How the hijab was invented: अरब संस्कृति में हिजाब, बुर्का या नकाब का प्रचलन इस्लाम से भी पहले से चला आ रहा है। यहूदी और ईसाई महिलाएं भी कुछ इसी तरह का ड्रेस अरब में पहनती आई है। आओ जानते हैं कि हिजाब, नकाब और बुर्का के बीच क्या अंतर है।
1. हिजाब: हिजाब में सिर्फ सिर, कान और गले को कवर किया जाता है। यदि ये थोड़ा बड़ा होता है तो कंधों को भी कवर कर लेता है।
2. अल-अमीरा: यह हिजाब और नकाब के बीच का एक कपड़ा होता है जो दो स्कार्फ का सेट होता है। एक को टोपी की तरह सिर पर पहना जाता है और दूसरा जो थोड़ा बड़ा होता है उसे सिर पर लपेटकर सीने पर ओढ़ा जाता है।
3. शयला: शायला दुपट्टे जैसा चोकोर स्कार्फ होता है जिससे सिर और बालों को ढंका जाता है। इसके दोनों सिरे कंधों पर लटके रहते हैं।
4. नकाब: नकाब में सिर, कान, गला, कंधे और छाती के साथ ही चेहरा इस तरह ढका होता है कि बस आंखें खुली हो। नकाब वह होता है जो शरीर के ऊपर के हिस्से को ढकता है। नकाब का काले रंग का कपड़ा औरतों के गले और कंधों को ढकते हुए सीने तक आता है जिसे पिन से अटकाया जाता है।
5. बुर्का: काले लबादे जैसी पोशाक को बुर्का कहते हैं जबकि बुर्का नकाब का ही अगला स्तर है। बुरके में संपूर्ण शरीर ढका होता है। बुर्के में आंखें भी ढकी होती हैं। आंखों पर जालीदार हल्का कपड़ा होता है।
6. अबाया: यह बुर्का जैसा ही होता है। यह एक लंबी ढकी हुई पोशाक होती है जिसे महिलाएं भीतर पहने किसी भी कपड़े के ऊपर डाल लेती हैं। इसमें सिर के लिए एक स्कार्फ होता है जिसमें सिर्फ बाल ढके होते हैं और चेहरा खुला होता है।
7. चादर : यह एक बड़ा कपड़ा होता है जिससे चेहरा छोड़कर सिर सहित संपूर्ण शरीर ढक लिया जाता है।
8. चिमार : यह डबल स्कार्फ होता है जो एक दूसरे से जुड़ा होता है। यह शरीर में सिर सहित हाथों की कोहनियों तक को कवर करता है। इसमें सिर, कंधें, छाती और आधी बाहों तक शरीर ढका रहता है। हालांकि इसमें चेहरा खुला रहता है।
9. यहूदी, ईसाई और मुस्लिम समाज में पर्दा प्रथा : हिजाब पहनने का प्रचलन इस्लाम में ही नहीं, ईसाई और यहूदियों में भी है, जो कि इस्लाम के पूर्व के धर्म हैं। ईसाई धर्म में हेडस्कार्फ का प्रचलन उसके प्रारंभिक काल से ही चला आ रहा है। ईसा मसीह की मां मरियम और अन्य ननों की सिर ढकी हुई तस्वीरों से इसे समझा जा सकता है। ईसाई धर्म के पूर्व यहूदी धर्म में यह प्रचलन रहा है। तीनों ही धर्मों के उत्पत्ति काल के पूर्व अरब की संस्कृति में सिर ढंकने की परंपरा रही है। खासकर हम इजिप्ट और मेसोपोटोमिया की सभ्यता में इसे देख सकते हैं।
10. हिजाब : इसका उपयोग मैसोपोटामिया सभ्यता के लोग धूल और तेज धूप से बचने के लिए करते थे। हालांकि बाद में इसे एक अलग पहचान बनाने के लिए अब्राहम धर्म के अनुयायियों ने महिलाओं, बच्चियों और विधवाओं के लिए अनिवार्य कर दिया। इसे धार्मिक सम्मान के प्रतीक के तौर पर पहचाना जाने लगा। गरीब और वेश्याओं के लिए यह प्रतिबंधित था। धीरे-धीरे यह धार्मिक ड्रेस कोड में शामिल हो गया। कालांतर में यह ईसाई महिलाओं में ननों तक ही सिमटकर रह गया।
11. परंपरा पर क्लाइमेट का असर : ऐसा भी कहा जाता है कि नकाब या बुर्का पहनना रेगिस्तानी क्षेत्रों में सबसे पहले प्रचलित हुआ। तर्क यह दिया जाता रहा है कि वहां रेतीली धूल से बचने के लिए महिलाएं पहले शायला या चादर जैसी चुनरी पहनती थीं और बाद में इसने नकाब, अल अमीर और बुर्के का रूप लिया। महिलाएं ही नहीं, पुरुष भी गुलूबंद, मफलर या स्कार्फ जैसा एक कपड़ा रखते थे जिससे गले के साथ ही कान, नाक, मुंह भी ढंक लिया जाता था। इससे कान और नाक में रेत के कण या धूल नहीं भराते हैं। अक्सर यह गर्मी से बचने के लिए भी होता था।