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Written By WD

व्यंग्य रचना : झाड़ू महाराज आपको शत-शत नमन

व्यंग्य रचना : झाड़ू महाराज आपको शत-शत नमन - व्यंग्य रचना : झाड़ू महाराज आपको शत-शत नमन
सरिता बरारा 
 
एक जमाना था जब लोग झाड़ू को ऐसी जगह रखते थे, जहां किसी की नजर भूले से भी उस पर न पड़े। किसी दरवाजे के पीछे, पलंग के नीचे या स्टोर में जिसमें दुनियाभर का रद्दी माल जमा रहता। बस उसकी औकात वहीं रहने की थी। 
 

 

 
लेकिन अब तो झाड़ू के दिन फिर गए हैं। अब लोग उसे छुपाकर नहीं, सजाकर रखते हैं जैसे वह कोई ट्रॉफी या मेडल हो और जिसे देखते ही लोग समझ लें कि वह किसी बड़े नेता नहीं तो कम से कम से नेता के करीबी या फिर किसी बड़ी हस्ती से नाता रखती हैं। 
 
और तो और, अब फूलमाला की कम झाड़ू की कदर ज्यादा होने लगी है और क्यों न हो। पहले नेताओं के गले में माला रहने से उनकी शोभा बढ़ती थी अब हाथ में झाड़ू पकड़ने में उनकी शान है। 
 
यकीन न हो तो आप किसी भी दिन का अखबार उठा लें। यह हो ही नहीं सकता कि आपको किसी नेता, अधिकारी या किसी लोकप्रिय अभिनेता या खिलाड़ी के हाथ में झाड़ू लिए तस्वीर देखने को न मिले। झाड़ू पकड़ने की जैसे होड़ लग गई है। अवसर कोई भी हो, झाड़ू जब तक हाथ में नहीं होती तब तक लगता है कुछ खाली-खाली-सा है।
 
बेकदरे झाड़ू को धर के किसी सड़े कोने से उठाकर इज्जत बख्शने का सेहरा तो खैर केजरीवाल के सर पर ही बंधना चाहिए। और कहना न होगा झाड़ू ने भी इस इज्जत अफजाही (बढ़ाने) का कर्ज उन्हें दिल्ली की गद्दी पर बिठाकर अदा कर दिया था। अगर उन्होंने उसे पलक झपकते ही गंवा दिया तो इसका दोष झाड़ू के सिर नहीं मढ़ा जा सकता।
 
खैर जो भी हो, केजरीवाल को फिर दिल्ली की गद्दी मिले न मिले यह फिलहाल कहना मुश्किल है, पर झाड़ू जिसने सफलता का मुख चूम लिया है उसके पीछे मुड़कर देखने का सवाल नहीं। उसके सितारे बुलंद हैं बाकी किसी के हो या नहीं। और अब तो दिल्ली में चुनाव होना तय है तो समझो झाड़ू का महत्व और बढ़ गया है।
 
अब झाड़ू से जगह-जगह फैला कचरा, भ्रष्टाचार या मन की मैल खत्म होती है या नहीं, उस पर ज्यादा दिमाग खर्च करने की जरूरत नहीं, क्योंकि इसका जवाब तो बड़े से बड़े विद्धान या हकीम लुकमान के पास भी नहीं। पर जहां तक झाड़ू का सवाल है वह तो ख्याति के शिखर पर है यानी कि वह शान से सिंहासन पर बैठ चुकी है और वहां से झाड़ूजी को हटाना अब आसान नहीं।
 
....तो झाड़ू महाराज आपको मेरा शत-शत नमन!