तंत्र में देवी, यक्षिणी, पिशाचिनी, योगिनी आदि अनेक दिव्य शक्तियों की साधना का जिक्र मिलता है। साधना के दो मार्ग है एक वाम और दूसरा दक्षिण। दो तरह की शक्तियां होती है एक देवीय और दूसरी राक्षसी। व्यक्ति को तय करना होता है कि उसे किस तरह की साधना करना चाहिए। हिन्दू धर्मानुसार सिर्फ सात्विक साधना ही करना चाहिए।
नीचे जो साधना बताई जा रही है वह मात्र जानकारी हेतु है। आप साधना के लिए किसी योग्य जानकार से पूछकर ही साधना करें। यदि साधना उचित रीति से नहीं की जाती है तो हो सकता है कि इससे आपका अहित भी हो। हम नहीं जानते हैं कि सही क्या है। यदि आप देवताओं की साधना करने की तरह किसी यक्ष या यक्षिणियों की साधना करते हैं तो यह भी देवताओं की तरह प्रसन्न होकर आपको उचित मार्गदर्शन या फल देते हैं। उल्लेखनीय है कि जब पाण्डव दूसरे वनवास के समय वन-वन भटक रहे थे तब एक यक्ष से उनकी भेंट हुई जिसने युधिष्ठिर से विख्यात 'यक्ष प्रश्न' किए थे।
यक्ष का शाब्दिक अर्थ होता है 'जादू की शक्ति'। आदिकाल में प्रमुख रूप से ये रहस्यमय जातियां थीं:- देव, दैत्य, दानव, राक्षस, यक्ष, गंधर्व, अप्सराएं, पिशाच, किन्नर, वानर, रीझ, भल्ल, किरात, नाग आदि। ये सभी मानवों से कुछ अलग थे। इन सभी के पास रहस्यमय ताकत होती थी और ये सभी मानवों की किसी न किसी रूप में मदद करते थे। देवताओं के बाद देवीय शक्तियों के मामले में यक्ष का ही नंबर आता है। कहते हैं कि यक्षिणियां सकारात्मक शक्तियां हैं तो पिशाचिनियां नकारात्मक। बहुत से लोग यक्षिणियों को भी किसी भूत-प्रेतनी की तरह मानते हैं। साधन स्वविवेक का उपयोग करें।
यक्षिणी साधक के समक्ष एक बहुत ही सौम्य और सुन्दर स्त्री के रूप में प्रस्तुत होती है। प्रमुख 8 यक्ष और यक्षिणियां भी होते हैं। ये आठ यक्षिणियों ने नाम हैं:- 1.सुर सुन्दरी, 2.मनोहारिणी, 3.कनकावती, 4.कामेश्वरी, 5.रति प्रिया, 6.पद्मिनी, 7.नटी और 8.अनुरागिणी। यहां प्रस्तुत है अनुरागिणी यक्षिणी के बारे में सामान्य जानकारी।
अनुरागिणी यक्षिणी : यह यक्षिणी यदि साधक पर प्रसंन्न हो जाए तो वह उसे नित्य धन, मान, यश आदि से परिपूर्ण तृप्त कर देती है। अनुरागिणी यक्षिणी शुभ्रवर्णा है और यह साधक की इच्छा होने पर उसके साथ रास-उल्लास भी करती है।
इस यक्षिणी को सिद्ध करने का मंत्र : ॐ ह्रीं अनुरागिणी आगच्छ स्वाहा ॥
साधना की तैयारी:
*यह साधना घर में नहीं किसी एकांत स्थान पर करना होती है, जहां कोई विघ्न न डाले।
*उक्त साधना नित्य रात्रि में की जाती है।
*साधना के पहले उक्त यक्षिणी का चित्र साधना स्थल पर लगा दें।
*साधना काल में किसी भी प्रकार की अनुभूति हो तो उसे किसी को बताना नहीं चाहिए।
*हवन और पूजा की संपूर्ण सामग्री एकत्रीत कर लें।
*साधान स्थल पर पर्याप्त भोजन, पानी और अन्य प्रकार की दैनिक जरूरत की व्यवस्था करके रखें ताकी साधन छोड़कर कहीं जाना न पड़े।
साधना की विधि :
*भोजपत्र पर लाल चंदन से अनार की कलम द्वारा किसी शुभ मुहूर्त में उस उक्त यक्षिणी का नाम लिखकर उसे आसन पर प्रतिष्ठत करने का उचित रीति से आह्वान करके उनकी पूजा करें।
*उसके बाद उपरोक्त मंत्र का जप आरंभ करें। कम से कम 10 हजार और ज्यादा से ज्यादा 1 लाख तक का जप का संकल्प लेकर ही जप करें।
*जितने भी संख्या का जप का संकल्प लिया है उतना जप करने के बाद कम से कम 108 बार हवन में आहुति देकर हवन करें।
*जप और हवन समाप्त होने के बाद वहीं सो जाएं। यह साधना की संक्षिप्त विधि है। किसी जानकार से पूछकर ही साधना प्रारंभ करें।