एक प्रश्न ज्योतिषियों से अक्सर पूछा जाता है कि 'जब एक ही समय पर विश्व में कई बच्चे जन्म लेते हैं, तो उनकी जन्मकुंडली एक जैसी होने के बावजूद उनका जीवन भिन्न कैसे होता है?' ज्योतिष पर विश्वास नहीं करने वालों के लिए यह प्रश्न ब्रह्मास्त्र की तरह है। यह प्रश्न बड़े से बड़े ज्योतिष के जानकार की प्रतिष्ठा ध्वस्त करने की सामर्थ्य रखता है।
जब इस ब्रह्मास्त्ररूपी प्रश्न का प्रहार मुझ पर किया गया, तब मैंने ढाल के स्थान पर ज्योतिष शास्त्ररूपी अस्त्र से इसे काटना श्रेयस्कर समझा। इसे प्रश्न के संबंध में मैंने बहुत अनुसंधान किया। कई वैज्ञानिकों के ब्रह्मांड विषयक अनुसंधानों के निष्कर्षों की पड़ताल की। कई सनातन ग्रंथों को खंगाला और अपने कुछ वर्षों के ज्योतिषीय अनुभव को इसमें समावेशित करने के उपरांत मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि किसी जातक के जीवन निर्धारण में केवल उसके जन्म-समय की ही नहीं, अपितु गर्भाधान-समय एवं प्रारब्ध (पूर्व संचित कर्म) की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
इस प्रकार ज्योतिष तीन आयामों पर आधारित है। ये 3 आयाम हैं- 1. प्रारब्ध, 2. गर्भाधान-समय, 3. जन्म-समय। इन्हीं 3 महत्वपूर्ण आयामों अर्थात जन्म-समय, गर्भाधान-समय और प्रारब्ध के समेकित प्रभाव से ही जातक का संपूर्ण जीवन संचालित होता है। किसी जातक की जन्म पत्रिका के निर्माण में जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व है, वह है 'समय'। जन्म-समय को लेकर भी ज्योतिषाचार्यों में मतभेद हैं। कुछ विद्वान शिशु के रोने को जन्म का सही समय मानते हैं, तो कुछ नाल-विच्छेदन को सही ठहराते हैं।
खैर; यहां हमारा मुद्दा जन्म-समय नहीं है। किसी भी जातक की जन्म पत्रिका निर्माण के लिए उसके जन्म का सही समय ज्ञात होना अति-आवश्यक है। अब जन्म-समय तो ज्ञात किया जा सकता है किंतु गर्भाधान का समय ज्ञात नहीं किया जा सकता। इसलिए हमारे शास्त्रों में 'गर्भाधान-संस्कार' के द्वारा बहुत सीमा तक उस समय को ज्ञात करने की व्यवस्था है।
अब यह तथ्य वैज्ञानिक अनुसंधान द्वारा स्पष्ट हो चुका है कि माता-पिता का पूर्ण प्रभाव बच्चे पर पड़ता है, विशेषकर मां का, क्योंकि बच्चा मां के पेट में 9 माह तक आश्रय पाता है। आजकल सोनोग्राफी और डीएनए जैसी तकनीक इस बात को प्रमाणित करती है। अत: जिस समय एक दंपति गर्भाधान कर रहे होते हैं, उस समय ब्रह्मांड में नक्षत्रों की व्यवस्था और ग्रह स्थितियां भी होने वाले बच्चे पर अपना पूर्ण प्रभाव डालती हैं। इस महत्वपूर्ण तथ्य को ध्यान में रखते हुए हमारे शास्त्रों में गर्भाधान के मुहूर्त की व्यवस्था है।
गर्भाधान का दिन, समय, तिथि, वार, नक्षत्र, चंद्र-स्थिति, दंपतियों की कुंडलियों का ग्रह-गोचर आदि सभी बातों का गहनता से परीक्षण के उपरांत ही गर्भाधान का मुहूर्त निकाला जाता है। अब यदि किन्हीं जातकों का जन्म इस समान त्रि-आयामी व्यवस्था में होता है (जो असंभव है); तो उनका जीवन भी ठीक एक जैसा ही होगा, इस बात में तनिक भी संदेह नहीं है।
यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि हमें इन तीन आयामों में से केवल एक आयाम अर्थात जन्म-समय ज्ञात नहीं होता, दूसरा आयाम अर्थात गर्भाधान-समय सामान्यत: हमें ज्ञात नहीं होता किंतु उसे ज्ञात किया जा सकता है, परंतु तीसरा आयाम अर्थात प्रारब्ध न तो हमें ज्ञात होता है और न ही सामान्यत: उसे ज्ञात किया जा सकता है। इसलिए इस समूचे विश्व में एक ही समय जन्म लेने वाले व्यक्तियों का जीवन एक-दूसरे से भिन्न पाया जाता है।
मेरे देखे ज्योतिष मनुष्य के भविष्य को ज्ञात करने वाली पद्धति का नाम है। ये पद्धतियां भिन्न हो सकती हैं एवं इन्हें देश, काल व परिस्थिति अनुसार समय-समय पर अद्यतन (अपडेट) करने की भी आवश्यकता है। एक सिद्धयोगी भी किसी व्यक्ति के बारे में उतनी ही सटीक भविष्यवाणी कर सकता है जितनी कि एक जन्म पत्रिका देखने वाला ज्योतिषी या हस्तरेखा विशेषज्ञ कर सकता है और यह भी संभव है कि इन तीनों में योगी सर्वाधिक प्रामाणिक साबित हो।
'ज्योतिष' एक समुद्र की भांति अथाह है। इसमें जितने गहरे उतरेंगे, आगे बढ़ने की संभावनाएं भी उतनी ही बढ़ती ही जाएंगी। जब तक भविष्य है, तब तक 'ज्योतिष' भी है। अत: ज्योतिष के संबंध में क्षुद्र और संकुचित दृष्टिकोण अपनाकर केवल अपने अहं की तुष्टि के लिए प्रश्न उठाने पर इसके विराट स्वरूप को समझकर जीवन में इसकी महत्ता को स्वीकार करना संदेह की अपेक्षा अधिक लाभप्रद है।
-ज्योतिर्विद् पं हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र
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साभार : ज्योतिष : एक रहस्य