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Written By Author अरविन्द तिवारी
Last Updated : गुरुवार, 28 मार्च 2019 (18:56 IST)

लोकसभा चुनाव 2019 : बेटे की हार के बाद फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं कांतिलाल भूरिया

लोकसभा चुनाव 2019 : बेटे की हार के बाद फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं कांतिलाल भूरिया - Jhabua-Ratlam loksabha seat Kantilal Bhuria
एक बार फिर लोकसभा के लिए दस्तक दे रहे कांग्रेस के कद्दावर नेता कांतिलाल भूरिया के लिए इस बार भाजपा से ज्यादा कांग्रेसी परेशानी का सबब बने हुए हैं। विधानसभा चुनाव में बेटे विक्रांत भूरिया की हार के बाद फूंक-फूंक कर कदम रख रहे भूरिया के लिए अभी भाजपा को शिकस्त देने की रणनीति बनाने से पहले कांग्रेसियों को साधने में पूरी ताकत लगाना पड़ रही है।
 
 
झाबुआ-रतलाम संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार बनाए जा चुके भूरिया इन दिनों हर विधानसभा क्षेत्र में पहुंचकर पार्टी के उन नेताओं को साधने में लगे हैं, जो उनसे नाराज हैं। भूरिया से नाराज कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने पिछले विधानसभा चुनाव में एकजुट होकर उनके बेटे डॉ. विक्रांत की झाबुआ विधानसभा क्षेत्र से हार तय करवा दी थी।
 
 
कांग्रेस के यह नेता भाजपा उम्मीदवार गुमानसिंह डामोर और निर्दलीय चुनाव लड़े कांग्रेस के बागी जेवियर मेड़ा के लिए मददगार साबित हुए थे। भूरिया के राजनीतिक कद के सामने अपने को बौना महसूस करने वाले 8 विधानसभा क्षेत्रों के ये नेता फिर एकजुट होते नजर आ रहे हैं। इनका मानना है कि भूरिया से हिसाब बराबर करने का इससे बेहतर मौका फिर नहीं मिलेगा।
 
इन नेताओं में इस संसदीय क्षेत्र के तीन विधायकों के अलावा पूर्व में विधानसभा चुनाव लड़ चुके पार्टी के चार दिग्गज और कुछ वो नेता भी शामिल हैं, जो एक समय यहां की राजनीति में भूरिया के खासमखास हुआ करते थे। इसी के चलते चुनाव प्रचार शुरू करने के पहले भूरिया इन नेताओं की नाराजगी दूर करने में लगे हैं।
 
 
टिकट घोषित होने के दूसरे दिन ही वे रतलाम पहुंच गए थे और उन सब नेताओं के यहां उन्होंने दस्तक दी, जो उनसे नाखुश हैं। अपनी जरूरत के मुताबिक सबको साधने में माहिर भूरिया के लिए रतलाम शहर में विधानसभा चुनाव में हुई कांग्रेस की करारी हार के अंतर को पाटना बहुत जरूरी है। 
 
लोकसभा उपचुनाव के दौरान यहां के तमाम कांग्रेस नेताओं ने सभी आग्रह और दुराग्रह को ताक में रख भूरिया की खुलकर मदद की थी। तब दिग्विजय सिंह के खासमखास महेश जोशी ने रतलाम में ही डेरा डाल दिया था और वे भूरिया और कांग्रेस के दूसरे दिग्गजों के बीच सेतु बने थे। यहां के कांग्रेसियों का आरोप है कि जीतने के बाद भूरिया ने उनकी कद्र नहीं की और उनके इर्द-गिर्द वे लोग मजमा जमा बैठे जिनके कारण वे 2014 का लोकसभा चुनाव हारे।
 
 
रतलाम ग्रामीण में भी कुछ ऐसी ही स्थिति है। यहां लोकसभा उपचुनाव के दौरान विक्रांत भूरिया ने कमान अपने हाथ में ली थी और सबको संतुष्ट रखा था। भतीजी कलावती के जोबट से विधायक बनने और नागरसिंह चौहान के अलीराजपुर से चुनाव हारने के बाद अलीराजपुर जिले में भूरिया की स्थिति सुधरी है।
 
अपने से नाराज महेश पटेल को उन्होंने अलीराजपुर जिला कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर अपने पाले में कर लिया है। महेश के भाई विधायक मुकेश पटेल जरूर ईमानदारी से उनकी मदद कर रहे हैं। यहां कलावती और महेश मिलकर भूरिया की राह को आसान कर सकते हैं। पेटलावद के विधायक वेलसिंह भूरिया और थांदला के विधायक वीरसिंह भूरिया पर भी सांसद के विरोधियों ने डोरे डालना शुरू कर दिए हैं। ये दोनों विधायक कभी भी सांसद की पहली पसंद नहीं रहे। 2013 में तो वीरसिंह और भूरिया के संबंध बहुत तल्ख हो गए हैं और इसी कारण वीरसिंह को उम्मीदवारी से वंचित होना पड़ा था।
 
 
भाजपा ने हालाकि यहां से अभी तक अपना उम्मीदवार तय नहीं किया है, लेकिन यह माना जा रहा है कि यहां से संघ की पसंद को तरजीह दी जाएगी। झाबुआ के विधायक गुमानसिंह डामोर इन दिनों संघ के प्रिय पात्र हैं और विधानसभा चुनाव के दौरान सेवा भारती ने जिस तरह से उनके पक्ष में मोर्चा संभाला था, उसके बाद ही उनकी राह कुछ आसान हुई थी। संघ की पहली पसंद इस बार भी डामोर को ही माना जा रहा है।
 
जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष रह चुके गोरसिंह वसुनिया भी टिकट की दौड़ में हैं। तीसरा नाम उपचुनाव में भूरिया से हारने के बाद विधानसभा चुनाव भी हार चुकीं निर्मला भूरिया का है। पर इन सबसे पहले भूरिया को अपनी ही पार्टी के नेताओं से निपटना पड़ रहा है। इनमें बहुत से ऐसे नेता भी शामिल हैं जो एक समय उनके खासमखास हुआ करते थे और अब विरोधियों की कतार में हैं।
 
 
इसका एक कारण यह भी है कि बेटे विक्रांत के भूरिया के साथ सक्रिय होने के बाद इन नेताओं से पूछ-परख कम हो गई थी और यह अपने क्षेत्र की राजनीति में अप्रांसगिक माने जाने लगे थे।
 
समर्थन देने की घोषणा कर चुके जेवियर पर है सबकी नजर : मुख्यमंत्री से मुलाकात के बाद कांग्रेस में वापसी की घोषणा कर चुके जेवियर मेड़ा पर भी सबकी नजर है। हालांकि जेवियर यह कह चुके हैं कि पार्टी जिसे भी उम्मीदवार बनाएगी, उसकी वे खुलकर मदद करेंगे, लेकिन इस पर भूरिया समर्थकों को भरोसा नहीं है। 
 
इन लोगों का कहना है कि जिस तरह लोकसभा उपचुनाव के दौरान जेवियर ने भाजपा से हाथ मिलाकर भूरिया के खिलाफ काम किया था, वैसे ही स्थिति इस बार भी बन सकती है।
 
जेवियर समर्थक यह मानते हैं कि जब तक झाबुआ की राजनीति में कांतिलाल भूरिया का दबदबा है, तब तक जेवियर का आगे आना बहुत मुश्किल है। विधानसभा चुनाव में 30 हजार से ज्यादा मत लाकर जेवियर ने डॉ. विक्रांत की शिकस्त तय कर दी थी।
 
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण वेबदुनिया के नहीं हैं और वेबदुनिया इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है)
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