्षा की थी। स्वराज का मानना है कि दिल्ली, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के साथ ही मध्यप्रदेश में भी भाजपा आसानी से बहुमत प्राप्त कर लेगी। चुनावी पड़ाव के दौरान सुषमा स्वराज से नईदुनिया ने राजनीतिक हालात के बारे में चर्चा की। प्रस्तुत है उनसे बातचीत के चुनिंदा अंश- -
मप्र, राजस्थान और छत्तीसगढ़ को लेकर आपका आकलन क्या है?तीनों ही राज्यों में भाजपा आरामदायक बहुमत प्राप्त कर लेगी। वसुंधरा राजे, शिवराजसिंह चौहान और डॉ. रमन सिंह तीनों ने ही अपने कामकाज से जनता को प्रभावित किया है। विकास के कामों से लोग संतुष्ट हैं। मप्र में मैं जहाँ भी प्रचार करने गई हूँ, वहाँ मैंने पाया कि शिवराज की विनम्रता, परिश्रम और छवि का भाजपा को अच्छा लाभ मिल रहा है। -
उमा फैक्टर भाजपा की संभावनाओं को कितना प्रभावित कर रहा है?मुझे नहीं लगता कि यह बहुत नुकसान पहुँचाएगा और भाजपा की राह रोक पाएगा। उमा की पार्टी जो वोट पाएगी यदि वह भाजपा का नुकसान है, तो हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि कांग्रेस भी भाजपा विरोधी मतों का सीधे फायदा नहीं उठा पाएगी। -
कांग्रेस की स्थिति के बारे में आप क्या कहेंगी?भाजपा में तो यह साफ है कि बहुमत पाने के बाद शिवराज ही मुख्यमंत्री होंगे, लेकिन कांग्रेस में तो अभी से कई मुख्यमंत्री घूम रहे हैं। कांग्रेस का एक धड़ा सोचता है कि सुरेश पचौरी प्रदेशाध्यक्ष है, तो वही मुख्यमंत्री बनेंगे। लेकिन कमलनाथ अपने मुख्यमंत्री होने का राग अलापते फिर रहे हैं। वैसे भी कांग्रेस में क्या होना है यह तो एक व्यक्ति की पसंद और नापसंद पर निर्भर कर सकता है। वहाँ कुछ भी हो सकता है। -
मायावती की बसपा की संभावनाओं को लेकर आप क्या सोचती हैं?मध्यप्रदेश में उत्तरप्रदेश से स्थिति अलग है। वहाँ जनता मुलायम सिंह से त्रस्त थी और उन्हें बदलना चाहती थी। इसलिए मायावती की सरकार बन गई। -
लेकिन मायावती ने मप्र में भी सवर्ण कार्ड खेला है? हाँ, उन्होंने ऐसा किया तो है, लेकिन मप्र में दूसरी पार्टियों ने भी उसके हिसाब से रणनीति बदली है। सोनिया गाँधी ने तो सुरेश पचौरी को प्रदेशाध्यक्ष ही इसीलिए बनाया है। भाजपा ने भी टिकट वितरण में सवर्णों को पर्याप्त स्थान दिया है। इसलिए बसपा को कुछ ज्यादा खास कर पाएगी, ऐसा लगता नहीं है। वैसे भी बसपा और गोंगपा भाजपा का नहीं कांग्रेस का नुकसान कर रही है। -
आप दिल्ली की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। वहाँ के चुनाव को लेकर आपका क्या आकलन है?दिल्ली में राष्ट्रीय मुद्दों के साथ ही ऐसे कई मुद्दे काम कर रहे हैं जिन्होंने दिल्लीवासियों को बुरी तरह झकझोर रखा है। कांग्रेस के दस साल के शासन ने लोगों को बुरी तरह त्रस्त कर रखा है। दिल्ली क्या है। बम धमाके से दहलती दिल्ली। ब्लू लाइन से कुचली दिल्ली। सीलिंग से छटपटाती दिल्ली। बीआरटी कॉरीडोर से सताई दिल्ली। ट्रैफिक जाम से अघाई दिल्ली। महिलाओं के लिए असुरक्षित दिल्ली। महँगाई और आतंकवाद से जूझती दिल्ली की जनता के सामने ये मुद्दे भी हैं, जो कांग्रेस को तीसरी बार कदापि नहीं जीतने देंगे। -
और कौन-सी चीज है, जो दिल्ली में बदलाव का सबब बनेगी?दिल्ली में कांग्रेस के पास सकारात्मकता जैसी कोई चीज नहीं है। उसके खिलाफ बना नकारात्मक माहौल ही उसे सत्ता से बेदखल करने जा रहा है। -
लेकिन भाजपा भी तो एकजुट नहीं है? टिकटों को लेकर सरेआम संग्राम नहीं हुआ?दरअसल जो पार्टी सत्ता में आती दिखती है, उसमें टिकटों के लिए मारामारी कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती है। इसलिए दिल्ली भाजपा में जो कुछ हुआ वह अस्वाभाविक नहीं था। लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने सबको समझा-बुझाकर शांत कर दिया।-
आप दिल्ली में प्रचार क्यों नहीं कर रही हैं?पार्टी ने पहले चुनावों को देखते हुए मप्र में प्रचार का निर्देश दिया था। मप्र में प्रचार थमने के बाद मैं तीन दिन दिल्ली में ही डेरा डालने वाली हूँ।