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Written By DW
Last Updated : बुधवार, 10 जनवरी 2024 (09:12 IST)

भारत: आईटीआर भरने वाले 8 करोड़, टैक्स कितनों का कटता है?

income tax return
-आमिर अंसारी
 
एसबीआई की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में हाल के सालों में आर्थिक असमानता घटी है। असमानता के अनुमान को मापने के लिए सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आयकर डाटा का इस्तेमाल किया गया है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) के इकोनॉमिक्स डिपार्टमेंट की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत में आय असमानता पिछले एक दशक में घटी है। एसबीआई के रिसर्च विभाग ने इस अध्ययन के लिए इनकम टैक्स के डाटा का विश्लेषण किया है।
 
रिपोर्ट कहती है कि वित्त वर्ष 2014-21 के दौरान देश में व्यक्तिगत आय असमानता में काफी गिरावट आई है जिसमें 36.3 प्रतिशत करदाता कम आय से उच्च आयकर श्रेणी की ओर बढ़ रहे हैं, इसके नतीजतन वित्त वर्ष 2014 से वित्त वर्ष 21 तक 21.3 फीसदी अतिरिक्त आय हुई है।
 
टैक्स देने वाले बढ़े
 
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इसी अवधि के दौरान 3.5 लाख रुपए से कम आय वालों के बीच आय असमानता 31.8 फीसदी से घटकर 15.8 फीसदी हो गई है जिससे पता चलता है कि कुल आय में इस समूह की हिस्सेदारी उनकी आबादी की तुलना में 16 प्रतिशत बढ़ गई है।
 
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि इनकम टैक्स रिटर्न (आईटीआर) फाइल करने वालों के आंकड़े पर गौर करें तो 5 लाख रुपए से 10 लाख रुपए के बीच सालाना आमदनी वाले लोगों की संख्या 295 फीसदी बढ़ी है। ये बढ़ोतरी असेसमेंट ईयर (एआई) 2013-14 से लेकर 2021-22 के बीच के हैं। जो इस बात का सबूत है कि कुल आमदनी वालों की संख्या बढ़ी है।
 
दूसरी ओर 10 से 25 लाख रुपए तक की आय वाले लोगों द्वारा दाखिल आईटीआर की संख्या में 291 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। आयकर दाखिल करने वाले व्यक्तियों की कुल संख्या असेसमेंट ईयर 22 में 7 करोड़ से बढ़कर असेसमेंट ईयर 23 में 7.4 करोड़ हो गई है, वहीं असेसमेंट ईयर 2023-24 में 8.2 करोड़ आईटीआर दाखिल किए जा चुके हैं।
 
रिपोर्ट: खरीदने की क्षमता बढ़ी
 
रिपोर्ट के मुताबिक 19.5 फीसदी छोटी कंपनियां एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) ब्रांड चेन के माध्यम से बड़ी कंपनियां में बदल गई हैं। साथ ही में इसमें यह भी दावा किया गया है कि महामारी के बाद निचली 90 प्रतिशत आबादी की खपत में 8.2 लाख करोड़ रुपए की वृद्धि हुई है। रिपोर्ट में यह भी कहा है कि ऑनलाइन फूड ऑर्डर का ट्रेंड बढ़ा रहा है, और दावा किया गया कि उपभोग के रुझान जैसे कि जोमैटो जैसे फूड ऑर्डरिंग प्लेटफॉर्म से ऑर्डर करने की बढ़ती प्रवृत्ति 'लुप्त हो रही असमानता' का संकेत है।
 
रिपोर्ट यह भी दावा करती है कि लोग ग्रामीण इलाकों में दोपहिया वाहनों को छोड़कर कार खरीद रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में दोपहिया वाहनों की बिक्री में आई गिरावट को जानकार ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर दबाव से जोड़ कर देख रहे थे।
 
लेकिन आर्थिक मामलों के जानकार एसबीआई की इस रिपोर्ट पर सवाल उठा रहे हैं। जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर अरुण कुमार कहते हैं कि असमानता को 3 तरह से मापा जाता है, पहला-उपभोग में असमानता, दूसरा-आय में असमानता और तीसरा-संपत्ति में असमानता। उनके मुताबिक संपत्ति में असमानता सबसे ज्यादा होती है उसके बाद आय में असमानता होती है और फिर उपभोग में असमानता होती है।
 
'आय सर्वे से सही तस्वीर निकलेगी'
 
प्रोफेसर अरुण कुमार रिसर्च रिपोर्ट पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, 'देश में केवल 8 करोड़ लोग रिटर्न फाइल कर रहे हैं। 8 करोड़ में से भी 4 करोड़ शून्य रिटर्न फाइल करते हैं, बहुत कम ही लोग हैं, जो वास्तव में टैक्स दे रहे हैं। सिर्फ शीर्ष के 2 फीसदी लोगों के आधार पर आर्थिक असमानता के घटने की बात की जा रही है।'
 
प्रोफेसर अरुण कुमार डीडब्ल्यू से कहते हैं कि रिपोर्ट में इनकम टैक्स का डाटा है उसके आधार पर देश की आर्थिक समानता के बारे में नहीं कहा जा सकता है। वो कहते हैं, 'एक तो डाटा बहुत सीमित है। असली अमीर उसमें नहीं आ रहे हैं, जो ब्लैक इकोनॉमी वाले हैं वो लोग उसमें नहीं आ रहे हैं। इसके आधार पर हम यह कह नहीं सकते कि आर्थिक असमानता कम हुई या ज्यादा हुई।'
 
साथ ही प्रोफेसर कुमार कहते हैं अगर आर्थिक असमानता को जानना है तो अलग से आय सर्वे कराना चाहिए. कुमार कहते हैं, 'हम 140 करोड़ के डाटा में से सिर्फ 8 करोड़ डाटा का विश्लेषण कर रहे हैं। ब्लैक इनकम वाले इस डाटा में शामिल नहीं होते हैं।'
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