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Last Modified: गुरुवार, 9 मई 2019 (11:07 IST)

वाराणसी में क्यों खारिज हुए दर्जनों नामांकन

वाराणसी में क्यों खारिज हुए दर्जनों नामांकन | Varanasi Nomination
वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ बड़े पैमाने पर नामांकन पत्र ख़ारिज होने के बावजूद उन्हें विभिन्न राज्यों के दो दर्जन से अधिक उम्मीदवारों से चुनौती मिल रही है।
 
 
2014 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी सीट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ 42 उम्मीदवार मैदान में थे। इस बार इस संसदीय सीट से कुल 102 उम्मीदवारों ने 119 नामांकन भरे थे लेकिन निर्वाचन अधिकारी ने 72 उम्मीदवारों के पर्चे तकनीकी खामियों और गलत जानकारियों के चलते अवैध घोषित कर दिए। फिर पांच अन्य उम्मीदवारों ने नामांकन वापस ले लिए और अब इस वाराणसी सीट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कुल 26 उम्मीदवार मैदान में हैं।
 
 
अब प्रधानमंत्री के खिलाफ चुनाव लड़ने वालों में समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार शालिनी यादव और कांग्रेस उम्मीदवार अजय राय के अलावा हॉकी खिलाड़ी मोहम्मद शाहिद की बेटी हिना शाहिद, तेलंगाना के किसान इसतारी सुन्नम और जेल में बंद निर्दलीय उम्मीदवार अतीक अहमद शामिल हैं। समाजवादी पार्टी की ओर से नामांकन दाखिल करने वाले बीएसएफ के चर्चित जवान तेज बहादुर यादव का पर्चा भी खारिज कर दिया गया था।

 
पहली बार पेश आई है ऐसी चुनौती
ऐसा माना जा रहा है कि किसी मौजूदा प्रधानमंत्री के खिलाफ इतनी बड़ी संख्या में नामांकन का ये शायद पहला मौका हो। इससे पहले 2014 के चुनाव में 62 लोगों ने पर्चा दाखिल किया था जिसमें नामांकन पत्रों की जांच के बाद कुल 41 उम्मीदवार मैदान में रह गए थे। इस बार पर्चा दाखिल करने वालों में सात अलग-अलग राज्यों के लोग तो थे ही, कई दिलचस्प उम्मीदवार भी थे।
 
 
नामांकन दाखिल करने वालों में तेलंगाना के कई किसानों के अलावा नरेंद्र मोदी के हमशक्ल अभिनंदन पाठक, गोरखपुर से आए एक ‘अर्थी बाबा' तो बीएसएफ की वर्दी में लोगों से वोट की अपील करने चुनावी अखाड़े में उतरे तेज बहादुर यादव भी थे। पहले निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर आए तेज बहादुर यादव को बाद में समाजवादी पार्टी ने अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया था। इधर उनका प्रचार जोर पकड़ने ही लगा था कि ऐन मौके पर सेना के इस पूर्व जवान का पर्चा खारिज कर दिया गया।
 
 
पहले ये भी चर्चा थी कि कांग्रेस प्रियंका गांधी को वाराणसी से अपना उम्मीदवार बना सकती है और अन्य विपक्षी दल उनका समर्थन कर सकते हैं। लेकिन प्रियंका गांधी के चुनाव न लड़ने पर सपा-बसपा गठबंधन ने भी अपना उम्मीदवार उतार दिया। बड़ी संख्या में पर्चे खारिज होने को लेकर काफी विवाद भी हुआ और तेज बहादुर यादव तो इस मामले को लेकर कोर्ट भी पहुंच चुके हैं।
 
 
कई राज्यों के लोगों से है मुकाबला
किसानों की समस्या लेकर तेलंगाना और महाराष्ट्र के तमाम किसानों ने नामांकन किया था लेकिन ज्यादातर के नामांकन रद्द कर दिए गए। यह देखना दिलचस्प रहा कि नामांकन के आखिरी दिन पेरोल न मिलने पर जेल से ही पर्चा दाखिल करने वाले अतीक अहमद का नामांकन पूरी तरह दुरुस्त पाया गया और वे निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर नरेंद्र मोदी को चुनौती दे रहे हैं। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में बीजेपी सरकार की सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने भी वाराणसी में अपना उम्मीदवार उतार रखा है।
 
 
क्या इसके पीछे है कोई साजिश
वाराणसी में नामांकन पत्रों की वैधता को लेकर भारी विवाद और हंगामा मचा हुआ है। लगभग दो तिहाई नामांकन पत्रों को खारिज करने के पीछे विपक्षी दल प्रशासन और निर्वाचन अधिकारियों की साजिश बता रहे हैं। तेज बहादुर यादव तो ये मामला कोर्ट में ले ही गए हैं, अपने उम्मीदवार का नामांकन खारिज होने के बाद विद्या मठ के स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद नाराज होकर साधु-संतों के साथ जिला निर्वाचन आयोग के खिलाफ नारेबाजी करते हुए धरने पर बैठ गए।
 
 
अविमुक्तेश्वरानंद अखिल भारतीय राम राज्य परिषद के उम्मीदवार का नामांकन पत्र खारिज होने से नाराज थे। उनका कहना था, "सरकार ने हमारे उम्मीदवार से डर कर निर्वाचन अधिकारियों पर नामांकन खारिज करने के लिए दबाव डाला है। नामांकन में जो कमी बताई जा रही है, वो कमी उसमें है ही नहीं।” हालांकि बाद में उन्होंने अपना धरना समाप्त कर दिया।
 
 
वहीं बीएसएफ के बर्खास्त सिपाही तेज बहादुर का नामांकन इस आधार पर रद्द किया गया कि उनके दो हलफनामों में दिए गए तथ्यों में अलग-अलग जानकारी थी। तेज बहादुर ने एक हलफनामा निर्दलीय के रूप में भरा था, जबकि दूसरा उन्होंने समाजवादी पार्टी उम्मीदवार के रूप में दाखिल किया था।
 
 
वाराणसी के बाहर भी आई समस्या
नामांकन पत्रों को रद्द करने का विवाद सिर्फ वाराणसी में ही नहीं बल्कि कई अन्य जगहों पर भी हुआ है। अंबेडकरनगर और बांसगांव सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार के ही पर्चे खारिज हो गए जबकि गोरखपुर में हिन्दू युवा वाहिनी के अध्यक्ष और किसी समय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बेहद करीबी रहे सुनील सिंह का पर्चा खारिज होना भी विवाद और चर्चा का विषय बना हुआ है।
 
 
पर्चे खारिज होने के संबंध में निर्वाचन अधिकारियों की ओर से जिस तरह के कारण बताए गए हैं, वो इस आशंका को और बढ़ा देते हैं कि इसमें जल्दबाजी की गई है। मसलन, कुछ नामांकन इसलिए खारिज कर दिए गए कि संबंधित जगह पर उम्मीदवार ने हस्ताक्षर नहीं किए थे या फिर कुछ और। नामांकन दाखिल करते समय कोई जिम्मेदार प्रत्याशी हस्ताक्षर करना भूल जाए, इसकी गुंजाइश कम ही रहती है। क्योंकि यदि वह भूल भी गया तो साथ में मौजूद प्रस्तावक जरूर उसे याद दिला देगा। हां, दस्तावेजों में गड़बड़ी की वजह से खारिज होना समझा जा सकता है।
 
 
निर्वाचन अधिकारियों का किसी दबाव से इंकार
जहां तक वाराणसी का सवाल है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीत वहां लगभग तय मानी जा रही है। लेकिन तेजबहादुर यादव के प्रति जिस तरह से समर्थन का माहौल बन रहा था, उससे ये आशंका भी थी कि शायद वो मजबूती से चुनाव लड़ लें। यही नहीं, विपक्ष की योजना ये भी थी कि यदि तेज बहादुर का नामांकन रद्द न होता तो कांग्रेस भी अपने उम्मीदवार का नाम वापस लेकर तेज बहादुर को ही विपक्ष का संयुक्त उम्मीदवार बना देती। नामांकन खारिज करने में ‘दबाव' संबंधी आशंकाओं को ऐसी ही कुछ बातों से और बल मिल रहा है।
 
 
हालांकि निर्वाचन अधिकारियों ने ऐसी किसी भी आशंका और आरोप को सिरे से खारिज किया है। हालांकि इतने बड़े पैमाने पर नामांकन खारिज होने की और भी वजहें हो सकती हैं। वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र कहते हैं, "बड़े नेता के खिलाफ कुछ लोग सिर्फ चर्चा में आने के लिए भी नामांकन करते हैं। उन्हें भी पता होता है कि नामांकन खारिज हो जाएगा। हालांकि मोदी के खिलाफ एक बड़ी संख्या उन किसानों की थी जो किसानों की आत्महत्याओं से नाराज थे और उन्होंने विरोध स्वरूप नामांकन किया था। नामांकन के साथ लगने वाले दस्तावेज और जरूरी जानकारी भरने में अक्सर गलती हो जाती है। इसकी वजह से भी नामांकन खारिज हो जाते हैं।”
 
 
निर्वाचन आयोग ने पिछले कुछ समय से नामांकन की शर्तें भी कुछ कड़ी की हैं ताकि ऐसे ज्यादातर उम्मीदवार नामांकन न कर पाएं जो गंभीर नहीं होते। बहरहाल, वजह जो भी हो लेकिन चुनिंदा सीटों पर ही इतनी बड़ी संख्या में नामांकन खारिज होने पर आशंकाएं तो उठती ही हैं।
 
 
रिपोर्ट समीरात्मज मिश्र
 
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