शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. डॉयचे वेले
  3. डॉयचे वेले समाचार
  4. Weapon
Written By
Last Modified: मंगलवार, 19 जून 2018 (15:08 IST)

आम लोगों के पास सेनाओं से ज्यादा बंदूकें

आम लोगों के पास सेनाओं से ज्यादा बंदूकें | Weapon
दुनिया भर की सेनाओं से ज्यादा बंदूकें सिर्फ अमेरिकी नागरिकों के पास हैं। जेनेवा ग्रैजुएट इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट ने आम लोगों के पास मौजूद हथियारों का विस्तार से जिक्र किया है।
 
जेनेवा के ग्रैजुएट इंस्टीट्यूट के सर्वे के मुताबिक 2006 में दुनिया भर में आम नागरिकों के पास 65 करोड़ बंदूकें थीं जबकि 2017 में यह संख्या बढ़कर 85.7 करोड़ हो गई। सर्वे में कहा गया है कि दुनिया भर की सेनाओं के पास 13.3 करोड़ बंदूकें हैं। पुलिस और कानून व्यवस्था से जुड़ी संस्थाओं के पास 2.3 करोड़ बंदूकें हैं।
 
शोध के वरिष्ठ लेखकों में शामिल एरॉन कार्प ने संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि सबसे ज्यादा बुरी स्थिति अमेरिका में है। न्यू यॉर्क में कार्प ने कहा, "आम अमेरिकी लोग हर साल करीब 1.4 करोड़ नई या आयातित बंदूकें खरीद रहे हैं।" अमेरिका में इस वक्त आम नागरिकों के पास 39.3 करोड़ बंदूकें हैं। दुनिया भर में जितनी बंदूकें हैं, उनका 40 फीसदी हिस्सा अमेरिकी नागरिकों के पास है।
 
सर्वे टीम के मुताबिक बंदूकों के चलते होने वाली हिंसा हर साल 7,40,000 लोगों की जान लेती है। ज्यादातर मौतें उन देशों में होती हैं जहां कोई सशस्त्र संघर्ष नहीं छिड़ा हुआ है। रिपोर्ट में हैंडगन, राइफल, शॉर्टगन और मशीन गनों को बंदूकों की श्रेणी में रखा गया है। स्मॉल आर्म्स सर्वे के निदेशक एरिक बेरमन कहते हैं, "गैरकानूनी हथियार, सशस्त्र हिंसा के पैमाने और लोगों की सुरक्षा से जुड़ी भावना को बेहतर ढंग से समझने के लिए और काम की जरूरत है।"
 
सर्वे के दौरान सिर्फ 28 देशों ने अपनी सेना और कानून व्यवस्था से जुड़ी एजेंसियों के हथियारों का ब्यौरा दिया। नागरिकों के रजिस्टर्ड हथियारों का डाटा 133 देशों से जुटाया गया। सर्वे के अनुसार नागरिकों के पास लाइसेंसशुदा और गैर लाइसेंसशुदा हथियारों की संख्या के मामले में अमेरिका में 39.3 करोड़, भारत में 7.1 करोड़ और पाकिस्तान में 4.4 करोड़ हथियार हैं।
 
(दुनिया के अलग अलग हिस्सों में जारी संघर्षों में बच्चे न सिर्फ पिस रहे हैं, बल्कि उनके हाथों में बंदूकें भी थमाई जा रही हैं। एक नजर उन देशों पर जहां बच्चों को लड़ाई में झोंका जा रहा है।)
 
ओएसजे/एमजे (एएफपी, एपी)
ये भी पढ़ें
क्या कोई इंसान अपनी मातृभाषा या जन्मजात भाषा को भूल सकता है?