Pakistani public on India Pakistan war: पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव ने पाकिस्तानी जनता, खासकर युवाओं में युद्ध की आशंकाओं को जन्म दिया है। यह रिपोर्ट बताती है कि पाकिस्तानी नागरिक आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता और युद्ध के डर से त्रस्त हैं। जहां नेता और सेना शक्ति प्रदर्शन में लगे हैं, वहीं आम लोग शांति और स्थिरता की मांग कर रहे हैं। स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्टस पाकिस्तानी समाज की वर्तमान मनोदशा, युवाओं की निराशा और उनके भविष्य के प्रति चिंताओं को उजागर करती है।
'द न्यूयॉर्क टाइम्स' में
सलमान मसूद की 'Leaders May Talk Tough, but War Is the Last Thing Pakistanis Want' शीर्षक से एक रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान में आम लोग, विशेष रूप से युवा, युद्ध की बातों से तंग आ चुके हैं। इस्लामाबाद की 21 वर्षीय छात्रा तहसीन ज़हरा कहती हैं, 'नेता ताकत दिखाना चाहते हैं, लेकिन युद्ध की बातें बहुत ज्यादा हो गई हैं। हमारे पास पहले से ही ढेर सारी समस्याएं हैं। हमें और मुसीबत नहीं, शांति चाहिए।' तहसीन की यह बात उस थकान को दर्शाती है जो पाकिस्तानी युवाओं में व्याप्त है।
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पाकिस्तानी युवाओं की सोच : युद्ध नहीं, शांति चाहिए
आर्थिक और राजनीतिक संकट : जनता की बढ़ती चिंता
पाकिस्तान इस समय दशकों के सबसे खराब आर्थिक संकट से गुजर रहा है। हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से मिला आर्थिक सहायता पैकेज सरकार के लिए राहत की बात हो सकता है, लेकिन आम जनता को इसका लाभ अभी तक नहीं दिख रहा। बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, और नौकरी के सीमित अवसरों ने युवाओं का भविष्य अंधकारमय कर दिया है।
लाहौर की मनोचिकित्सक जावेरिया शहज़ाद बताती हैं कि उनके मरीजों में राजनीतिक दमन और आर्थिक संकट के कारण गहरी निराशा और तनाव बढ़ रहा है। लोग स्वतंत्रता की कमी और अनिश्चितता से परेशान हैं। इस्लामाबाद की 31 वर्षीया ज़ारा खान कहती हैं कि पाकिस्तान जैसे दमघोंटू माहौल में स्वावलंबी बनना बेहद मुश्किल है। नौकरी का बाजार खराब है और परिवार पालना एक सपना बन गया है।
प्रमुख बिंदु :
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पाकिस्तानी युवा युद्ध की बातों से तंग आ चुके हैं और शांति चाहते हैं।
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आर्थिक संकट, बेरोजगारी, और राजनीतिक अस्थिरता ने जनता को निराश किया है।
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सेना का जनसमर्थन कमजोर पड़ रहा है, खासकर इमरान खान के हटने के बाद।
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सीमाओं पर आतंकवाद और विद्रोह ने सुरक्षा चिंताएं बढ़ा दी हैं।
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कई युवा विदेश में बेहतर भविष्य की तलाश में हैं।
सेना का प्रभाव और जनता का बदलता रवैया : पाकिस्तानी सेना का जनमत पर लंबे समय से दबदबा रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में यह समर्थन कमजोर पड़ रहा है। 2019 में कश्मीर में हुए आतंकी हमले के बाद सेना के प्रति देशभक्ति की भावना मजबूत थी, लेकिन अब जनता का रवैया जटिल हो गया है। 2022 में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को हटाए जाने और उनके समर्थकों पर दमन ने समाज में गहरी नाराजगी पैदा की है।
इमरान खान की पार्टी की पूर्व सांसद आलिया हमजा कहती हैं कि सेना अब उस जनसमर्थन को खोने के खतरे में है, जिसकी उसे संकट के समय जरूरत होती है। आलोचकों का मानना है कि सेना प्रमुख जनरल सैयद आसिम मुनीर के कार्यकाल में भारत के प्रति कट्टर रुख और राजनीतिक दमन ने असहमति के रास्ते बंद कर दिए हैं।
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सीमाओं पर अस्थिरता : आतंकवाद और विद्रोह का खतरा, पाकिस्तान की पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तानी तालिबान और अफगान तालिबान से जुड़े आतंकी हमले बढ़ रहे हैं। दक्षिण-पश्चिम में बलूचिस्तान में अलगाववादी विद्रोह भी और घातक हो गया है। ये सुरक्षा चुनौतियां युद्ध की आशंकाओं को और बढ़ा रही हैं। जनता को डर है कि भारत के साथ तनाव बढ़ने पर देश और अस्थिर हो सकता है।
युवाओं का सपना : विदेश में बेहतर भविष्य, पाकिस्तान के कई युवा अब देश में रहने को 'निराशाजनक' मानते हैं। सीमित संसाधन, खराब नौकरी बाजार और अनिश्चित भविष्य ने उन्हें विदेश जाने के लिए प्रेरित किया है। ज़ारा खान कहती हैं कि हम में से ज्यादातर लोग अब विदेश में ही उम्मीद देखते हैं। यह प्रवृत्ति दर्शाती है कि युवा देश की मौजूदा स्थिति से कितने हताश हैं।
पाकिस्तानी जनता खासकर युवा, युद्ध की आशंकाओं से घबराए हुए हैं। वे चाहते हैं कि नेता शक्ति प्रदर्शन की बजाय आर्थिक सुधार, रोजगार सृजन और राजनीतिक स्थिरता पर ध्यान दें। सेना और सरकार को जनता की भावनाओं को समझना होगा और संवाद के रास्ते खोलने होंगे। पाकिस्तान को इस समय युद्ध की नहीं, बल्कि शांति, समृद्धि और एकता की जरूरत है। (साभार)