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Written By WD

बदलाव के दौर में करवा चौथ का व्रत

बदलाव के दौर में करवा चौथ का व्रत -
- ऋषि गौतम

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करवा चौथ का पर्व आस्था और विश्वास से जुड़ा है। बदलते वक्त, समय और समाज का प्रभाव इस पर भी पड़ा है। पहले जहां यह व्रत कुछ क्षेत्रों तक ही सिमटा था, वहीं अब इसका फलक बहुत बड़ा हो गया है। दिन ब दिन इस पर्व की चमक-दमक बढ़ती ही जा रही है आइए नजर डालते हैं इसके अब तक के बदलावों पर.........

वैसे तो किसी को यह नहीं पता कि इस व्रत की शुरुआत कब और कैसे हुई। अलग-अलग जगहों पर लोगों की अलग-अलग मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि महाभारत काल में अर्जुन पूजा करने के लिए नीलगिरी पर्वत पर गए थे और द्रौपदी जंगल में अकेली थीं। वह अपनी और पति की सुरक्षा को लेकर चिंतित थीं ऐसे में उन्होंने श्रीकृष्ण का ध्यान किया, तब श्रीकृष्ण प्रकट हुए और द्रौपदी की आशंकाओं का समाधान करते हुए शिव और पार्वती की एक कहानी सुनाई।

उन्होंने बताया कि एक बार पार्वती जी के पूछने पर शिवजी ने उनसे कहा था कि यदि पत्नी अपने पति को लेकर चिंतित हो, तो उसे अपनी तमाम शंकाओं के निवारण के लिए कार्तिक मास की कृष्ण चतुर्थी को व्रत व पूजा करनी चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने सावित्री-सत्यवान की कहानी और इंद्रलोक की कथाएं भी उन्हें सुनाई और यह बताया कि कैसे समय-समय पर स्त्रियों ने अपने पति की रक्षा के लिए कदम उठाए हैं।

विश्वास वही परंपरा नई : -

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देवी-देवताओं से चली आ रही यह परंपरा थोड़े बदलाव के साथ आज भी कायम है। महिलाएं इस दिन सोलह श्रृंगार और गहनों की खरीदारी में एक सप्ताह पहले से ही जुट जाती हैं।

इस दिन सज संवरकर, मेंहदी आदि लगाकर सुबह-सवेरे तारों की छांव में सास से मिली सरगी से इस व्रत का आरंभ करती हैं। दिन भर बिना पानी के इस व्रत को रखती हैं। शाम को करवा चौथ की कहानी पढ़कर अथवा सुनकर चांद देखकर व्रत का खोला जाता है।

अब पति भी करने लगे हैं व्रत :-

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कभी यह पर्व सिर्फ महिलाओं तक की सिमटा हुआ था। आज परंपरा में कुछ सुखद परिवर्तन नजर आ रहे हैं। अब नई पीढ़ी के पति, अपनी पत्नी की निष्ठा, समर्पण और प्रेम की कद्र करते हुए स्वयं भी इस व्रत रखने लगे हैं।

एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाले महेंद्र का कहना है कि जब पत्नी पति के लंबी आयु के लिए यह व्रत कर सकती है, तो पति क्यों नहीं? यह दोनों के प्रेम और विश्वास का मामला है।

ऑफिस में होने लगा है व्रत : -
पहले की तरह महिलाएं अब व्रत की वजह से घर पर नहीं बैठती हैं। इस दिन महिलाएं व्रत के साथ पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर दफ्तरों में काम करती हुई दिखती हैं। पुरुषों की तरह उन्हें भी आगे बढ़ने की चाहत है। कार्यस्थल पर काम का दबाव है, प्रतियोजिता, साथ ही घर और बच्चों की जिम्मेदारियां भी हैं। यानी समय कम है और काम ज्यादा। एक साथ उन्हें भी बहुत सारे काम निपटाने पड़ते हैं।

कई ऑफिसों में तो ऐसा है कि पति और पत्नी दोनों एक ही ऑफिस में काम करते हैं। इंदौर के एक प्राइवेट बैंक में काम करने वाले राहुल और चांदनी भी इन्हीं में से एक हैं। इनके अनुसार यह शाम को ऑफिस से निकलने के बाद पूजा-पाठ करके कहीं बाहर जाकर डिनर करना ज्यादा पसंद करते हैं। यही वजह है कि ऐसे लोगों के लिए इस दिन अब होटलों में भी खास तैयारियां की जाने लगी हैं। यानी साफ है कि करवा चौथ अब केवल लोक-परंपरा नहीं रह गई है।

पौराणिकता के साथ-साथ इसमें आधुनिकता का भी प्रवेश हो चुका है और अब यह त्योहार भावनाओं पर केंद्रित हो गया है। हमारे समाज की यही खासियत है कि हम परंपराओं में नवीनता का समावेश लगातार करते रहते हैं। पति की लंबी आयु के लिए पत्नी द्वारा व्रत रखे जाने के इस त्योहार को ना सिर्फ पुरानी पीढ़ी बल्कि नई पीढ़ी भी बड़े शौक से मनाने लगी है।