बाल गीत : कूक बड़ी प्यारी, कोयल की
बांध लिया बिस्तर जाड़े ने,
हुआ रफू-चक्कर।
सूरज के हाथों में देखा,
जब हल्का हंटर।
गरमी थोड़ी बढ़ी, मस्त सी,
पुरवाई आई।
लगती है अब छुअन हवा की,
सच में सुखदाई।
निर्मल हुआ नदी झरनों का,
जल बहता सर-सर।
लहक उठी फूलों की क्यारी,
वन उपवन महके।
आसमान में पंख पसारे,
पंछी फिर चहके।
तितली भौंरे पहुंच रहे हैं,
फूलों के घर पर।
तीसी के नीले फूलों की,
पगड़ी भाती है।
सरसों के पीले बिस्तर को,
हवा डुलाती है।
प्यारा लगता मंद पवन का,
स्वर, हर-हर-हर-हर।
महक उठा है बौर आम का,
मन दीवाना है।
पेड़ों पर अब कोयल का भी,
आना जाना है।
कूक बड़ी प्यारी, कोयल की,
लगती मधुर-मधुर।
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