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Written By DW
Last Modified: बुधवार, 27 मई 2020 (09:31 IST)

'मेक इन इंडिया' को कितना फायदा मिल सकता है चीन के नुकसान का

'मेक इन इंडिया' को कितना फायदा मिल सकता है चीन के नुकसान का - How much benefit can Make in India get from China's losses
- टिमोथी कुक
कोरोना वायरस (Corona virus) कोविड-19 के बाद के काल में दुनिया के कई अमीर देश चीन पर अपनी निर्भरता कम करना चाह रहे हैं। भारत के हाईटेक मैन्युफैक्चरिंग उद्योग को इसका बड़ा फायदा मिल सकता है।

पूरी दुनिया में फैली चीनी कंपनियों के लिए यह साल बुरा रहा है। अमेरिका के साथ चीन की टैरिफ और ट्रेड वॉर के कारण पहले ही कई कंपनियां यह सोचने लगी थीं कि सप्लाई चेन को और सुरक्षित कैसे बनाएं और कहां चीजों का निर्माण करें और कहां बेचें? कई अन्य कंपनियां इसलिए भी दूसरे विकल्प तलाश रही थीं, क्योंकि वहां लेबर का खर्च ऊंचा हो गया था और पर्यावरण को लेकर कानून और कड़े।

फिर कोरोना वायरस के कारण फैली महामारी ने चीन के लिए हालात और मुश्किल बना दिए। इसके कारण शटडाउन हुए और लोगों को मजबूरन नौकरी से दूर रहना पड़ा। फैक्टरी, दुकानें, रेस्तरां दुनियाभर में प्रभावित हुए और लाखों लोगों की नौकरियां गईं और देशों की अर्थव्यवस्थाएं मंदी का मुंह देखने लगीं। हालांकि अब कई देशों में कारोबार-धंधे खुल गए हैं फिर भी उन्हें पहुंचे नुकसान की भरपाई होने के फिलहाल आसार नहीं हैं।

चीन पर सबकी नजर बनी है वायरस के उद्गम स्थल के रूप में और कारोबार करने की जगह के रूप में। उसके खिलाफ अमेरिका सबसे ज्यादा मुखर रहा है लेकिन कुछ और देश भी अपने निर्माण सेक्टर का कामकाज कहीं और ले जाने की सोच रहे हैं। भारत में अर्थव्यवस्था और बेरोजगारी की हालत चिंताजनक हो चली थी और उसके ऊपर से कोरोना महामारी का संकट भी आ गया।

तकनीक में संभावनाएं
भारत के लिए इसमें बड़े मौके हो सकते हैं। भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए 20 खरब रुपयों (266 अरब डॉलर) के पैकेज की घोषणा कर चुके हैं। इस योजना के अंतर्गत करीब 60 अरब डॉलर छोटे कारोबारियों, कर्जदाताओं और ऊर्जा कंपनियों को कर्ज के रूप में मुहैया कराए जाएंगे। इन योजनाओं का लक्ष्य भारत को एक आकर्षक पार्टर देश के रूप में स्थापित करना है। मोदी ने कहा कि इन सुधारों से कारोबार को बढ़ावा मिलेगा, निवेश आएगा और 'मेक इन इंडिया' को और मजबूती मिलेगी।

भारत ने अप्रैल में एक नई प्रोत्साहन योजना की शुरुआत की जिसे प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेटिव स्कीम (पीएलआई) फॉर लार्ज स्केल इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग नाम दिया गया है। यह योजना मोबाइल फोन बनाने वाली और खास इलेक्ट्रॉनिक पुरजे बनाने वाली कंपनियों के लिए है ताकि उन्हें काम शुरू करने या अपनी घरेलू निर्माण क्षमता को और बढ़ाने की दिशा में आर्थिक प्रोत्साहन दिया जाए।

एविएशन
भारत में कोरोना वायरस का सबसे ज्यादा असर पर्यटन क्षेत्र पर पड़ा है। विदेशी पर्यटकों के लिए यही समय भारत आने के लिए अनुकूल है। लेकिन फ्लाइट्स रद्द होने के कारण लोग भारत नहीं आ पा रहे हैं जिस कारण बुकिंग रद्द हो रही हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक अब तक 15 हजार करोड़ रुपए के टिकट रद्द हो चुके हैं।

तकनीकी चीजों के निर्माण के क्षेत्र में कार्यरत कंपनियों को 1 अगस्त 2020 से 2025 के बीच की 5 साल की अवधि तक 'मेक इन इंडिया' उत्पादों पर 4 से 6 फीसदी तक का प्रोत्साहन दिया जा सकता है। भारत सरकार के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग के कुल वैश्विक कारोबार में भारत की हिस्सेदारी 2012 के 1.3 फीसदी से बढ़कर 2018 में 3 फीसदी कर पहुंच चुकी है।

नई योजना का मकसद इस हिस्सेदारी को और बढ़ाना है। द गैजेट ऑफ इंडिया में प्रकाशित आधिकारिक नोटिस में कहा गया है कि इससे व्यापार जगत को उस नुकसान की भरपाई होगी, जो उन्हें देश में पर्याप्त बुनियादी ढांचे, घरेलू सप्लाई चेन और लॉजिस्टिक्स में कमी, ऊंची लागत, अच्छे ऊर्जा स्रोतों की कम उपलब्धता और सीमित डिजाइन क्षमता के कारण होता है।

ऐप्पल की बड़ी पहल की खबरें
हाल ही में खबर आई कि दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनियों में शुमार ऐप्पल अपनी कुछ प्रोडक्शन यूनिटों को चीन से बाहर निकालकर भारत में शिफ्ट कर सकती है। भारत सरकार की नई योजना से फायदा उठाने वाली वह पहली इतनी बड़ी कंपनी बन सकती है। अब तक ऐप्पल ने इसकी घोषणा नहीं की है लेकिन बिजनेस अखबार 'इकोनॉमिक टाइम्स' ने खबर छापी थी कि ऐप्पल की भारत सरकार के साथ चर्चा चल रही है कि अगले 5 साल में कंपनी करीब 40 अरब डॉलर के मूल्य के आईफोन भारत में ही बनाएगी।

फॉक्सकॉन और विस्ट्रॉन जैसे ऐप्पल के मौजूदा कॉन्ट्रेक्टरों के साथ उत्पादन की क्षमता को और बढ़ाकर इस लक्ष्य को हासिल करने की चर्चा है। भारत सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से अखबार ने लिखा कि कंपनी असल में भारत को अपने मैन्युफैक्चरिंग और एक्पोर्ट बेस के रूप में विकसित करने की सोच रही है। उसका मकसद अपने प्रोडक्शन को चीन के बाहर भी डाइवर्सिफाई करना है।

अगर इस रिपोर्ट को सच मानें तो ऐप्पल भारत का सबसे बड़ा निर्यातक बनकर उभर सकता है। इसका मतलब यह भी होगा कि कंपनी चीन के अपने करीब 20 फीसदी प्रोडक्शन को भारत ले आएगी। साल 2018-2019 में ऐप्पल ने चीन में करीब 220 अरब डॉलर मूल्य का उत्पादन किया। भले ही ऐसी खबरें अब सामने आ रही हों लेकिन माना जा रहा है कि इनकी नींव दिसंबर 2019 में प्रधानमंत्री मोदी की ऐप्पल और सैमसंग जैसी कंपनियों के अधिकारियों के साथ मुलाकात के समय ही रखी गई थी।

'मेक इन इंडिया' को ग्लोबल ट्रेडमार्क बनाने का मौका
किसी भी कंपनी के लिए अपने जोखिमों को कम करने की कोशिशें करना एक अपेक्षित प्रतिक्रिया है। लेकिन इन सबके बीच इस बात पर ध्यान देना होगा कि केवल इक्का-दुक्का कंपनियां ऐसा कर रही हैं या भारत में अपने उत्पादन केंद्र खोलने का कोई योजनाबद्ध ट्रेंड-सा बनता दिख रहा है।

85 देशों में कार्यरत अंतरराष्ट्रीय ऑडिट कंपनी क्यूआईएमए ने फरवरी के अंत में अंतरराष्ट्रीय सप्लाई चेन वाली करीब 200 कंपनियों के साथ एक सर्वेक्षण करवाया था। सर्वे में शामिल कंपनियों में से 87 फीसदी का मानना था कि मौजूदा हालात के कारण वे अपने सप्लाई चेन को लेकर बदलाव करने को मजबूर हो जाएंगे। क्यूआईएमए ने 2020 की दूसरी तिमाही को भी चीन के लिए बहुत अच्छा नहीं बताया है।

कंपनी का मानना है कि मैन्युफैक्चरिंग फिर से शुरू होने पर भी चीन को मांग में कमी का सामना करना पड़ सकता है। संकट काल में कंपनियों के लिए यह तो साफ हो चुका है कि सप्लाई चेन के लिए किसी एक स्रोत पर ज्यादा निर्भर होना कितना जोखिमभरा हो सकता है। इस माहौल में भारत के पास अपने 'मेक इन इंडिया' के नारे को एक ग्लोबल ट्रेडमार्क में तब्दील करने का बड़ा मौका छिपा है।
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