गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025
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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

भगवान पार्श्वनाथ

23वें तीर्थंकर को नमस्कार

भगवान पार्श्वनाथ -
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भगवान पार्श्वनाथ जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर हैं। भगवान महावीर इन्हीं के संप्रदाय से थे। वे भगवान महावीर से लगभग 250 वर्ष पूर्व हुए थे। उनकी मूर्ति के दर्शन मात्र से ही जीवन में शांति का अहसास होता है।

पार्श्वनाथ वास्तव में ऐतिहासिक व्यक्ति थे। उनसे पूर्व श्रमण धर्म की धारा को आम जनता में पहचाना नहीं जाता था। पार्श्वनाथ से ही श्रमणों को पहचान मिली। वे श्रमणों के प्रारंभिक आइकॉन बनकर उभरे।

कल्पसूत्र के अनुसार पार्श्वनाथ का जन्म महावीर स्वामी से लगभग 250 वर्ष पूर्व अर्थात 777 ई. पूर्व चैत्र कृष्ण चतुर्थी को काशी में हुआ था। उनके पिता अश्वसेन वाराणसी के राजा थे। इनकी माता का नाम 'वामा' था। उनका प्रारंभिक जीवन राजकुमार के रूप में व्यतीत हुआ। युवावस्था में कुशस्थल देश की राजकुमारी प्रभावती के साथ आपका विवाह हुआ।

तपस्या : पार्श्वनाथजी तीस वर्ष की आयु में ही गृह त्याग कर संन्यासी हो गए। 83 दिन तक कठोर तपस्या करने के बाद 84वें दिन उन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। वाराणसी के सम्मेद पर्वत पर इन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ था।

प्रचार-प्रसार : कैवल्य के पश्चात्य चातुर्याम (सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह) की शिक्षा दी। ज्ञान प्राप्ति के उपरांत सत्तर वर्ष तक आपने अपने मत और विचारों का प्रचार-प्रसार किया तथा सौ वर्ष की आयु में देह त्याग दी।

पार्श्वनाथ ने चार गणों या संघों की स्थापना की। प्रत्येक गण एक गणधर के अन्तर्गत कार्य करता था। सारनाथ जैन-आगम ग्रंथों में सिंहपुर के नाम से प्रसिद्ध है। यहीं पर जैन धर्म के 11वें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ ने जन्म लिया था और अपने अहिंसा धर्म का प्रचार-प्रसार किया था। उनके अनुयायियों में स्त्री और पुरुष को समान महत्व प्राप्त था।

पार्श्वनाथ मंदिर : सुपार्श्व तथा चन्द्रप्रभा का जन्म भी काशी में ही हुआ था। पार्श्वनाथ की जन्मभूमि के स्थान पर निर्मित मंदिर भेलूपुरा मोहल्ले में विजय नगरम् के महल के पास स्थित है।

सिर के ऊपर तीन, सात और ग्यारह सर्पकणों के छत्रों के आधार पर मूर्तियों में इनकी पहचान होती है। काशी में भदैनी, भेलूपुर एवं मैदागिन में पार्श्वनाथ के कई जैन मन्दिर हैं।