गुरुवार, 28 मार्च 2024
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Written By ND

रिश्तों की उम्र को लगी नजर

रिश्तों की उम्र को लगी नजर -
सुबोध जै

मोहब्बत अब तिजारत बन गई है... अपने समय का यह मशहूर गीत आज भी प्यार के परवानों के लिए खास बना हुआ है। मगर जैसे ही दोनों परवाने अग्नि के सात फेरे लेते हैं, उसके कुछ समय बाद इस रिश्ते पर ठंडा पानी पड़ना शुरू हो जाता है। कल तक जिसका कुछ देर का साथ पाने के लिए नौजवान भंवरे की तरह मंडराता नजर आता था, शादी के बाद वही मदहोश आंखें अंगारे बरसाती नजर आती हैं और प्यार की खुमारी झटके से उतरनी शुरू हो जाती है।

शुरुआती दौर में प्यार का खुमार इस कदर सिर चढ़कर बोलने लगता है कि इनसान सब कुछ भूल मोहब्बत को जिंदगी का मकसद बना लेता है। प्यार के इस चढ़ते हुए खुमार में प्रेमिका की एक झलक पाने भर के लिए नौजवान घर से लेकर स्कूल, कॉलेज तथा दफ्तर तक के चक्कर लगाते नजर आते हैं। जिंदगी भर तारों की छाँव में रखकर हर एक आरजू पूरी करने का दावा ठोकते हैं।

मगर मोहब्बत के परवान चढ़ते ही प्यार की पूरी खुमारी ही काफुर होने लगती है। अग्नि के चारों ओर लगने वाले सात फेरे मोहब्बत की सारी आग ठंडी कर देते हैं। इसी के साथ शुरू हो जाती है वो हकीकत जिसमें आटे-दाल का भाव मोहब्बत का पूरा नशा उतार देता है। प्रेम के दौर में जिस प्रेमिका के लिए सब कुछ छोड़कर आस-पास मंडराने वाला नौजवान बिस्तर से उठने तक को तैयार नहीं होता।

मल्टीनेशनल फाइनेंस कंपनी में काम करने वाला आशीष मार्च के पूरे महीने इस कदर व्यस्त रहता था कि आराम करने का समय भी नहीं मिल रहा था। गुड़गाँव के दफ्तर से तिमारपुर के अपने घर तक का सफर भी उसे भारी लगता था। घरवालों के कहने पर तो किसी भी काम के लिए हिलने को तैयार नहीं होता था। इसी बीच प्रेमिका श्वेता ने बताया कि उसे रात में करनाल स्थित अपने घर जाना है। आशीष रात के नौ बजे ही घर से अपनी बाइक उठाकर सरायकाले खाँ बस अड्डे पहुँच गया। श्वेता को बाइक पर बैठा रात में करनाल तक छोड़ने भी चला गया। बिजी शेड्यूल और दिनभर की थकान के बावजूद करनाल तक जाने वाला ऐसा प्रेमी पाकर श्वेता भी निहाल हुए जा रही थी।

  इसे बदलते वक्त का चलन कहिए, धैर्य और सामंजस्य में कमी कहिए या फिर आधुनिकता का तकाजा - अब रिश्तों की उम्र कम होने लगी है।      
एक साल बाद घरवालों को मनाकर दोनों ने शादी कर ली। कुछ ही दिनों में प्यार का पुराना दौर खत्म होना शुरू हो गया। अब आशीष के पास श्वेता के लिए समय नहीं होता था। बेटा हुआ और कुछ साल के बाद स्कूल भी जाने लगा। अब सुबह के समय स्कूल बस आती है। तीसरी मंजिल पर रहने वाला आशीष अब श्वेता के लाख कहने पर भी बच्चे को स्कूल बस में बिठाने के लिए भी नीचे नहीं आता क्योंकि मोहब्बत की तिजारत अब काफुर हो चुकी है।