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Written By भाषा
Last Modified: नई दिल्ली , शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011 (11:45 IST)

धरती के 248 साल और प्लूटो का एक साल

प्लूटो दिवस पर विशेष

धरती के 248 साल और प्लूटो का एक साल -
सौर मंडल का नौवाँ और सबसे अंतिम ग्रह प्लूटो एक अद्भुत ग्रह है जिसका एक साल धरती के 248 सालों के बराबर होता है। यह आकार में काफी छोटा है।

सूर्य से लगभग छह अरब किलोमीटर दूर स्थित इस ग्रह की खोज 18 फरवरी 1930 को खगोल विज्ञानी क्लाइड थॉमबाग द्वारा की गई थी।

वैज्ञानिकों का कहना है कि 1930 से पहले सौर मंडल में ऐसे किसी ग्रह की कल्पना तो थी लेकिन उसकी पुष्टि के पर्याप्त आधार नहीं थे।

महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय से संबद्ध भौतिक शास्त्री आरवी कौशल के अनुसार प्लूटो सौर मंडल का एक अहम हिस्सा है और इसका एक साल धरती के 248 सालों के बराबर होता है।

उन्होंने कहा कि प्रत्येक ग्रह पर दिन महीने और वर्ष की अवधि अलग-अलग होती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सूर्य का भ्रमण करने की हर ग्रह की गति अलग-अलग है।

कौशल ने कहा कि थॉमबाग ने विज्ञान को प्लूटो के रूप में अनोखा तोहफा दिया और सौरमंडल में एक अतिरिक्त ग्रह का अस्तित्व स्थापित कर दिया।

भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर जगदीश सिंह के अनुसार हाल के दिनों में प्लूटो में कुछ बदलाव देखने को मिल रहे हैं जिनका दुनियाभर के वैज्ञानिक अध्ययन कर रहे हैं।

प्लूटो बुध शुक्र धरती और मंगल छोटे ग्रहों की श्रेणी में आते हैं जबकि बृहस्पति शनि यूरेनस और नेपच्यून बड़े ग्रहों की श्रेणी में शुमार हैं।

सिंह के अनुसार प्लूटो का नाम अंधकार के रोमन देवता के नाम पर आधारित है। क्योंकि इस ग्रह पर हमेशा अंधकार छाया रहता है इसलिए इसका नाम अंधकार के देवता प्लूटो के नाम पर रख दिया गया। उन्होंने कहा कि प्लूटो सबसे छोटा ग्रह है जिसका व्यास लगभग 2080 किलोमीटर है जो धरती के व्यास का छठा भाग है। इसकी अत्यधिक दूरी और आकार छोटा होने के चलते इसे धरती से सीधे देखना संभव नहीं है। इसे देखने के लिए कम से कम 25 सेंटीमीटर व्यास वाली दूरबीन की जरूरत पड़ती है।

प्लूटो की सतह काफी ठंडी और अँधेरे से भरी है। यह चट्टानों और कई तरह की बर्फ के मिश्रण से बना है। वैज्ञानिकों का मानना है कि प्लूटो की बर्फ जमी हुई मीथेन और अमोनिया गैस है। यहाँ का तापमान शून्य से लगभग 200 डिग्री सेल्सियस नीचे रहता है।

यह ग्रह धरती के चंद्रमा से भी छोटा है और इसका ‘चैरोन’ नाम का खुद का भी एक चंद्रमा है जिसकी खोज 1978 में हुई थी।

लॉवेल वेधशाला ने प्लूटो की खोज के बाद इसके नाम के लिए दुनियाभर के लोगों से सलाह माँगी थी। इसके जवाब में इस ग्रह के लिए हजारों नाम सुझाए गए। ऑक्सफोर्ड स्कूल लंदन की 11वीं की छात्रा वेनिटा बर्नी ने अपने सुझाव में कहा कि इस ग्रह का नाम रोमन देवता प्लूटो के नाम पर रखा जाए। खगोल विज्ञानियों को यह नाम उचित लगा और इस तरह इस ग्रह का नाम प्लूटो पड़ गया। (भाषा)