धरती पर स्वर्ग : ऑरोवैली आश्रम
अगर फिरदौस बर्रूए-जमीनस्तो, हमीनस्त, हमीनस्त, हमीनस्तो।' अगर पृथ्वी पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं है, यहीं है। फिरदौसी के इस कथन के अनुसार यूँ तो कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और लाल किले तक को यह उपमा दी गई है किंतु 'ऑरौवैली आश्रम' की विशेषता कुछ अलग ही है।
उत्तराखंड में हरिद्वार और ऋषिकेश से कुछ ही दूर स्थित है शांति और आनंद से ओतप्रोत ऑरोवैली आश्रम। यहाँ सौंदर्य को आप न केवल प्राकृतिक रूप में बल्कि अध्यात्म और दर्शन की दृष्टि से भी परिभाषित पाते हैं। यहाँ शांति को हम कई तरह से रूपांतरित होते देखते है उसकी यही विशिष्टता उसे प्राकृतिक, आध्यात्मिक, भौतिक एवं व्यावहारिक दृष्टि से अन्य स्थानों से अलग महत्व देती है। यहाँ सौंदर्य को आप न केवल प्राकृतिक रूप में बल्कि अध्यात्म और दर्शन की दृष्टि से भी परिभाषित पाते हैं। इस स्थान की विशिष्टता यह है कि यहाँ शांति को हम कई तरह से रूपांतरित होते देखते है - 'प्राकृतिक शांति' इनमें सर्वोपरि है। यहाँ विविध प्रकार के वृक्षों, पादप-पुष्पों से जो वायु निकलती है उसका एक-एक अणु श्वास लेने पर न केवल आध्यात्मिक चेतना का अहसास कराता है बल्कि उसका औषधीय गुण शारीरिक विकारों का स्वतः ही शमन करता है।प्रातःकाल पक्षियों की चहचहाहट और मधुर संगीत, सायंकाल पक्षियों का कलरव आश्रम के वातावरण को भक्ति और आनंद से विभोर कर देता है। उसी के साथ ध्यान केंद्र (मेडिटेशन हॉल) में अखंड शांति के वातावरण में लोग ध्यान करते हैं। यह स्थान आपको आध्यात्मिक शांति की अनुभूति कराता है। '
मानसिक शांति' के लिए यहाँ आप अध्ययन-चिंतन कर सकते हैं। 'बौद्धिक शांति' के लिए यहाँ पुस्तकालय है। लेखकों-विचारकों के लिए अलग कक्ष हैं जहाँ वे अपना लेखन कर सकते हैं। स्वामी ब्रह्मदेव से सत्संग में विविध प्रश्नों के माध्यम से योग, दर्शन एवं अध्यात्म संबंधी विषयों के साथ-साथ जीवन-दर्शन पर भी चर्चा कर सकते हैं। '
व्यावहारिक शांति' यहाँ की अनुशासन व्यवस्था से मिलती है। सभी से यह अपेक्षा की जाती है कि वे ऊँची आवाज में न बोलें ताकि आश्रम के वातावरण की शांति न भंग हो।