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Written By WD Feature Desk
Last Updated : शुक्रवार, 2 अगस्त 2024 (15:05 IST)

15th August 2024 : भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास पर एक नज़र

15th August 2024 : भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास पर एक नज़र - 15th August 2024 History of Indian Independence Struggle
Independence Day 2024: इस बार 78वां स्वतंत्रता दिवस मनाया जा रहा है। भारत को अंग्रेजों से आजादी लंबे संघर्ष के बाद मिली है। 1857 से लेकर 1947 तक यानी 90 वर्ष के लंबे संघर्ष के बाद हमें आजादी मिली। इन 90 वर्षों में जो कुछ भी हुआ उस पर सैंकड़ों किताबें लिखी जा चुकी है। आजादी के साथ ही भारत का विभाज हो गया। 1857 के पहले भारत का क्षेत्रफल 83 लाख वर्ग किमी था। वर्तमान भारत का क्षेत्रफल लगभग 33 लाख वर्ग किमी से थोड़ा ही कम है। पड़ोसी 9 देशों का क्षेत्रफल 50 लाख वर्ग किमी बनता है।ALSO READ: देश को आजादी दिलाने में इन 3 महिलाओं का रहा बलिदान, जानें इतिहास
 
1. मंगल पांडे आजादी के पहले ऐसे क्रांतिकारी थे, जिनके सामने गर्दन झुका कर जल्‍लादों ने फांसी देने से इनकार कर दिया था। ऐसे महान क्रांतिकारी और स्वतंत्रता संग्राम के महानायक मंगल पांडे को कोर्ट के फैसले के अनुसार 18 अप्रैल 1857 को फांसी दी जानी थी, लेकि‍न अंग्रेजों द्वारा 10 दिन पूर्व ही यानी 8 अप्रैल सन् 1857 को ही फांसी दे दी गई। इससे पूरे देश में क्रांति भड़क गई। तात्या टोपे, नाना साहब, वीरांगना अवंतीबाई लोधी, रानी लक्ष्मीबाई सहित कई राजाओं ने इस क्रांति में भाग लिया लेकिन कुछ भारतीय राजाओं की फूट के कारण क्रांति असफल हो गई।
 
2. 1857 की क्रांति के असफल होने के बाद अंग्रेजों को एक बात तो समझ में आ गई थी कि अब इस देश में लंबे काल तक शासन करना मुश्किल होगा। इसीलिए उन्होंने भारत धर्म, जाति और प्रांत के आधार पर बांटने का प्लान तैयार किया। भारत को तोड़ने की प्रक्रिया के तहत हिंदू और मुसलमानों को अलग-अलग दर्जा देना प्रारंभ किया। लॉर्ड इर्विन के दौर से ही भारत विभाजन के स्पष्ट बीज बोए गए। माउंटबेटन तक इस नीति का पालन किया गया।
 
3. भारत विभाजन के मंसूबों को 3 जून प्लान या 'माउंटबैटन प्लान' का नाम दिया गया। तमाम मुस्लिम नेताओं को जो भारत और कांग्रेस के लिए जान देने के लिए तैयार थे इस प्लान के तहत बरगलाए गए। विंसटन चर्चिल ने जहां मोहम्मद अली जिन्ना को अपना करीबी बनाकर उन्हें बरगलाया वहीं माउंटबेटन ने जवाहरलाल नेहरू को साथ रखा था।ALSO READ: रानी अवंतीबाई लोधी, 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में दिया था अहम योगदान
 
4. अंतत: 1906 में ढाका में मुस्लिम लीग की स्थापना की। जिन्ना हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्ष में थे, लेकिन विंसटन चर्चिल ने उन्हें इस बात के आखिरकार मना ही लिया की मुसलमानों का भविष्य हिंदुओं के साथ सुरक्षित नहीं है। आखिरकार लाहौर में 1940 के मुस्लिम लीग सम्मेलन में जिन्ना ने साफ तौर पर कहा कि वह दो अलग-अलग राष्ट्र चाहते हैं।
Rani Lakshmi Bai
5. मुस्लिम लीग से पाकिस्तान की मांग उठवाई गई और फिर उसके माध्यम से सिंध और बंगाल में हिन्दुओं का कत्लेआम कराया गया। अगस्त 1946 में 'सीधी कार्रवाई दिवस' मनाया और कलकत्ता में भीषण दंगे किए गए जिसमें करीब 5,000 लोग मारे गए और बहुत से घायल हुए। यहां से दंगों की शुरुआत हुई। ऐसे माहौल में सभी नेताओं पर दबाव पड़ने लगा कि वे विभाजन को स्वीकार करें ताकि देश में गृहयुद्ध ना हो।
 
6. इसके बाद भारत का विभाजन माउंटबेटन योजना ( 3 जून प्लान' ) के आधार पर तैयार भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के आधार पर किया गया। इस अधिनियम में कहा गया कि 15 अगस्त 1947 को भारत एवं पाकिस्तान नामक दो अधिराज्य बना दिए जाएंगे और उनको ब्रितानी सरकार सत्ता सौंप देगी।ALSO READ: 15th August 2024 : भारत विभाजन का क्या था 'माउंटबेटन प्लान'?
 
7. माउंटबेटन ने भारत की आजादी को लेकर जवाहरलाल नेहरू के सामने एक प्रस्ताव रखा था जिसमें यह प्रावधान था कि भारत के 565 रजवाड़े भारत या पाकिस्तान में किसी एक में विलय को चुनेंगे और वे चाहें तो दोनों के साथ न जाकर अपने को स्वतंत्र भी रख सकेंगे। इन 565 रजवाड़ों जिनमें से अधिकांश प्रिंसली स्टेट (ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा) थे में से भारत के हिस्से में आए रजवाड़ों ने एक-एक करके विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। बचे रह गए थे त्रावणकोर, हैदराबाद, जूनागढ़, कश्मीर और भोपाल।‍ जिन्हें भारत में मिलाने के लिए सरदार पटेल ने अभियान चलाया था। हालांकि कश्मीर में वे इसीलिए सफल नहीं हो पाए थे क्योंकि कहा जाता है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसमें दखल दिया था।
 
8. विभाजन की इस घोषणा के बाद पूरे देश में अफरातफरी का माहौल था। एक तरफ आजादी मिलने की खुशी थी तो दूसरी तरफ बंटवारे का दर्द। सभी यह जानने में लगे थे कि कौन सा क्षेत्र भारत में और कौनसा क्षेत्र पाकिस्तान में रहेगा। इसी के चले हिन्दू, सिख और मुस्लिम सभी बॉर्डर क्रास करने में लगे थे। अपनी भूमि और मकान सभी कुछ छोड़ने का दर्द सीने में लिए वे एक अनिश्‍चित भविष्य की ओर कदम बढ़ा रहे थे। 
 
9. पाकिस्तान से हिंदू और सिखों को जबरन ट्रेन में ठूंस कर भारत भेजा जा रहा था, जबकि भारत से मुस्लिम अपनी स्वेच्छा से पाकिस्तान जा रहे थे। ये ज्यादादर मुस्लिम पंजाब, राजस्थान, बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश के थे। यहां कई क्षेत्रों में मुस्लिमों को पाकिस्तान जाने से रोका जा रहा था, जबकि पाकिस्तान में सेना और कट्टरपंथी मिलकर हिन्दू और सिखों को बॉडर्र पर भेज रही थी। 
 
10. दो देश के बंटवारे में दोनों ओर के अनुमानित आंकड़ों के अनुसार 1.4 करोड़ लोग विस्थापित हुए थे। 1951 की विस्थापित जनगणना के अनुसार विभाजन के एकदम बाद 72,26,000 मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान गए और 72,49,000 हिन्दू और सिख पाकिस्तान छोड़कर भारत आए। 10 किलोमीटर लंबी लाइन में लाखों लोग देशों की सीमा को पार हुए उस पार गए या इस पार आए। महज 60 दिनों में एक स्‍थान पर सालों से रहने वाले को अपना घर बार, जमीन, दुकानें, जायदाद, संपत्‍ति, खेती किसानी छोडकर हिंदुस्‍तान से पाकिस्‍तान और पाकिस्‍तान से हिंदुस्‍तान आना पड़ा। हालांकि विस्थापन का यह दौर आगे भी चलता रहा, जिनके आंकड़े उपरोक्त से कई गुना हो सकते हैं।ALSO READ: 15th August 2024: भारत के गुमनाम क्रांतिकारी, जानिए उनकी कहानी
 
11. 13 अगस्त 1947 को आजादी के महज दो दिन पूर्व ही हिंदुस्तान की सरकार ने यह फैसला लिया कि उनकी सरकार सोविय यूनियन के साथ मित्रता का संबंध रखेगी, जबकि पाकिस्तान ने चीन और साऊदी अरब की ओर देखना प्रारंभ कर दिया था।
 
12. 13 अगस्त के दिन त्रिपुरा की महारानी ने विलय के कागजात पर अपने दस्तखत किए थे जिसके चलते त्रिपुरा का भारत में विलय हुआ था जबकि इसी दिन 13 अगस्त 1947 को भोपाल के नवाब हमिदुल्ला खान ने भोपाल के विलय से इनकार करते हुए भोपाल के आजाद रखने की मांग रखी थी। 13 अगस्त 1947 को ही फेडरल कोर्ट के चीफ जस्टिस सर हरिलाल जेकिसुनदास कनिया भारत के चीफ जस्टिस बनाए गए।
 
13. कुल मिलाकर भारतवर्ष में 662 रियासतें थीं जिसमें से 565 रजवाड़े ब्रिटिश शासन के अंतर्गत थे। 565 रजवाड़ों में से से 552 रियासतों ने स्वेच्छा से भारतीय परिसंघ में शामिल होने की स्वीकृति दी थी। जूनागढ़, हैदराबाद, त्रावणकोर और कश्मीर को छोडकर बाकी की रियासतों ने पाकिस्तान के साथ जाने की स्वीकृति दी थी।
 
14. मार्च 1947 में लॉर्ड माउंटबेटन, लॉर्ड वावल के स्थान पर वाइसराय नियुक्त हुए। 8 मई 1947 को वीपी मेनन ने सत्ता अंतरण के लिए एक योजना प्रस्तुत की जिसका अनुमोदन माउंटबेटन ने किया। कांग्रेस की ओर से जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल और कृपलानी थे जबकि मुस्लिम लीग की ओर से मोहम्मद अली जिन्ना, लियाकत अली और अब्दुल निश्तार थे जिन्होंने विचार-विमर्श करने के बाद इस योजना को स्वीकार किया। प्रधानमंत्री एटली ने इस योजना की घोषणा हाउस ऑफ कामंस में 3 जून 1947 को की थी इसीलिए इस योजना को 3 जून की योजना भी कहा जाता है। इसी दिन माउंटबेटन ने विभाजन की अपनी घोषणा प्रकाशित की।ALSO READ: भारत छोड़ो आंदोलन में रखी गई थी स्वतंत्रता की नींव, जानें 10 जबरदस्त बातें
 
15. इस योजना के अनुसार पंजाब और बंगाल की प्रांतीय विधानसभाओं के वे सदस्य, जो मुस्लिम बहुमत वाले जिलों का प्रतिनिधित्व करते थे, अलग एकत्र होकर और गैरमुस्लिम बहुमत वाले सदस्य अलग एकत्र होकर अपना मत देकर यह तय करेंगे कि प्रांत का विभाजन किया जाए या नहीं, दोनों भागों में विनिश्‍चित सादे बहुमत से होगा। प्रत्येक भाग यह भी तय करेगा कि उसे भारत में रहना है या पाकिस्तान में? पश्‍चिमोत्तर सीमा प्रांत में और असम के सिलहट जिले में जहां मुस्लिम बहुमत है वहां जनमत संग्रह की बात कही गई। दूसरी ओर इसमें सिन्ध और बलूचिस्तान को भी स्वतं‍त्र निर्णय लेने के अधिकार दिए गए। बलूचिस्तान के लिए निर्णय का अधिकार क्वेटा की नगरपालिका को दिया गया। 4 अगस्त 1947 को लार्ड माउंटबेटन, मिस्टर जिन्ना, जो बलू‍चों के वकील थे, सभी ने एक कमीशन बैठाकर तस्लीम किया और 11 अगस्त को बलूचिस्तान की आजादी की घोषणा कर दी गई। विभाजन से पूर्व भारत के 9 प्रांत और 600 रियासतों में बलूचिस्तान भी शामिल था। हालांकि इस घोषणा के बाद भी माउंटबेटन और पाकिस्तानी नेताओं ने 1948 में बलूचिस्तान के निजाम अली खान पर दबाव डालकर इस रियासत का पाकिस्तान में जबरन विलय कर दिया। जूनागढ़, हैदराबाद, भोपाल, त्रावणकोर और कश्मीर का विलय भारत में बाद में हुआ। सबसे बाद में गोवा, पुदुचेरी, सिक्किम आदि राज्यों का विलय हुआ।ALSO READ: 15 अगस्त: स्वतंत्रता दिवस पर पढ़ें देशभक्ति से भरे 23 दमदार फिल्मी डायलॉग्स, सुनकर होगा गर्व