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Written By Author राकेशधर द्विवेदी

आजादी किसके लिए

Independence Day
बड़े हर्ष का विषय है कि राष्ट्र अपनी आजादी की 68वीं सालगिरह मना रहा है। बड़े बलिदानों व अथक प्रयासों के पश्चात यह आजादी हमें प्राप्त हुई, किंतु इन 68 वर्षों में 'हमने क्या खोया और क्या पाया', यह एक बहस का मुद्दा है।
 
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि आप किसी कार्य को करें तो यह अवश्य सोचें कि मेरे द्वारा किया गया कार्य समाज के सबसे निचले तबके पर बैठे व्यक्ति को कितना लाभ पहुंचा सकता है। राष्ट्रपिता का यह वाक्य उस समय भी प्रासंगिक था और आज भी उतना ही प्रासंगिक है। 
कारण स्पष्ट है कि आजादी केवल अंग्रेजी हुकूमत से ही नहीं मिलनी थी, आजादी की आवश्यकता थी आर्थिक रूप से अर्थात असमानता दूर हो, संविधान में लिखित समाजवादी गणतंत्र का स्वरूप वास्तविक धरातल पर क्रियान्वित हो सके और आजादी मिले सामंती सोच से।
 
मैं इस विषय पर बहुत ही ज्यादा भगतसिंह से प्रभावित हूं जिन्होंने अपनी शहादत से पूर्व लिखे पत्र में कहा था ‍कि मैं नहीं समझ पाता हूं कि ये 'मुट्ठीभर राख विनष्ट क्यों की जाती है।' संभवत: वे आम आदमी की नजरों में मुट्ठीभर राख की कीमत को समझते थे।
 
वस्तुत: आजादी का मूल्यांकन करने के लिए नागरिकों के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्तर का मूल्यांकन करना समीचीन होगा। महात्मा गांधी ने कहा था कि जब तब पंचायतें व गांव आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं होंगे, राष्ट्र आजादी के अपने वास्तविक लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकेगा। उन्होंने हरिजन व हिन्द स्वराज्य में इस संदर्भ में अनेक लेख लिखे। उन लेखों के माध्यम से आजादी के वास्तविक नायक दरिद्रनारायण को मजबूत करने की बात कही गई है। राष्ट्रपिता इस तथ्य से भली-भांति अवगत थे कि भारत की ग्रामीण जनता को मजबूत बनाए बिना आजादी अपने मकसद को प्राप्त नहीं कर पाएगी।
 
संभवत: यही कारण है कि यूरोप और अफ्रीका की 19वीं सदी में सूट-बूट में बैरिस्टर बनकर यात्रा करने वाला फकीर/ राष्ट्रपुरुष पुन: एक धोती के कपड़े में आ गया। शायद वे इस सत्य को जानते थे कि हिन्दुस्तान की उस समय की जनता को एक कपड़ा ही मयस्सर था। आज आजादी के इतने वर्षों के पश्चात भी आर्थिक असमानता समाप्त नहीं हुई है इसलिए आज भी रोजगार की गारंटी के रूप में मनरेगा और नरेगा जैसी योजनाएं जारी रखने की घोषणा करनी पड़ती है। 
 
एक पब्लिक कैंटीन की बात अरविंद केजरीवाल को करनी पड़ती है, जहां आम आदमी को 10 रु. में खाना नसीब होगा। पर क्या 35 रुपए में एक आदमी का एक दिन में खर्च चल सकता है? इस पर चर्चाएं चलती हैं। इन बिंदुओं पर आज भी बहस संसद में व राष्ट्रीय मंचों पर होती है।
 
सूखा जैसी राष्ट्रीय समस्याएं हमेशा दिखाई देती हैं और यह सुनाई देता है‍ कि अन्नदाता ने आत्महत्या कर ली। बाढ़ की विभीषिका से अभी भी गांव के किसान को र्प्याप्त राहत नहीं मिली है नतीजा ओलावृष्टि से फसलों को नुकसान और किसानों द्वारा आत्महत्या की खबरें आम बात हैं। संभवत: यह इसलिए है कि हम उन्हें फसल बीमा का कोई बहुत कारगर उपाय नहीं दे पाए हैं।
 
यह सच है कि बड़ी संख्या में इंजीनियरिंग कॉलेज खुले और लाखों की संख्या में इंजीनियर उनसे पास होकर निकल रहे हैं। लेकिन वे आपको किसी मॉल में ब्रांडेड शर्ट बेचते नजर आएंगे या ये हो सकता है कि वे मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव के रूप में नजर आएं। तो शिक्षा का स्तरीकरण किस तरह बढ़ाएं और सही अर्थों में रोजगार का सृजन कर सही व्यक्ति तक पहुंचाएं, यह एक प्रश्न का विषय है तथा वर्तमान समय की एक चुनौती है। आर्थिक विषमता और भौतिकता ने सदियों से संरक्षित संस्कार को पुराने समय की विषयवस्तु बना दिया है। हमें अपने संस्कारों को नहीं खोना है।
 
कहा जाता है कि 'लम्हों ने खता की, सदियों ने सजा पाई', यह वर्तमान में भी प्रासंगिक है, क्योंकि हमने तमाम ऐसे निर्णय ले लिए जिससे जनता-जनार्दन लाभान्वित नहीं हो पाई।
 
किसान व मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा और रोजगार का अधिकार दिए बिना आजादी अपने निर्धारित लक्ष्यों को नहीं प्राप्त हो सकती है। इसके लिए शिक्षा का उच्च स्तर गांवों व तहसीलों तक पहुंचाना होगा। तहसील स्तर पर केंद्रीय विद्यालय व जी स्कूल जैसे संस्थान खुलवाने होंगे। बड़ी संख्या में कृषि विज्ञान केंद्र खुलवाने होंगे और इस बात का प्रयास करना पड़ेगा कि भय, भ्रष्टाचार और भीषण आपदा के डर से मुक्त होकर अन्नदाता रह सके। संभवत: तभी आजादी सही अर्थों में प्राप्त की जा सकेगी। 
 
केवल महानगरों में बढ़ती हुई मर्सी‍डीज, बीएमडब्ल्यू व ऑडी कारों की संख्या आजादी के लक्ष्‍यों को प्राप्त करने के संकेत की पुष्टि नहीं करेगी अर्थात आजादी प्राप्त करने के प्रयास करने होंगे आर्थिक असमानता से, बेरोजगारी से, सामाजिक असमानता से और भ्रष्टाचार से- यह वास्तविक लक्ष्य है।
 
इनकी प्राप्ति ही सुनिश्चित करेगी कि हमने राष्ट्रपिता और महान नेताओं जयप्रकाशजी, दीनदयाल उपाध्यायजी आदि की कल्पनाओं को साकार किया है व आजादी को सही अर्थों में आम आदमी व दरिद्रनारायण तक पहुंचा रहे हैं।