गुरुवार, 13 फ़रवरी 2025
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. »
  3. धर्म-दर्शन
  4. »
  5. जैन धर्म
Written By ND

धर्म से कर्म में आती है पवित्रता

पंचकल्याणक महोत्सव में संतों के प्रवचन

धर्म से कर्म में आती है पवित्रता -
- शशीन्द्र जलधारी
ND

तीर्थंक्षेत्र बावनगजाजी में चल रहे पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के दूसरे दिन संबोधित करते हुए साधुवृंद ने श्रद्घालुओं को धर्ममय जीवन व्यतीत करने की सलाह दी और कहा कि जीवन में धर्म की प्रतिस्थापना करने से कर्म में पवित्रता आ जाती है और व्यक्ति मोक्ष प्राप्ति की ओर अग्रसर हो जाता है। भक्ति में शक्ति है और शक्ति से ही मुक्ति संभव है।

पंचकल्याणक महोत्सव में सुबह के सत्र में पहाड़ी क्षेत्रों की बर्फीली सर्द हवाएँ चल रही थी, इसके बावजूद धर्मालुजनों की आस्था में कमी नजर नहीं आई। समूचे वातावरण में ठिठुरन के साथ भक्ति की भावना भी घुली हुई थी। महोत्सव के लिए तैयार किए गए विशाल शामियाने 'अयोध्यापुरी' में दूसरे दिन उपस्थित श्रद्घालओं की तादाद अपेक्षाकृत अधिक थी।

84 अंकों का महत्व
सुबह गजरथ शोभायात्रा तथा श्रीजी की विधिपूर्वक प्रतिष्ठा के पश्चात धर्मसभा को संबोधित करते हुए उपाध्याय श्री सौभाग्य सागरजी महाराज ने लोगों से आग्रह किया कि महामस्तकाभिषेक महोत्सव को अब 6 दिन शेष हैं और वे यहाँ हर रोज उत्सव तथा त्योहार का आनंद लें।
  12वीं सदी के पूर्व में सतपुड़ा पर्वत के भूरे पत्थरों पर उत्कीर्ण यह भगवान आदिनाथ की अद्वितीय और अप्रतिम प्रतिमा 84 फीट के बजाय 108 फीट की भी बन सकती थी, लेकिन 8 और 4 के अंक को जोड़कर बने 84 अंक का जैन धर्म में विशेष महत्व है।      


उन्होंने भगवान आदिनाथ की विराट प्रतिमा की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि 12 वीं सदी के पूर्व में सतपुड़ा पर्वत के भूरे पत्थरों पर उत्कीर्ण यह अद्वितीय और अप्रतिम प्रतिमा 84 फीट के बजाय 108 फीट की भी बन सकती थी, लेकिन 8 और 4 के अंक को जोड़कर बने 84 अंक का जैन धर्म में विशेष महत्व है।

उन्होंने बताया कि 8 का अंक हमारे अष्टकर्मो के नाश का द्योतक है। जबकि अंक 4 आगम में बताए गए 4 अनुयोगों की ओर संकेत करता है। अनुयोगों के चिंतन-मनन से ही अष्टकर्मो का नाश होता है।

1 लाख 11 हजार 111 में बोलियॉं
दोपहर के सत्र की शुरूआत टीकमगढ़ के श्री रूपेश जैन द्वारा गाए गए पंचकल्याणक गीत के साथ हुई। इस मौके पर सौधर्म इन्द्र डॉ दिलीप-सुमन बोबरा (अमेरिका) सहित पंचकल्याणक महोत्सव के सभी इन्द्र-इन्द्राणियों का सम्मान किया गया। श्री पारस रावका कार्यक्रम के सूत्रधार थे। कार्यक्रम में विधि नायक प्रतिमाजी की स्थापना के लिए न्योछावर राशि की बोली 1 लाख 11 हजार 111 रु. में इंदौर के श्री नरेन्द्र वेद और श्रीमती शकुंतला वेद द्वारा ली गई।

इसी के साथ बावनगजाजी स्थित चैत्यालय में भगवान महावीर की प्रतिमा विराजित करने की बोली भी 1 लाख 11 हजार 111 रू. में बहन सपनाजी द्वारा ली गई। धर्म सभा में मुनिश्री शुभमसागरजी महाराज ने अपने आशीर्वचन में महामस्तकाभिषेक को आत्मशुद्घि और आत्मकल्याण का महोत्सव बताया। उन्होंने लोगों से कहा कि इस महोत्सव में भाग लेकर मन की कलुषिता को धोएँ।

दुर्गुणों को दें तिलांजलि
मुनिश्री कल्पवृक्ष सागरजी ने भी महामस्तकाभिषेक के महत्व पर रोशनी डालते हुए कहा कि हम भगवान के साक्षी में आकर अहंकार, निंदा, बैर, द्वेष आदि दुर्गुणों को तिलांजलि दें तथा दिव्य गुणों को अंगीकार करें।

अंतरमन में झॉंकें
सूत्रधार एवं मार्गदर्शक उपाध्याय श्री गुप्तिसागरजी महाराज ने वीतरागता का आनंद व सुख प्राप्त करने के लिए बाहरी आडम्बरों से मुक्ति पाकर अंतरमन में झॉंकने तथा स्वयं को पहचानने की प्रेरणा दी।