संजय जगदाले : शून्य से शिखर तक
-सीमान्त सुवीर
पिछले दो-तीन दिनों से जब इंदौर के संजय जगदाले की दुनिया के सबसे धनी क्रिकेट संगठन भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड में सचिव बनने की चर्चा सुनी तो हैरत हो रही थी कि मध्यप्रदेश क्रिकेट संगठन को अपने ऊंचे कद की मानिंद इतनी ऊंचाई पर ले जाने वाले इस शख्स की ताजपोशी सचिव पर होगी? लेकिन जब सोमवार को बोर्ड की बैठक में उनकी नियुक्ति का ऐलान हुआ तो लगा कि ईमानदारी से कार्य करने का प्रतिफल कैसे मिलता है, इसकी मिसाल है संजय जगदाले। पिछले 31 सालों से अपने पत्रकारिता करियर में मैंने जिस संजय जगदाले को करीब से देखा और जाना, उसका ब्यौरा यहां पढ़िए- पहले वह रणजी ट्रॉफी खेले, इंदौर के नेहरू स्टेडियम में म.प्र. क्रिकेट एसोसिएशन का जब दफ्तर होता था तो वे माधवराव सिंधिया की मेहरबानी से बरसों तक सचिव पद की कुर्सी संभालने वाले महेन्द्र कुमार भार्गव (एमके) के सबसे नजदीकी हुआ करते थे। 25 दिसंबर 1997 को जब नेहरू स्टेडियम में खराब पिच की वजह से भारत-श्रीलंका वनडे मैच केवल 16 गेंदों के बाद रद्द हुआ तो मध्यप्रदेश साथ ही साथ इंदौर की पूरी दुनिया में काफी भद हुई।इस घटना के बाद जब संजय जगदाले ने सचिव पद पर लड़ने का फैसला किया तो एमके की नजरों में वे 'बागी' हो गए लेकिन जैसे ही जगदाले के हाथों में बागडोर आई, उन्होंने ऊषाराजे मैदान पर मध्यप्रदेश क्रिकेट संगठन के खुद का स्टेडियम बनाने का फैसला लिया। पीठ पर माधवराव सिंधिया जैसे राजनेता का हाथ था और सिंधिया को भी भरोसा था कि संजय की देखरेख में इंदौर में अंतरराष्ट्रीय स्तर का एक अच्छा स्टेडियम तैयार हो सकता है।बोर्ड ने पैसा दिया, माधवराव ने अपने निजी प्रयासों से धन संग्रह किया, पिच की वजह से रद्द हुए मैच के टिकटों का पैसा खर्च हुआ और आज आप जिस होलकर स्टेडियम को देख रहे हैं, वहां इंग्लैंड जैसी नकचढ़ी टीम दो-दो बार आकर वनडे इंटरनेशनल मैच खेल चुकी है। स्टेडियम की लागत करीब 14 करोड़ आई और लोग हैरान थे कि इतने कम रुपए में कैसे बन गया जबकि देश के एक अन्य क्रिकेट संगठन ने 54 करोड़ में ऐसा स्टेडियम बनाया था। क्या आप इसे संजय जगदाले (निकनेम गट्टू) की ईमानदारी नहीं कहेंगे?भारतीय क्रिकेट को परदे के पीछे से चलाने वाले शरद पवार की नजदीकियां जगदाले परिवार से है और यही कारण है कि पवार को भरोसा था कि गट्टू में इतनी काबिलियत है कि वह इंदौर शहर को एक शानदार स्टेडियम की सौगात दे सकते हैं और संजय जगदाले अपनी कसौटी पर खरे उतरे।जो लोग संजय जगदाले को निजी तौर पर जानते हैं, वो ये भी जानते हैं कि यह इनसान अपने उसूलों का कितना पक्का है। यही कारण है कि गट्टू आज दुनिया के सबसे धनी संगठन के सबसे बड़े पद पर काबिज हुए हैं। उन्होंने साबित कर दिया है कि धन से ऊंचा पद नहीं पाया जाता बल्कि लगन, मेहनत और ईमानदारी से काम किया जाए तो ही किसी भी क्षेत्र में शीर्ष पर पहुंचा जा सकता है। कभी भारतीय टीम के मैनेजर, कभी राष्ट्रीय चयनकर्ता (दो मर्तबा) कभी बोर्ड के संयुक्त सचिव जैसे अहम पदों पर काम करने वाले संजय जगदाले अनंत वागेश कनमड़ीकर (जज साहब) के बाद इंदौर के दूसरे शख्स हैं जो बोर्ड के सचिव बने हैं। ये उनकी स्वच्छ छवि का ही प्रतिफल है। उन्होंने न तो कभी चयन में मध्यप्रदेश के खिलाड़ियों की पैरवी की और न परिजनों पर उदारता दिखाई।इंदौर में क्रिकेट के 10 इंटरनेशनल मैच हुए। इन मैचों को आज तक उनकी पत्नी ने कभी स्टेडियम से नहीं देखा। बड़े भाई अशोक जगदाले या फिर छोटे भाई योगेश को कभी अतिरिक्त लाभ नहीं पहुंचाया।किसी समय मेयर एमएम जगदाले का परिवार साउथ तुकोगंज में रहता था। मेजर साहब के निधन के बाद परिवार ने पैतृक मकान बेचा। संजय ने अनूप नगर में एक साधारण सा मकान बनवाया। बैंक की नौकरी के साथ-साथ उन्होंने मप्र क्रिकेट संगठन को भी भरपूर वक्त दिया।छह फुट से अधिक ऊंचाई वाले संजय जगदाले की फिटनेस का राज है रोजाना यशवंत क्लब में 20 से 25 मिनट तक स्वीमिंग और फिर टेनिस कोर्ट पर अभ्यास लेकिन उन्होंने कभी टेनिस प्रतियोगिताओं में हिस्सा नहीं लिया।किसी समय इंदौर शहर होलकर क्रिकेट के नाम से जाना जाता था, फिर इसे कर्नल सीके नायडू की कर्मस्थली कहा गया। कनमड़ीकर जब बोर्ड सचिव बने तो शहर के ताज में एक और हीरा जड़ा अब संजय जगदाले ने इस हीरे की चमक को कई गुना बढ़ा दिया है। इंदौर आने वाले लोग राजबाड़ा देखने जाते हैं, खजराना गणेश मंदिर जाकर मुराद मांगते हैं, ठीक उसी तरह आपका कोई परिचित अहिल्या की इस नगरी में आए तो उन्हें अभय प्रशाल के सामने होल्कर स्टेडियम जरूर जाने का कहिए, तब उन्हें पता चल जाएगा कि संजय और उनकी टीम ने इस शहर को किस शानदार स्टेडियम की सौगात दी है।पत्नी विनीता की नजर में संजय : संजय की पत्नी का नाम है विनीता। उनका विवाह 25 सितम्बर 1974 को हुआ। बेटा गौरव विप्रो कंपनी में हैं और बेटी उत्तरा आईडीआई बैंक में। विनिता के अनुसार संजय बहुत ही सुलझे हुए इनसान हैं। घर और क्रिकेट दोनों की जिम्मेदारी बहुत ही तालमेल से निभाते हैं। संजय को महाराष्ट्रियन, दक्षिण भारतीय और कश्मीरी खाना बेहद पसंद है। विनीता ने यह भी बताया कि मैं सिहोर की रहने वाली थी और जब इंदौर के 'जगदाले स्कूल' में पढ़ती थी, तभी प्राचार्या श्रीमती विमला जगदाले (संजय की माताजी) ने मुझे संजय के लिए पसंद कर लिया था। मैंने इंदौर में अब तक खेले गए 10 वनडे इंटरनेशनल मैचों में से एक भी मैच स्टेडियम जाकर नहीं देखा है। हां, जब संजय रणजी ट्रॉफी में खेलते थे, तब मैं नेहरू स्टेडियम में जाती थी लेकिन दर्शक बहुत कम हुआ करते थे और पहले आज जैसी क्रिकेट दीवानगी भी नहीं थी।उन्होंने यह भी कहा कि संजय को किताबें पढ़ना पसंद हैं और वे लिखते भी काफी अच्छा हैं। उन्हें कॉमेडी फिल्में देखना पसंद है और उनके प्रिय कलाकार धर्मेन्द्र, हेमामालिनी और अमिताभ बच्चन हैं। 15 अप्रैल 2006 को जब होल्कर स्टेडियम में भारत और इंग्लैंड के बीच पहला वनडे मैच खेला, तब मैं स्टेडियम नहीं गई थी। काफी दिनों बाद खाली पड़े स्टेडियम को जाकर देखा, तब लगा कि वाकई मेरे पति और उनके साथियों की मेहनत बेकार नहीं गई। आज वह बोर्ड में सचिव बन गए हैं इतना तो मुझे विश्वास है कि उनकी सहजता पहले जैसी ही बनी रहेगी।6
वर्षों तक राष्ट्रीय सीनियर चयनकर्ता : संजय जगदाले 6 वर्षों तक (2000 से 2003 तथा 2005 व 06) सीनियर राष्ट्रीय चयन समिति के सदस्य रहे। वे पिछले दो वर्षों से बीसीसीआई के संयुक्त सचिव हैं। जगदाले 2005 में श्रीलंकाई दौरे पर भारतीय टीम के प्रबंधक थे। उन्होंने इसके अलावा 2007 आईसीसी विश्व कप में भी टीम प्रबंधक की भूमिका भी निभाई।1990
के दशक में जूनियर चयनकर्ता के रूप में जगदाले ने वीवीएस लक्ष्मण, मुरली कार्तिक, रिषिकेश कानिटकर, एस. श्रीराम और नमन ओझा जैसी प्रतिभाओं को खोजा था। क्रिकेटर के रूप में जगदाले ने 1968 से 1983 के दौरान 53 प्रथम श्रेणी मैच खेले। इसमें उन्होंने 26.62 के औसत से 2077 रन बनाए। इसमें 2 शतक और 9 अर्द्धशतक शामिल थे। उन्होंने 35.82 के औसत से 85 विकेट भी लिए।