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Written By राकेश त्रिवेदी
Last Updated : बुधवार, 1 अक्टूबर 2014 (19:45 IST)

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर केट की दस्तक

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर केट की दस्तक -
तेरह अरब साल से भी पहले अंतरिक्ष में महाविस्फोट (बिग बेंग) से निर्मित ब्रह्माण्ड की गुत्थी प्रयोगशाला में सुलझेगी। इसके लिए जिनेवा के पास सर्न प्रयोगशाला द्वारा निर्मित दुनिया की सबसे भीमकाय त्वरक मशीन एलएचसी 10 सितंबर से कार्य प्रारंभ कर देगी। इंदौर के लिए यह गौरव दिवस होगा। इस मशीन के विभिन्न अवयवों का निर्माण आरआरकेट ने किया है।

केट अब अंतरराष्ट्रीय नक्शे पर छा गया है। इसे टीवी पर पूरी दुनिया देखेगी। यूरोपियन ऑर्गनाइजेशन फॉर न्यूक्लीयर रिसर्च (सर्न) ने घोषणा की है कि उसके द्वारा अंतरराष्ट्रीय सहयोग से निर्मित दुनिया के सबसे बड़े कण त्वरक (पार्टिकल एक्सेलेरेटर) के वृत्ताकार पथ पर पहली किरण प्रदक्षिणा 10 सितंबर से करने लगेगी। अब तक बने कण त्वरकों से इस त्वरक की ऊर्जा 30 गुना ज्यादा होगी।

सर्न ने इस त्वरक मशीन का निर्माण जमीन में 100 मीटर गहराई पर 27 किमी परिधि वाली एक गोलाकार सुरंग में किया है जिसका आधा भाग स्विट्जरलैंड में और आधा फ्रांस में है। इस प्रयोगशाला से 60 देश और 8 हजार वैज्ञानिक जुड़े हैं। इसी प्रयोगशाला ने 1990 में विश्वव्यापी वेब (डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू) शब्द को गढ़ा।

क्या होगा मशीन में - लार्ज हेड्रॉन कोलाइडर (एलएचसी) अब तक की सबसे बड़ी कण त्वरक मशीन होगी। इसके वृत्त में परमाणु के प्रोटान कणों के किरण पुंज को उच्च गति से विपरीत दिशा में प्रदक्षिणा कराई जाएगी।

हर प्रदक्षिणा पर इनके छोर आपस में भिड़ंत करेंगे तथा इनकी ऊर्जा बढ़ती जाएगी। एलएचसी के माध्यम से वैज्ञानिक अरबों साल पहले हुए महाविस्फोट (बिग बैंग) के बाद उत्पन्न स्थितियों का निर्माण प्रयोगशाला में करेंगे। इससे ब्रह्माण्ड के निर्माण को समझने में मदद मिलेगी।

क्या है वैज्ञानिकों का मकसद : वैज्ञानिकों का मकसद इन्हीं भारहीन कणों को खोजना है। कण भौतिकी के आधुनिक सिद्धांत स्टैंडर्ड मॉडल के अनुसार ये कण फरमियांस और बोसोन्स हैं।

फरमियान वैज्ञानिक एनरिक फरमी के नाम से जाने जाते हैं और बोसान भारतीय वैज्ञानिक सत्येंद्रनाथ बसु के नाम से जाने जाते हैं। भारत सरकार और सर्न के बीच करार के बाद आरआरकेट 1996 में सर्न से जुड़ा। एलएचसी के निर्माण से जुड़े बारह देशों में भारत भी शामिल हुआ।

आरआरकेट के पूर्व निदेशक डॉ. डीडी भवालकर तथा वर्तमान निदेशक डॉ. वीसी साहनी की महत्वपूर्ण भूमिका रही। आरआरकेट ने एलएचसी प्रकल्प के लिए उच्चशक्ति के विद्युत चुम्बक बनाकर दिए। इसके अलावा हार्डवेयर व दर्जनों अवयवों एवं प्रणालियों के विकास में सहयोग किया।

सर्न के अन्य प्रकल्प सीटीएफ- 3 व लिनेक-4 में भी आरआरकेट का योगदान है। यह इसकी अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक क्षमता तथा दक्षता को प्रमाणित करता है। (नईदुनिया)