बाल कविता : बन जाऊं अध्यापक...
- डॉ. संतकुमार टण्डन 'रसिक'
दादाजी पहने हैं चश्मा
दादीजी भी चश्मा।
अब तुमने भी पहन लिया है
चश्मा मेरी अम्मा।।
चश्मे में दादा-दादी भी
लगती रौबीली
चश्मे में मेरी अम्मा तुम
लगती बड़ी छबीली।।
दादा-दादी के चश्मे से
देता बड़ा दिखाई।
अम्मा तेरे चश्मे से
देता है दूर दिखाई।।
मुझको भी चश्मा लगवा दो
अध्यापक बन जाऊं।
देवपुत्र के अंदर अपनी
मैं तस्वीर छपाऊं।।
साभार- देवपुत्र