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Written By WD

इलाहाबाद कुंभ, अष्टमनायकः तीर्थराज प्रयाग

इलाहाबाद कुंभ
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तीर्थराज प्रयाग इस क्षेत्र के सबसे ज्यादा पूज्य देवता हैं। इन्हें माधवराज भी कहा जाता है। पुराणों में कहा गया है कि अयोध्या, मथुरा, मायापुरी, काशी, कांची, अवंतिका, और द्वारका- ये सप्त पुरियां तीर्थ राजप्रयाग की पत्नियां हैं।

तीर्थराज ने इन्हें मुक्ति का अधिकार दिया है। इन सातों पुरियों में काशी श्रेष्ठ है। ये तीर्थराज की पटरानी है, इसीलिए तीर्थराज ने इन्हें सबसे निकट स्थान दिया है। जिस तरह ब्रह्माण्ड से जगत की उत्पत्ति होती है, जगत से ब्रह्माण्ड का जन्म नहीं हो सकता, उसी तरह प्रयाग से सारे तीर्थ उत्पन्न हुए हैं। प्रयाग किसी तीर्थ से उत्पन्न नहीं हो सकता।

प्रयाग यज्ञ भूमि है। यहां ऋषियों और देवताओं ने अनेक यज्ञ किए थे, इसलिए यह तीर्थ बहुत पवित्र माना जाता है। प्रयाग का शाब्दिक अर्थ है- जिस स्थान पर अनेक यज्ञ किए गए।

वैसे हमारे देश में प्रयाग नाम के अनेक तीर्थ हैं, खासतौर से हिमालय पर्वत में इन तीर्थों को प्रयाग नाम से जोड़ा गया है। कर्ण प्रयाग, रुद्र प्रयाग, विष्णु प्रयाग जैसे तीर्थों में लाखों श्रद्धालु हर साल जाते हैं।

इन तीर्थों के नाम से पता चलता है कि यहां ऋषियों और देवताओं ने अनेक यज्ञ किए थे। इन तीर्थों का मुकुट मणि है तीर्थराज प्रयाग। वेदों के जमाने से आज तक यहां यज्ञों की परंपरा चल रही है। इसीलिए कहा गया है कि इस तीर्थ स्थान में आने वाले श्रद्धालु को तत्वज्ञान के बिना भी मुक्ति हासिल हो जाती है।

तीर्थराज का आध्यात्मिक परिवेश ऐसा है, जो श्रद्धालु को सत्य, अहिंसा, करुणा, दान, दया जैसे उच्च विचारों और भावनाओं की ओर प्रेरित करता है। हमारे संस्कृति में सत्संग की महिमा कही गई है। तीर्थराज प्रयाग में संतों और विद्वानों की संगति पाकर सांसारिक गृहस्थ भी पुण्य और मुक्ति के बारे में सोचने लगते हैं।

पुराणों ने इसीलिए कहा है कि तीर्थराज प्रयाग में योग-साधना, सदाचार, तारक यंत्र, और ज्ञान गुरु के बिना भी मिल सकती है। वेद पुराण और स्मृतियां यही कहती हैं। गंगा और यमुना का पवित्र जल भी अपने आप में बहुत बड़ा प्रमाण है।

तीर्थराज प्रयाग की महिमा का वर्णन पुराणों में इस तरह किया गया है-

सितासिते यत्र चामरे नद्यौ विभाते मुनि भानुकन्यके।
नीलात्पत्रं वट एव साक्षात स तीर्थराजो जयति प्रयागः॥