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क्या नरेंद्र मोदी ने गिराई मायावती और मुलायम के बीच 24 साल पुरानी नफरत की दीवार?

क्या नरेंद्र मोदी ने गिराई मायावती और मुलायम के बीच 24 साल पुरानी नफरत की दीवार? - Narendra Modi Mayawati and Mulayam
लखनऊ। कहावत है कि सियासत में कुछ भी असंभव नहीं है। राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है। ऐसा ही कुछ इस वक्त देश की सियासत की सबसे बड़ी प्रयोगशाला माने वाले राज्य उत्तर प्रदेश में हो रहा है। दिल्ली की सत्ता का रास्ता जिस उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है उस उत्तर प्रदेश में बीजेपी का विजयी रथ रोकने और मोदी को मात देने के लिए एक साथ आए धुर विरोधी 'बुआ' और 'बबुआ' की जोड़ी में अब एक नया सियासी इतिहास रचने जा रहे हैं।
 
लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन करने वाली सपा और बसपा के ये दोनों बड़े नेता अब एक मंच पर आकर एक साथ चुनावी रैलियां करते हुए दिखाई देंगे। दोनों ही नेता पूरे चुनाव प्रचार के दौरान 11 रैलियां एक साथ करेंगे। मायावती और अखिलेश की ये संयुक्त चुनावी रैली जहां पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर लोकसभा सीट से शुरू होगी तो आखिरी चुनावी रैली पूर्वी उत्तर प्रदेश के सबसे अहम इलाके बनारस में सोलह मई को अंतिम रैली के साथ खत्म होगी। इस दौरान दोनों नेता 13 अप्रैल को बदायूं, 16 अप्रैल को आगरा, 19 अप्रैल को मैनपुरी, 20 अप्रैल को रामपुर और फिरोजाबाद, एक मई को फैजाबाद, आठ मई को आजमगढ़, 13 मई को गोरखपुर और सोलह मई को बनारस में चुनावी रैली को संबोधित करेंगे।
 
25 साल बाद एक साथ नजर आएंगे मायावती-मुलायम : इस साल की शुरुआत में 12 जनवरी को लखनऊ में एक निजी होटल में जब समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने पहली बार एक साथ मीडिया के सामने आकर लोकसभा चुनाव के लिए अपने गठबंधन का ऐलान किया था तो समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने खुले तौर पर इस गठबंधन का विरोध किया था।
 
इसके बाद मुलायम ने बसपा के साथ सीट बंटवारे को लेकर भी अखिलेश को कई बार सार्वजनिक तौर पर लताड़ लगाई, लेकिन अब उन्हीं मुलायम जो मैनपुरी से सपा के टिकट पर चुनावी मैदान में हैं, के लिए बसपा प्रमुख मायावती ने 24 साल पुरानी नफरत को तिलाजंलि दे दी है। 1995 में लखनऊ के चर्चित गेस्ट हाउस कांड के बाद मायावती और मुलायम के बीच जो नफरत की दीवार 24 साल से खड़ी थी उसको इस लोकसभा चुनाव में मोदी को हराने की चाहत ने गिरा दिया।
 
ढाई दशक से अधिक समय तक अपने हर मंच से मुलायम को कोसने वाली मायावती अब मैनपुरी में उन्हीं मुलायम के लिए वोट मांगती हुई दिखाई देंगी। उत्तर प्रदेश की सियासत में मायावती ने जिन मुलायम का विरोध कर अपना सियासी अस्तित्व खड़ा किया था। अब वही मायावती अपना राजनीतिक वजूद बचाने के लिए उन्हीं को जिताने की अपील करती हुई दिखाई देंगी।
गेस्ट हाउस कांड ने खड़ी की थी नफरत की दीवार : उत्तर प्रदेश की सियासत में 1995 के गेस्ट हाउस कांड को राजनीति में काले इतिहास के तौर पर याद किया जाता है। उस वक्त उत्तर प्रदेश में सत्ता में काबिज समाजवादी पार्टी के विधायक और कार्यकर्ताओं ने गेस्ट हाउस में मायावती पर जानलेवा हमला किया था। खुद मायावती ने पुलिस में जो शिकायत की थी उसमें सपा विधायकों के नाम शामिल थे। 1993 में यूपी में सपा और बसपा गठबंधन के तहत चुनाव लड़ा था।
 
चुनाव के बाद मुलायम उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और बसपा ने सरकार को बाहर से समर्थन दिया लेकिन इस बीच बसपा और बीजेपी के बीच दोस्ती बढ़ने लगी। जैसे ही बसपा ने सपा सरकार से हाथ खींचने और बीजेपी से हाथ मिलाने के संकेत दिए बड़ी संख्या में सपा के विधायक और नेता गेस्ट हाउस में अपने पार्टी के नेताओं के साथ बैठक कर रहीं मायावती और बसपा नेताओं पर धावा बोल दिया। मायावती ने एक कमरे में छिपकर अपनी जान बचाई थी। बाद में मायावती ने सपा विधायकों और मुलायम सिंह पर अपनी हत्या की कोशिश करने का आरोप लगाया था। इसके बाद सपा और बसपा उत्तर प्रदेश की सियासत में धुर विरोधी हो गए थे।
 
अस्तित्व बचाने का लोकसभा चुनाव : 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में मोदी की प्रचंड लहर ने मायावती की पार्टी को जड़ से उखाड़ फेंका था। 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश में तीन बार सरकार बनाने वाली मायावती की पार्टी बसपा का एक भी उम्मीदवार नहीं जीत सका था। मायावती की इस करारी हार के बाद मायावती के सियासी अस्तित्व पर सवाल उठने लगा था लेकिन पिछले साल गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीटों के उपचुनाव में सपा को मायावती ने अपना समर्थन देकर अपने सियासी अस्तित्व को बचाए रखने के लिए जो दांव चला था वो कारगर साबित हुआ। इसके बाद दोनों ही दल लोकसभा चुनाव में मोदी को मात देने के लिए एक मंच पर आ गए।
 
बीजेपी ने कसा तंज : मायावती के मुलायम के लिए चुनाव प्रचार करने पर तंज कसते हुए केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने कहा कि जब गेस्ट हाउस में उन पर हमला हुआ था तब ब्रह्मदत्‍त द्विवेदी थे, अब वो नहीं हैं तो मैं हूं, अब जैसे ही उनको संकट आए तो मेरा मोबाइल नंबर रखें और तुरंत मुझे फोन करें। सपा के लोग उन पर हमला जरूर करेंगे। 
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