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Written By वार्ता
Last Modified: नई दिल्ली (वार्ता) , शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009 (12:19 IST)

विश्व क्रिकेट के तीसरे जीनियस हैं सचिन

Sachin is a genius of the third world cricket | विश्व क्रिकेट के तीसरे जीनियस हैं सचिन
दुनिया उन्हें क्रिकेट का भगवान कहती है। उन्होंने क्रिकेट में पौराणिक कथाओं के नायक जैसा महत्व पा लिया है। वे क्रिकेट के जीनियस हैं जिनकी चमत्कारिक सफलताओं से विश्व क्रिकेट चकाचौंध है। यह और कोई नहीं मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंडुलकर हैं जो 24 अप्रैल को 36 वर्ष के होने जा रहे हैं।

क्रिकेट इतिहास में जीनियस खिलाड़ियों का जब भी जिक्र होता है तो सदी के महानतम बल्लेबाज ऑस्ट्रेलिया के डॉन ब्रेडमैन को पहला जीनियस कहा जाता है। दूसरे जीनियस के रूप में वेस्टइंडीज के महान ऑलराउंडर गैरी सोबर्स का नाम आता है और तीसरे जीनियस निर्विवाद रूप से बल्लेबाजी के चमत्कार सचिन तेंडुलकर हैं।

प्रसिद्ध क्रिकेट कमेंटेटर रवि चतुर्वेदी ने अपनी किताब 'भारत के महान क्रिकेट खिलाड़ी' में सचिन तेंडुलकर पर लिखे अध्याय में कहा है कि भारतीय क्रिकेट के पास पहले कभी कोई जीनियस नहीं था। हालाँकि असाधारण खिलाड़ी पहले भी रहे हैं और अब भी हैं। जीनियस कभी कभार ही जन्म लेते हैं और संसार को शीघ्र ही सम्मोहित कर देते हैं। वे हर चीज अपने ही ढंग से संपन्न करते हैं और सचिन इस कसौटी पर पूरी तरह खरे उतरते हैं।

रवि चतुर्वेदी ने सचिन पर लिखे इस अध्याय को 'सचिन तेंडुलकर: अद्भुत परिघटना' का नाम दिया है। उन्होंने लिखा है कि जीनियस अधिक मृदु शब्दभर प्रतीत होता है। सचिन ने निश्चित रूप से पौराणिक कथाओं के नायक जैसा महत्व पा लिया है। लोग घंटों उनकी प्रतीक्षा में खड़े रहते हैं। जब वे खेलते हैं तो लोगों के दिलों के धड़कनें जैसे रुक जाती हैं।

उन्होंने लिखा है कि सचिन न कोई इत्तफाक हैं और न ही अवसरों की देन वाला कोई भाग्यशाली, बल्कि यह जीवनभर की तैयारी, योजना, लगन और घोर परिश्रम और तपस्वियों जैसी आस्था का प्रतिफल है। सदी के महानतम बल्लेबाज डान ब्रैडमैन ने एक समय टेलीविजन पर सचिन का खेल देखकर अपनी पत्नी जेसी से कहा था-इस खिलाड़ी ने मेरे अपने खेलने वाले दिनों की याद ताजा कर दी है। यह कथन सचिन की महानता के बारे में सब कुछ कह देता है।

ऑस्ट्रेलिया के प्रसिद्ध क्रिकेट लेखक जैक फिंगल्टन ने एक समय लिखा था कि ब्रैडमैन जैसा चाहते थे गेंदबाज उन्हें वैसी ही गेंद फेंकते थे। सचिन के लिए भी यही बात लागू होती है। उनका बल्ला बंदूक की तरह प्रकाशपुंज छोड़ता हुआ चमक उठता है। रवि चतुर्वेदी ने लिखा है कि भारत के 1932 में पहला टेस्ट खेलने के बाद से शायद ही किसी अन्य क्रिकेट खिलाड़ी ने देशवासियों को उतना सम्मोहित और मंत्रमुग्ध किया हो जैसा सचिन ने किया है। सचिन ने अपने करियर की शुरुआत से ही अपने सीने पर सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज का तमगा लगा लिया था।

सचिन के भाई अजित तेंडुलकर ने अपनी पुस्तक 'द मेकिंग ऑफ ए क्रिकेटर' में लिखा है कि सचिन को अपने जीवन में बहुत पहले ही क्रिकेट और शिक्षा के बीच में से अपनी पसंद को तय करना था। उन्होंने क्रिकेट को पसंद किया जो आश्चर्यजनक नहीं था। यह दिलचस्प है कि आज कोई भी युवा क्रिकेटर जहाँ सचिन को अपना आदर्श मानता है वहीं सचिन को प्रेरित करने वाले खिलाड़ी अमेरिका के टेनिस प्लेयर जॉन मैकेनरो थे। वास्तव में एक समय सचिन ने अपना नाम मैक भी रख लिया था।

रवि चतुर्वेदी ने भारतीय क्रिकेट में सचिन के उदय के समय को याद करते हुए लिखा है कि यह बालक बल्ले के बल पर दुनिया पर हुकूमत करने के लिए पैदा हुआ है। उनकी टाइमिंग और स्ट्रोक खेलने की क्षमता अद्वितीय है। सचिन और ब्रैडमैन में हालाँकि महानता के तराजू पर समानता देखी जाती है लेकिन कुछ मायनों में सचिन ब्रैडमैन से भी आगे दिखाई देते हैं।

उन्होंने आगे लिखा है कि सचिन जहाँ टेस्ट मैचों में चौथे क्रम पर बल्लेबाजी करते हैं वहीं वे वनडे में ओपनिंग करते हैं। दो भिन्न-भिन्न मोर्चों पर सचिन का अद्वितीय बल्लेबाजी प्रदर्शन उन्हें क्रिकेट में विशेष स्थान दिलाता है क्योंकि ब्रैडमैन ने अपने पूरे करियर के दौरान कभी भी दो अलग-अलग बल्लेबाजी क्रमों पर बल्लेबाजी नहीं की।

36 वर्ष के सचिन का क्रिकेट सफर अब भी थमने का नाम नहीं ले रहा है। उनकी बल्लेबाजी में अब भी वही धार है जो पहले हुआ करती थी। वे अब भी गेंदबाजों पर पूरी निर्ममता के साथ प्रहार करते हैं। सचिन का अब एकमात्र सपना विश्वकप जीतना है और वे चाहते हैं कि 2011 में भारतीय उपमहाद्वीप में होने वाले विश्वकप में वे अपना यह सपना पूरा करें। इसके बाद ही वे अपने करियर को विराम देने के बारे में कुछ सोचेंगे। फिलहाल उनका सिर्फ इतना कहना है कि मैं अब भी खेल का मजा ले रहा हूँ और जब मुझे अपने अंदर से लगेगा कि मुझे थमना है तब मैं रुक जाऊँगा।