शाही स्नान में संघर्ष का इतिहास
पहला शाही स्नान 12 फरवरी को
हरिद्वार महाकुंभ 2010 के मद्देनजर देशभर के साधु-सन्यासियों के आगमन हो चुका है। कुंभ का पहला स्नान 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर संपन्न हुआ। तीन शाही स्नान इस महाकुंभ का विशेष आकर्षण माने जाते हैं। पहला शाही स्नान 12 फरवरी 2010 को महाशिवरात्रि पर, द्वितीय शाही स्नान 15 मार्च 2010 सोमवार सोमवती अमावस्या पर और तृतीय शाही स्नान 14 अप्रैल 2010 बुधवार मेष संक्रांति के शुभ अवसर पर होंगे। इसको लेकर पुलिस प्रशासन चौकन्ने हो चुके है। साढ़े छह करोड़ लोग आएँगे : इस चार माह के अंतराल में हरिद्वार में माँ गंगा के स्नान का पुण्य अर्जित करने लगभग साढ़े छह करोड़ लोगों के आने की संभावना है। सरकार इस भीड़ की व्यवस्था एवं इनके सकुशाल स्नान निबटाने के प्रयास में जुटी हैं। गंगा का माहात्म्य : भगवान शिव की जटाओं से निकली गंगा ने हरिद्वार में ही पृथ्वी का स्पर्श किया था। गंगा भारतीय संस्कृति धर्म एवं आध्यात्मिक आस्था का पर्याय है। गंगा की लहरों के आंचल में ही भारतीय संस्कृति का विकास हुआ है। इसलिए गंगा को शैव समुदाय जहाँ अपनी इष्ट देवी मानता है, वहीं वैष्णवों के लिए यह विष्णुपदी के रूप में स्तुत्य है। शाक्त संप्रदाय तो गंगा को अनादि शक्ति के रूप में पूजता है। शंकराचार्य से लेकर रामानुज बल्लभाचार्य, रामानंद, कबीर व तुलसी ने भी गंगा की साधना को भक्ति का अभिन्न अंग माना है।
इसी गंगातीरे जुटने वाले विश्व के सबसे बड़े मेलों को लेकर सरकार की दिल की धड़कन बढ़ती रहती है। इसे सुरक्षित सम्पन्न कराना सरकार की अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। शाही स्नान में संघर्ष का इतिहास : शाही स्नान के वक्त तमाम अखा़ड़ों एवं साधुओं के संप्रदायों के बीच मामूली कहासुनी भी खूनी संघर्ष के रूप में तब्दील हो जाती है। इसका पुराना इतिहास है। हरिद्वार कुंभ में तो ऐसे हादसों का पूरा एक इतिहास रहा है। वर्ष 1310 के महाकुंभ में महानिर्वाणी अखाड़े और रामानंद वैष्णवों के बीच हुए झगड़े ने खूनी संघर्ष का रूप ले लिया था। वर्ष 1398 के अर्धकुंभ में तो तैमूर लंग के आक्रमण से कई जानें गई थीं।वर्ष 1760 में शैव सन्यासियों व वैष्णव बैरागियों के बीच संघर्ष हुआ था। 1796 के कुम्भ में शैव संयासी और निर्मल संप्रदाय आपस में भिड़ गए थे। 1927 में बैरीकेडिंग टूटने से काफी बड़ी दुर्घटना हो गई थी। वर्ष 1986 में भी दुर्घटना के कारण कई लोग हताहत हो गए। 1998 में हर की पौड़ी में अखाड़ों के बीच संघर्ष हुआ था। 2004 के अर्धकुंभ मेले में एक महिला से पुलिस द्वारा की गई छेडछाड़ ने जनता, खासकर व्यापारियों को सड़क पर संघर्ष के लिए मजबूर कर दिया। जिसमें एक युवक की मौत हो गई।