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Last Modified: गुरुवार, 8 अप्रैल 2021 (13:07 IST)

9 अप्रैल 2021 को है महापंडित राहुल सांकृत्यायन की जयंती, जानिए 10 खास बातें

Rahul Sankrityayan | 9 अप्रैल 2021 को है महापंडित राहुल सांकृत्यायन की जयंती, जानिए 10 खास बातें
आधुनिक हिंदी साहित्य के महापंडित, इतिहासविद, पुरातत्ववेत्ता, त्रिपिटकाचार्य, एशियाई नवजागरण के प्रवर्तक-नायक राहुल सांकृत्यायन का जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के पंदहा ग्राम में 9 अप्रैल, 1893 को हुआ था। वे प्रारंभ में साम्यवादि विचारधारा से जुड़े थे बाद में बौद्ध धर्म की ओर उनका झुकाव हो चला था। आओ जानते हैं उनके संबंध में 10 रोचक बातें।
 
 
1. राहुल सांस्कृतायन की माता का नाम कुलवन्ती देवी और पिता गोवर्धन पांडेय था। दोनों की असामयिक मृत्यु के चलते वह ननिहाल में पले-बढ़े। इनके नाना का नाम श्री राम शरण पाठक था। 
 
2. उनके बचपन का नाम केदारनाथ पांडेय था। भाइयों में राहुलजी सबसे बड़े थे।
 
3. राहुल की प्राथमिक शिक्षा गांव के ही एक मदरसे में उर्दू में हुई थी, जिसके चलते वे हिन्दी और ऊर्दू में पारंगत हो चले थे। 15 साल की उम्र में उर्दू माध्यम से मिडिल परीक्षा उत्तीर्ण कर वह आजमगढ़ से काशी आ गए।
 
4. काशी में उन्होंने संस्कृत और दर्शनशास्त्र का गहन अध्ययन किया और वेदान्त के अध्ययन के लिए अयोध्या पहुंच गए। अरबी की पढ़ाई के लिए वह आगरा गए तो फारसी की पढ़ाई के लिए लाहौर की यात्रा की।
 
5. राहुलजी को ऊर्दू, हिन्दी, संस्कृत, अरबी, अंग्रेजी, फारसी, पाली, तमिल, कन्नड़, रूसी, फ्रांसीसी, जापानी, तिब्बती सहित लगभग 36 भाषाओं का ज्ञान था। लेकिन उन्हें हिन्दी से ज्यादा प्यार था। 
 
6. राहुलजी का विवाह बचपन में कर दिया गया। यह विवाह उनके जीवन की एक बहुत बड़ी घटना थी जिसकी वजह से उन्होंने किशोरावस्था में ही घर छोड़ दिया था। घर से भाग कर ये एक मठ में साधु हो गए। लेकिन अपनी यायावरी स्वभाव के कारण ये वहां भी टिक नहीं पाए। चौदह वर्ष की अवस्था में ये कलकत्ता भाग आए। लेकिन वहां भी नहीं टिक पाए। इनके मन में ज्ञान प्राप्त करने के लिए गहरा असंतोष था इसीलिए वह भारत में कहीं एक जगह नहीं टिकते थे। इस घुमक्कड़ी स्वभाग के कारण वे आर्य समाज, मार्क्सवाद और बौद्ध मत से प्रभावित हो गए।
 
7. उन्होंने 1917 में रशिया की यात्रा तब कि जबकि वहां रूसी क्रांति हो रही थी। इस पर उन्होंने एक किताब भी लिखी है। इसके अलावा वे श्रीलंका, चीन, जापान और तिब्बत की यात्रा भी की। तिब्बत से जब भारत लौटे तो महत्वपूर्ण ग्रंथों को भारत लेकर आए। इसके अलावा इंग्लैण्ड और यूरोप की यात्रा भी की। दो बार लद्दाख यात्रा, दो बार तिब्बत यात्रा, जापान, कोरिया, मंचूरिया, सोवियत भूमि (1935 ई.), ईरान में पहली बार, तिब्बत में तीसरी बार 1936 ई. में, सोवियत भूमि में दूसरी बार 1937 ई. में, तिब्बत में चौथी बार 1938 ई. में यात्रा की।
 
8. 1921 में वह महात्मा गांधी के साथ जुड़ गए और इस दौरान उन्होंने अपने व्याख्यानों, लेखों और पुस्तकों से पूरी दुनिया को भारत से बाहर बिखरे बौद्ध साहित्य से अवगत कराया। उनकी विद्वता के चलते काशी के बौद्धिक समाज ने उन्हें 'महापंडित' के अलंकार से सम्मानित किया।
 
9. अपनी यात्राओं के दौरान और बौद्ध धर्म के गहन अध्यन करने के बाद राहुलजी बौद्ध धर्म से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपना नाम केदारनाथ से बदलकर राहुल सांस्कृतायन रख लिया। सन् 1930 में श्रीलंका जाकर वे बौद्ध धर्म में दीक्षित हो गए एवं तभी से वे 'रामोदर साधु' से 'राहुल' हो गए और सांकृत्य गोत्र के कारण सांकृत्यायन कहलाए। 1961 में उनकी स्मृति खो गई। इसी दशा में 14 अप्रैल, 1963 को उनका देहांत हो गया।
 
10. राहुल जी ने अपनी यात्रा के अनुभवों को आत्मसात करते हुए 'घुमक्कड़ शास्त्र' भी रचा। राहुल जी की प्रकाशित रचना-
 
कहानी संग्रह: सतमी के बच्चे (1939) ‘वोल्गा से गंगा’ (कहानी संग्रह, 1944 ई.) ‘बहुरंगी मधुपुरी’ (कहानी, 1953 ई.) आदि
 
उपन्यास: ‘सिंह सेनापति’ (1944 ई.), ‘जीने के लिए’ (1940 ई.), ‘मधुर स्वप्न’ (1949 ई.) ‘जय यौधेय’ (1944 ई.) आदि.
 
जीवनी: ‘कार्ल मार्क्स’ (1954 ई.), ‘स्तालिन’ (1954 ई.), ‘माओत्से तुंग’ (1954 ई.)।
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