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राष्ट्रकवि श्रीकृष्ण सरल की जन्मशताब्दी पर विशेष

राष्ट्रकवि श्रीकृष्ण सरल की जन्मशताब्दी पर विशेष - Shrikrishna Saral
'नहीं महाकवि और न कवि ही लोगों द्वारा कहलाऊं, 
'सरल' शहीदों का चारण था कहकर याद किया जाऊं।'

 
यह अभिलाषा थी राष्ट्रकवि श्रीकृष्ण 'सरल' की। क्या... कौन श्रीकृष्ण सरल? यह हमारी विडंबना ही है कि जिस व्यक्ति ने सारा जीवन सिर्फ और सिर्फ क्रांतिकारियों के योगदान को हम तक पहुंचाने के लिए लगा दिया, जिसने अपने परिवार की खुशियां, पत्नी के गहने यहां तक कि स्वयं की जान भी दांव पर लगा दी, उसका आज हम परिचय पूछते हैं। हालांकि वो किसी परिचय का मोहताज नहीं, वह तो स्वयं परिचय है राष्ट्रनिष्ठा का, देशप्रेम का, श्रद्धा और समर्पण का।

 
सरलजी का कहना था कि मैं क्रांतिकारियों पर इसलिए लिखता हूं जिससे कि आने वाली पीढ़ियों को कृतघ्न न कहा जाए। ‍'जीवित-शहीद' की उपाधि से अलंकृत श्रीकृष्ण 'सरल' सिर्फ नाम के ही सरल नहीं थे, सरलता उनका स्वभाव था। राष्ट्रकवि श्रीकृष्ण 'सरल' का जन्म 1 जनवरी 1919 को मप्र के गुना जिले के अशोकनगर में हुआ था। उनके पिता का नाम पं. भगवती प्रसाद बिरथरे और माता का नाम यमुनादेवी था। जब सरलजी 5 वर्ष के थे तभी उनकी माता का देहांत हो गया था।

 
आपने लगभग 10 वर्ष की उम्र में काव्य लेखन प्रारंभ कर दिया था। प्रारंभ से ही आपकी रुचि राष्ट्रीय लेखन एवं क्रांतिकारियों के जीवन में रही। आपने निजी व्यय से करीब 20 लाख किलोमीटर की यात्रा क्रांतिकारियों के जीवन को खंगालने के उद्देश्य से की। 15 महाकाव्यों का लेखन करने वाले इस महान कवि ने अपने निजी व्यय से 125 पुस्तकें, 45 काव्य ग्रंथ, 4 खंड काव्य, 31 काव्य संकलन व 8 उपन्यासों का प्रकाशन किया।

 
शासन की ओर से उन्हें न तो कोई सहयोग मिला और न ही शासन ने उनके लिखे साहित्य के विक्रय में कोई रुचि ही दिखाई। सौतेले व्यवहार में समाज के 'चौथे स्तंभ' कहे जाने वाले पत्रकारिता जगत ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। शायद श्रीकृष्ण सरल तथाकथित समालोचकों एवं पत्रकारों की दृष्टि में महान साहित्यकारों की श्रेणी में नहीं आते हैं। ठीक भी है, ऐसे कार्य महान व्यक्ति नहीं अपितु दीवाने ही कर पाते हैं।

 
देशभक्ति और भारतमाता के सपूतों के प्रति श्रद्धावनत 'सरल'जी से बड़ा दीवाना और कहां? निश्चय ही सरलजी की काव्ययात्रा एक दीवानापन था, वैसा ही दीवानापन जैसा कबीर में था, मीरा में था और उसे समझने और महसूस करने के लिए बुद्धि से अधिक हृदय की आवश्यकता होती है। आज हृदय पाषाण होते जा रहे हैं। अगर इसी तरह चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब देशप्रेम, बलिदान, राष्ट्रनिष्ठा की ये बातें सिर्फ पागलपन का पर्याय बनकर रह जाएंगी और इनके लिए कोई भी अपने प्राण दांव पर नहीं लगाएगा। सरलजी की यही चिंता उनकी काव्य यात्रा में सर्वत्र परिलक्षित होती है।
 
 
वे कहते हैं-
 
'पूजे न गए शहीद तो फिर आजादी कौन बचाएगा?
फिर कौन मौत की छाया में जीवन के रास रचाएगा?'
 
श्रीकृष्ण सरलजी के बारे में महत्वपूर्ण बातें-
 
1. राष्ट्रकवि श्रीकृष्ण सरलजी ने अपना अधिकांश लेखन केवल क्रांतिकारियों को केंद्रित कर ही किया।

 
2. राष्ट्रकवि श्रीकृष्ण सरलजी ने अपने निजी व्यय से 10 से अधिक महाकाव्य, 4 खंड काव्य, 125 पुस्तकें, 
45 काव्य खंड, 31 काव्य संकलन एवं 8 उपन्यासों का प्रकाशन करवाया।
 
3. राष्ट्रकवि श्रीकृष्ण सरलजी ने अपने लेखन हेतु प्रामाणिक तथ्य संकलित करने के उद्देश्य से निजी व्यय से 10 देशों व लगभग 10 लाख किमी से अधिक की यात्राएं कीं।
 
4. राष्ट्रकवि श्रीकृष्ण सरलजी को अपनी स्वनामधन्य कृति 'क्रांति गंगा' को लिखने में 27 वर्षों का समय लगा।
 
5. राष्ट्रकवि श्रीकृष्ण सरलजी को अपनी कृतियों व महाकाव्यों के प्रकाशन हेतु अपनी संपत्ति तक बेचनी पड़ी।
 
6. शहीद भगतसिंह पर लिखे महाकाव्य का विमोचन करने हेतु शहीद-ए-आजम भगतसिंह की माताजी स्वयं श्रीकृष्ण सरलजी के आमंत्रण पर उपस्थित हुई थीं।
 
7. जीवनपर्यंत क्रांतिकारियों पर अपनी लेखनी चलाने वाले राष्ट्रकवि श्रीकृष्ण सरलजी के प्रति सरकारों व शासन का व्यवहार अधिकतर उपेक्षापूर्ण ही रहा।
 
 
श्रीकृष्ण सरलजी के बारे में विद्वानों का कहना है-
 
1. 'श्री सरल जीवित शहीद हैं। उनकी साहित्य साधना तपस्या कोटि की है।' -महान क्रांतिकारी पं. परमानंद
 
2. 'सरलजी का लेखन ऐतिहासिक दस्तावेज से कम नहीं है। वह नेताजी सुभाष और आजाद हिन्द फौज का स्थायी स्मारक सिद्ध होगा।' -कर्नल जीएस ढिल्लन, आजाद हिन्द फौज
 
3 'सरल साहब ने इतनी साहित्यिक ऊंचाई प्राप्त कर ली है कि उन्हें कोई भी अलंकरण छोटा ही पड़ेगा।' -पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह
 
 
4. 'सरलजी के लेखन का मूल्यांकन तो इतिहास ही कर सकेगा। हम तो केवल उनकी वंदना कर सकते हैं।' -तत्कालीन सांसद शंकरदयाल सिंह
 
5. 'भारतवर्ष में शहीदों का समुचित श्राद्ध यदि किसी ने किया है, तो वह किया है कविवर श्रीकृष्ण सरल ने।' -पं. बनारसीदास चतुर्वेदी
 
-पं. हेमन्त रिछारिया
संपादक, 'सरल-चेतना'
 
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