गुरुवार, 30 जनवरी 2025
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Written By राजश्री कासलीवाल

जैन संत : आचार्यश्री विद्यासागरजी

जन्मदिवस विशेष

Acharya Vidyassagrji Maharaj | जैन संत : आचार्यश्री विद्यासागरजी
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दिगंबर जैन धर्म के तपस्वी, अहिंसा, करुणा, दया के प्रणेता और प्रखर कवि सं‍त शिरोमणि आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज का जन्म दिवस आश्विन शुक्ल पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा) के दिन मनाया जाता है। ऐसे गुरु के आशीष पर लोगों का प्रगाढ़ विश्वास है। पृथ्वी पर आज हर मानव शांति और सुख की चाहत में व्याकुल है और तनावरहित जीवन जीना चाहता है।

वास्तव में ऐसे महापुरुष मानव जाति के प्रकाश पुंज हैं, जो मनुष्‍य को धर्म की प्रेरणा देकर उनके जीवन के अंधेरे को दूर करके उन्हें मोक्ष का मार्ग दिखाने का महान कार्य करते हैं। वास्तव में ये महान् आत्माएँ ही मानवता के जीवन मूल्यों का प्रतीक हैं।

मुनि विद्यासागर के बचपन का नाम विद्याधरजी था। उनका जन्म बेलगाँव जिले के गाँव चिक्कोड़ी में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ। माता आर्यिकाश्री समयमतिजी और पिता मुनिश्री मल्लिसागरजी दोनों ही बहुत धार्मिक थे। मुनिश्री ने कक्षा नौवीं तक कन्नड़ी भाषा में शिक्षा ग्रहण की और नौ वर्ष की उम्र में ही उनका मन धर्म की ओर आकर्षित हो गया और उन्होंने उसी समय आध्यात्मिक मार्ग पर चलने का संकल्प कर लिया। उन दिनों विद्यासागरजी आचार्यश्री शांतिसागरजी महाराज के प्रवचन सुनते रहते थे।

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इसी प्रकार धर्म ज्ञान की प्राप्ति करके, धर्म के रास्ते पर अपने चरण बढ़ाते हुए मुनिश्री ने मात्र 22 वर्ष की उम्र में अजमेर (राजस्थान) में 30 जून, 1968 को आचार्यश्री ज्ञानसागरजी महाराज के शिष्यत्व में मुनि दीक्षा ग्रहण की।

दिगंबर मुनि संत विद्यासागरजी और भी कई भाषाओं पर अपनी कमांड जमा रखी थी। उन्होंने कन्नड़ भाषा में शिक्षण ग्रहण करने के बाद भी अँग्रेजी, हिन्दी, संस्कृत, कन्नड़ और बांग्ला भाषाओं का ज्ञान अर्जित करके उन्हीं भाषाओं में लेखन कार्य किया।

महाराज जी के प्रेरणा और आशीर्वाद से आज कई गौशाला, स्वाध्याय शालाएँ, औषधालय स्थापित किए गए हैं। कई जगहों पर निर्माण कार्य जारी है। आचार्यश्री पशु माँस निर्यात के विरोध में जनजागरण अभियान भी चला रहे है। साथ ही 'सर्वोदय तीर्थ' के नाम से अमरकंटक में एक विकलांग निःशुल्क सहायता केंद्र चल रहा है।

विद्यासागरजी का 'मूकमाटी' महा काव्य सर्वाधिक चर्चित है।

महाराजश्री ने पशु धन बचाने, गाय को राष्ट्रीय प्राणी घोषित करने, माँस निर्यात बंद करने को लेकर अनेक उल्लेखनीय कार्य किए हैं। ऐसे ज्ञानी और सुकोमल छवि वाले आचार्यश्री विद्यासागरजी को उनके जन्मदिवस पर शत-शत नमन्।