यह वही फिलीस्तीन अथॉरिटी (पीए) का नेतृत्व है जो कि इसराइल के साथ शांति और शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व की ओर सक्रिय रहने का दावा करता है, लेकिन फिलिस्तीन ने इससे इनकार कर दिया है। फिलिस्तीनियों के इंकार के इस शीर्षासन के बाद सच्चाई के नए मानक बन गए हैं। 'फिलिस्तीन की शांति की संस्कृति' इस बात में निहित है कि कई सप्ताह पहले जो राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ जो ज्ञान बांटा गया था, उसमें सच्चाई का उतना ही मानक मूल्य उनकी इस नई घातक धोखाधड़ी से सामने आई है।
लेकिन, जब हम वर्तमान की बात करें तो हमें लगता है कि इसराइल विरोध की कहानियां और नारेबाजी को एक अंतरराष्ट्रीय संस्था यूनेस्को का समर्थन मिला है। बहुत से फिलिस्तीनियों के प्रस्ताव इस बात की हरी झंडी हैं कि वे फिलिस्तीन की स्वतंत्रता के लिए सशस्त्र संघर्ष का विकल्प अपनाएं। वे हरी झंडी को हिंसक संघर्ष की स्वीकृत होने के बाद जॉर्डन नदी के भूमध्यसागरीय समुद्र को फिलिस्तीन को आजाद कराना है।
नए यूनेस्को प्रस्तावों में फिलिस्तीनी आतंकवाद, इसरालियों के खिलाफ हिंसा में एक उत्प्रेरक का काम करेगा। वे यह चाहते हैं कि वे शांति की संभावना और अधिक दूरगामी बना सकते हैं। मध्यपूर्व में रहने वाले बसाम तामिल का कहना है कि यूनेस्को के इस तरह के प्रस्तावों से प्रेरित होकर वे फिलिस्तीन आतंकवादियों की गतिविधियों इस तरह से भड़काना चाहते हैं कि जहां से शांति का मार्ग और अधिक दूर हो जाएगा।
इस मामले में हमास और यूनेस्को के रुख में क्या समानता है? इस प्रश्न का उत्तर कठिन हो सकता है लेकिन दोनों ही यह मानते हैं कि इसराइल और यहूदियों को इस भूमि से ऐतिहासिक, धार्मिक या भावनात्मक लगाव नहीं है? इस मामले में यरुशलम और हेब्रॉन को लेकर यूनेस्को के प्रस्ताव ठीक उसी तरह के हैं जिनके तहत आतंकी गुट भी मानते हैं कि इसराइल को मध्यपूर्व में रहने का कोई स्थान नहीं है। हमाम जैसा आतंकवादी संगठन एक लम्बे समय से यह सुनने को बेकरार था।
एक महत्वपूर्ण पहले यूनेस्को प्रस्ताव में यह कहा गया है कि पश्चिमी दीवार समेत इलाके पर यरुशलम पर इसराइल को वैश्विक अधिकार नहीं मिल गए हैं। एक प्रस्ताव में हेब्रॉन और 'ज्यूइश टूंब ऑफ द पैट्रियार्क्स' को संकट में पड़े फिलिस्तीनी विश्व विरासत स्थल' के तौर पर चिन्हित किया गया है। इस पर दो यूनेस्को प्रस्तावों पर हमास और अन्य फिलीस्तीनी संगठनों ने यूनेस्को की पीठ ठोंकी है। इन दोनों के बारे में कहा गया है कि इसराइल को यहां बने रहने का कोई अधिकार नहीं है।
इन दो प्रस्तावों में कहा गया है कि यहां पर हमास और अन्य आतंकी गुटों ने बड़े पैमाने पर प्रचार किया है। इन दो यूनेस्को प्रस्तावों में हमास के आतंकवादियों और अन्य फिलिस्तीनों संगठनों ने इसराइल को उसके ही स्थान पर जमींदोज करने के लिए पर्याप्त हथियार, गोलीबारी के लिए अधिकाधिक कारतूस खरीद रखे हैं। इन हमलों में अधिकाधिक लोगों को मौत के घाट उतारा जा सके।
इसलिए इसमें आश्चर्य की बात नहीं है कि यूनेस्को के प्रस्तावों को पाकर खुश हुए हों। अब इस परिवर्तन के बाद हमास के नेताओं को बार-बार कह सकता है कि हमने आप से पहले से ही कहा था कि 'इस क्षेत्र में यहूदी तीन या चार हजार वर्षों से अपना प्रभाव का दावा करते रहे हैं। अब तो अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की इस बात को मानने लगी है कि इस स्थान पर यहूदियों का इतिहास एक बड़ा झूठ है।
हमास पहला आतंकी संगठन है जिसने फिलिस्तीनी आतंकवादियों पर यूनेस्को के फैसले को सराहा है। इस्लामी आतंकवादियों के आंदोलन का कहना है कि यह निष्कर्ष इस बात का संदेश देता है कि यहूदियों को अपने रहने का ठिकाना कहीं और बना लेना चाहिए।
यरूशलम को लेकर यूनेस्को के बयान के बाद हमास के प्रवक्ता आब्देल लतीफ अल-क्यानो का कहना है कि इससे इसराइली दावों और कहानी का अंत हो गया है और हम यरुशलम और अल अक्सा मस्जिद पर अपने अधिकार का दावा करेंगे। हमास के प्रवक्ता आब्देल लतीफ अल क्वानो ने कहा कि हम इस प्रस्ताव का समर्थन करते हैं और इन पर पूरे तरीके से समर्थन करने वाले देशों का समर्थन करते हैं।
हमास ने इसका स्वागत किया और हेब्रॉन पर इसराइली कब्जे को भला बुरा कहा। उनका कहना था कि 'यह इस बात का प्रमाण है कि इसरायली कहानी पूरी तरह से झूठी है। अब हमास ने भी यूनेस्को द्वारा हेब्रॉन के दावे के गलत बताया। हमास और अन्य आतंकी संगठनों के अलावा अन्य आतंकी संगठनों ने भी यूनेस्को के इस कदम का स्वागत किया है।