उमरिया हिरनिया हो गई, देह इन्द्र- दरबार।
मौसम संग मोहित हुए, दर्पण-फूल-बहार॥
शाम सिंदूरी होंठ पर, आंखें उजली भोर।
भैरन नदिया सा चढ़े, यौवन ये बरजोर॥
तितली झुक कर फूल पर, कहती है आदाब।
सीने में दिल की जगह, रक्खा लाल गुलाब॥
रहे बदलते करवटें, हम तो पूरी रात।
अब के जब हम मिलेंगे, करनी क्या-क्या बात॥
मन को बड़ा लुभा रही, हंसी तेरी मन मीत।
काला जादू रूप का, कौन सकेगा जीत॥
गढ़े कसीदे नेह के, रंगों के आलेख।
पास पिया को पाओगी, आंखें बंद कर देख॥
- मनोज खरे
Copyright 2025, Webdunia.com