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Written By DW
Last Modified: शनिवार, 30 मई 2020 (17:14 IST)

ट्रंप और टि्वटर की तनातनी कहां तक जाएगी?

ट्रंप और टि्वटर की तनातनी कहां तक जाएगी? - How far will Trump and Twitter's tensions go?
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और टि्वटर के बीच चल रही तनातनी में ट्रंप अब सरकारी तंत्र को भी घसीटने के मूड में दिख रहे हैं। ट्रंप ने टि्वटर को बंद कराने की चेतावनी भी दी है। मीडिया और कुछ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों से ट्रंप की लड़ाई कोई नई बात नहीं है लेकिन अब यह नए स्तर पर पहुंच गई है।

ट्रंप अपने आलोचकों पर भेदभाव करने का आरोप लगाते रहे हैं और टि्वटर, फेसबुक और गूगल जैसे प्लेटफॉर्म भी इससे अछूते नहीं हैं। बीते कुछ दिनों से टि्वटर और उनकी तनातनी खुलकर सामने आ गई है। ट्रंप ने चुनावों में भी इन कंपनियों की भूमिका पर सवाल उठाए हैं।

बीते कुछ समय से ट्रंप और टि्वटर के बीच ठनी हुई है और इसके नतीजे में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप फेसबुक, टि्वटर और गूगल को बचाने वाले कानून की समीक्षा के कार्यकारी आदेश पर दस्तखत कर सकते हैं। यह कानून सोशल मीडिया की दिग्गज साइटों को यूजर के डाले कंटेंट की जिम्मेदारी से बचाता है।

सूत्रों से मिली खबरों के मुताबिक इस आदेश का ड्राफ्ट तैयार हो गया है हालांकि दस्तखत से पहले इसमें बदलाव भी हो सकता है। आशंका है कि राष्ट्रपति इस पर गुरुवार को दस्तखत कर देंगे। राष्ट्रपति बनने के बाद डोनाल्ड ट्रंप कुछ मीडिया संस्थानों और सोशल मीडिया पर भेदभाव बरतने का आरोप लगाते रहे हैं। हाल ही में ट्रंप ने कुछ वेबसाइटों पर रूढ़िवादी पक्षों की बात दबाने का आरोप लगाते हुए उन्हें बंद करने की धमकी दी।

इसके पहले टि्वटर और उनके बीच तनातनी की एक और घटना हुई। दरअसल, ट्रंप ने मेल इन वोटिंग में जालसाजी की बात कहते हुए टि्वटर पर एक पोस्ट लिखी थी। टि्वटर ने इस पोस्ट को टैग करते हुए रीडरों को इसके बारे में चेतावनी दी। इसका साफ-साफ मतलब था कि टि्वटर इस खबर के गलत होने की आशंका जताते हुए चाहता था कि पोस्ट को पढ़ने वाले लोग तथ्यों की पड़ताल करें।

राष्ट्रपति का आदेश संघीय संचार आयोग, एफसीसी के लिए कम्युनिकेशंस डिसेंसी एक्ट के सेक्शन 230 के अंतर्गत आने वाले नियमों को स्पष्ट करने और नए प्रस्ताव देना जरूरी बनाएगा। अगर इसमें बदलाव हो जाते हैं तो कंपनियों के खिलाफ मुकदमों का रास्ता खुल जाएगा। ड्राफ्ट में एफसीसी से इस बात की पड़ताल करने को कहा गया है कि क्या सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर कंटेंट को संपादित करने पर उन्हें सेक्शन 230 के तहत मिलने वाली सुरक्षा वापस ली जा सकती है?

एजेंसी यह देखेगी कि क्या सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म कंटेंट के संचालन में भ्रामक नीतियों का इस्तेमाल तो नहीं कर रहा है? साथ ही यह भी कि उनकी नीतियां कहीं सेवा शर्तों का उल्लंघन तो नहीं कर रहीं? इसके साथ ही ड्राफ्ट में यह भी कहा गया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति के दफ्तर व्हाइट हाउस का डिजिटल स्ट्रैटजी विभाग उस टूल को भी दोबारा स्थापित करेगा, जो नागरिकों को ऑनलाइन सेंसरशिप के मामले दर्ज कराने में मदद करेगा।

इसे व्हाइट हाउस टेक बायस रिपोर्टिंग टूल कहा जाता है। यह ऑनलाइन सेंसरशिप की शिकायतों को जमा कर उन्हें न्याय विभाग और संघीय व्यापार आयोग के पास भेज देता है। अगर कोई कंपनी कानून का उल्लंघन कर रही हो तो संघीय व्यापार आयोग उसके खिलाफ कदम उठा सकता है। इसके साथ ही इसके बारे में शिकायतों पर आयोग रिपोर्ट तैयार कर उसे सार्वजनिक कर सकता है।

ड्राफ्ट ऑर्डर में यह भी कहा गया है कि अटॉर्नी जनरल एक वर्किंग ग्रुप बनाए जिसमें राज्यों के अटॉर्नी जनरल भी शामिल हों। यह ग्रुप राज्यों के कानूनों के पालन की पड़ताल करेगा और ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों की अनुचित और भ्रामक गतिविधियों को रोकेगा।

यह ग्रुप कंटेंट और यूजर के साथ दूसरे यूजरों के संपर्क के आधार पर एक निगरानी सूची बनाएगा या फिर उन पर नजर रखेगा। ऑनलाइन विज्ञापनों पर संघीय सरकार के खर्च की भी समीक्षा होगी जिससे कि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी प्लेटफॉर्म पर अभिव्यक्ति पर कोई रोक नहीं है।

ड्राफ्ट के मुताबिक हर एजेंसी के प्रमुख को अपनी रिपोर्ट इस आदेश के बाद 30 दिनों के भीतर 'ऑफिस ऑफ द मैनेजमेंट एंड बजट' के निदेशक के पास भेजनी होगी। ट्रंप के दस्तखत से पहले इस ड्राफ्ट में कुछ बदलाव किए जा सकते हैं। हालांकि सोशल मीडिया पर शिकंजे की उनकी कोशिशों का क्या नतीजा निकलेगा, इसके बारे में तो फिलहाल कयास ही लगाए जा सकते हैं।
- एनआर/एमजे (रॉयटर्स, एपी)