बदलाव के दौर में करवा चौथ का व्रत
करवा चौथ का पर्व आस्था और विश्वास से जुड़ा है। बदलते वक्त, समय और समाज का प्रभाव इस पर भी पड़ा है। पहले जहां यह व्रत कुछ क्षेत्रों तक ही सिमटा था, वहीं अब इसका फलक बहुत बड़ा हो गया है। दिन ब दिन इस पर्व की चमक-दमक बढ़ती ही जा रही है आइए नजर डालते हैं इसके अब तक के बदलावों पर......... वैसे तो किसी को यह नहीं पता कि इस व्रत की शुरुआत कब और कैसे हुई। अलग-अलग जगहों पर लोगों की अलग-अलग मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि महाभारत काल में अर्जुन पूजा करने के लिए नीलगिरी पर्वत पर गए थे और द्रौपदी जंगल में अकेली थीं। वह अपनी और पति की सुरक्षा को लेकर चिंतित थीं ऐसे में उन्होंने श्रीकृष्ण का ध्यान किया, तब श्रीकृष्ण प्रकट हुए और द्रौपदी की आशंकाओं का समाधान करते हुए शिव और पार्वती की एक कहानी सुनाई। उन्होंने बताया कि एक बार पार्वती जी के पूछने पर शिवजी ने उनसे कहा था कि यदि पत्नी अपने पति को लेकर चिंतित हो, तो उसे अपनी तमाम शंकाओं के निवारण के लिए कार्तिक मास की कृष्ण चतुर्थी को व्रत व पूजा करनी चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने सावित्री-सत्यवान की कहानी और इंद्रलोक की कथाएं भी उन्हें सुनाई और यह बताया कि कैसे समय-समय पर स्त्रियों ने अपने पति की रक्षा के लिए कदम उठाए हैं। विश्वास वही परंपरा नई : -