1. 108 मणियाँ या मनके होते हैं। उपनिषदों की संख्या भी 108 ही है। 2. ब्रह्म के 9 व आदित्य के 12 इस प्रकार इनका गुणन 108 होता है। 3. जैन मतानुसार भी अक्ष माला में 108 दाने रखने का विधान है। यह विधान गुणों पर आधारित है।
हमारे धर्म में 108 की संख्या महत्वपूर्ण मानी गई है। ईश्वर नाम के जप, मंत्र जप, पूजा स्थल या आराध्य की परिक्रमा, दान इत्यादि में इस गणना को महत्व दिया जाता है। जपमाला में इसीलिए 108 मणियाँ या मनके होते हैं। उपनिषदों की संख्या भी 108 ही है। विशिष्ट धर्मगुरुओं के नाम के साथ इस संख्या को लिखने की परंपरा है। तंत्र में उल्लेखित देवी अनुष्ठान भी इतने ही हैं।
परंपरानुसार इस संख्या का प्रयोग तो सभी करते हैं, लेकिन इसको अपनाने के रहस्यों से ज्यादातर लोग अनभिज्ञ होंगे। अतः इस हेतु कुछ तथ्य प्रस्तुत हैं-
जाग्रत अवस्था में शरीर की कुल 10 हजार 800 श्वसन की कल्पना की गई है अतः समाधि या जप के दौरान भी इतने ही आराध्य के स्मरण अपेक्षित हैं। यदि इतना करने में समर्थ नहीं तो अंतिम दो शून्य हटाकर न्यूनतम 108 जप करना ही चाहिए।
108 की संख्या परब्रह्म की प्रतीक मानी जाती है। 9 का अंक ब्रह्म का प्रतीक है। विष्णु व सूर्य की एकात्मकता मानी गई है अतः विष्णु सहित 12 सूर्य या आदित्य हैं। ब्रह्म के 9 व आदित्य के 12 इस प्रकार इनका गुणन 108 होता है। इसीलिए परब्रह्म की पर्याय इस संख्या को पवित्र माना जाता है।
मानव जीवन की 12 राशियाँ हैं। ये राशियाँ 9 ग्रहों से प्रभावित रहती हैं। इन दोनों संख्याओं का गुणन भी 108 होता है।
नभ में 27 नक्षत्र हैं। इनके 4-4 पाद या चरण होते हैं। 27 का 4 से गुणा 108 होता है। ज्योतिष में भी इनके गुणन अनुसार उत्पन्न 108 महादशाओं की चर्चा की गई है।
ऋग्वेद में ऋचाओं की संख्या 10 हजार 800 है। 2 शून्य हटाने पर 108 होती है।
शांडिल्य विद्यानुसार यज्ञ वेदी में 10 हजार 800 ईंटों की आवश्यकता मानी गई है। 2 शून्य कम कर यही संख्या शेष रहती है।
जैन मतानुसार भी अक्ष माला में 108 दाने रखने का विधान है। यह विधान गुणों पर आधारित है। अर्हन्त के 12, सिद्ध के 8, आचार्य के 36, उपाध्याय के 25 व साधु के 27 इस प्रकार पंच परमिष्ठ के कुल 108 गुण होते हैं।