• Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. »
  3. खोज-खबर
  4. »
  5. ज्ञान-विज्ञान
  6. दुनिया का सबसे ठंडा इलाका, तापमान −49 डिग्री
Written By WD

दुनिया का सबसे ठंडा इलाका, तापमान −49 डिग्री

The Coldest Area | दुनिया का सबसे ठंडा इलाका, तापमान −49 डिग्री
FILE
दुनिया में 7 महाद्वीप हैं उनमें से सबसे ठंडा महाद्वीप अंटार्कटिका महाद्वीप है। यहां जाना और यहां रहना आसान नहीं, क्योंकि यह बेहद दुर्गम तथा मानव-बस्तियों से हजारों मील दूर स्थित है। यह धरती का सबसे ठंडा स्थान है। यहां हवाएं 350 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलती हैं और तूफानी समुद्र व बर्फ के तैरते विशालकाय पहाड़ को कोई खुशकिस्मत ही देख सकता है। इस स्थान का कुल क्षेत्रफल 1.4 करोड़ वर्ग किलोमीटर है। क्षेत्रफल की दृष्टि से वह ऑस्ट्रेलिया से बड़ा है।

अंटार्कटिका की बर्फ की औसत मोटाई 1.6 किलोमीटर है। इस महाद्वीप में अनुमानत: मात्र 2,000 वर्ग किलोमीटर खुली जमीन है। साल में केवल 20 ही दिन तापमान शून्य से ऊपर रहता है। पृथ्वी की सतह पर मापा गया सबसे कम तापमान भी अंटार्कटिका में ही मापा गया है। सोवियत रूस द्वारा स्थापित वोस्टोक नामक शोधशाला में 24 अगस्त 1960 को तापमान -88.3 डिग्री सेल्सियस मापा गया।

यह तो वह जगह है, जहां मानव बस्ती नहीं है और जहां मानव रह नहीं सकता है, लेकिन अब हम जानते हैं वह जगह जहां मानव रहता है और वह दुनिया की सबसे ऐसी ठंडी जगह है, जहां मानव की बस्तियां हैं और वे शून्य से नीचे के तापमान में रहते हैं।

जब ये लोग अपने ग्लास का पानी हवा में उछालते हैं तो बर्फ के टुकड़े बनकर गिरता है पानी... पढ़ें अगले पन्ने पर...

FILE
अब हम बात करते हैं रूस के साइबेरिया के ओयमायकोन क्षेत्र (oymyakon siberia) की। यहां एक नदी है जिसे शायद ही किसी ने देखा हो। हां, ड्रील करोगे तो बर्फ के नीचे जरूर नजर आ जाए, वह भी जब तापमान माइनस से 36 डिग्री नीचे हो। वैसे यहां का तापमान औसतन −32°C से −49.2°C के बीच झुलता रहता है। 1926 में −71.2°C (−96.2 °F) रिकॉर्ड दर्ज किया गया। दूसरी ओर अंटार्कटिका (रशियन स्टेशन के पास) में −89.2°C (−128.6°F) दर्ज किया गया था।

यहां लोग सर्दियों में आइसक्रीम खाते हैं, क्योंकि यहां कोई फ्रीज नहीं है। किसी भी मौसम में यहां दूध जमा हुआ मिलता है जिसे लीटर नहीं मीटर से नापकर तोड़कर दिया जाता है। चाय बनाना है तो एक छोटा-सा टुकड़ा दूध का डालो। साफ पानी भी यहां टुकड़ों में सहेजकर रखा जाता है। नहाने का अलग और पीने का टुकड़ा अलग। पानी को यदि हवा में उछाला गया तो वह बर्फ के टुकड़े बनकर नीचे गिरेगा।

गायों को तलघर में रखा जाता है वह भी उनके थनों को एक विशेष कपड़े से ढांककर। सिर्फ 1 घंटे के लिए धूप हो तो बाहर निकाला जाता है। हां, यहां के घोड़ों ने जरूर अपने आपको तापमान के अनुसार ढाल लिया है। यहां ऐसी धारणा है कि मछली और मीट खाने वाले लोग ज्यादा जीते हैं।

यहां बच्चों, पानी और खून को जमने से बचाना बहुत ही मुश्किल काम है। यहां की मूल जाति विलुप्ति की ओर है, हां बाहर से कुछ लोग जरूर आकर बस गए हैं, जो गर्म बने रहने का तरीका सीख गए हैं जिनके कारण मूल जाति भी बची हुई है।

ग्लोबल वॉर्मिंग का अध्ययन करने वाले कहते हैं कि पिछले 5 से 7 वर्षों में अब यहां का तापमान भी बढ़ने लगा है। ग्लेशियरों के पिघलने की गति तेज होने के कारण अब यहां की नदी से आसानी से पानी लिया जा सकता है। हां, कुछ दुर्लभ मछलियों की प्रजातियों पर अब संकट गहराने लगा है, क्योंकि वे −32°C के तापमान में ही जिंदा रह सकती है।
-(एजेंसी/वेबदुनिया)