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ब्रज की होली : विश्वभर में मशहूर है बरसाना की लठमार होली, ऐसा मनता है यहां होली का त्योहार

Different types of Holi Celebration | ब्रज की होली : विश्वभर में मशहूर है बरसाना की लठमार होली, ऐसा मनता है यहां होली का त्योहार
Happy Holi 2020
ब्रज में होली पर्व की शुरुआत वसंत पंचमी के दिन से ही हो जाती है। वसंत पंचमी के दिन ब्रज के सभी मंदिरों और चौक-चौराहों पर होलिका दहन के स्थान पर होली का प्रतीक एक लकड़ी का टुकड़ा गाड़ दिया जाता है और लगातार 45 दिनों तक ब्रज के सभी प्राचीन मंदिरों में प्रतिदिन होली के प्राचीन गीत गए जाते हैं। 
 
ब्रज की महारानी राधा जी के गांव बरसाने में होली से 8 दिन पहले फाल्गुन महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन लड्डूमार होली से इस प्राचीन पर्व की शुरुआत होती है। इसके बाद फाल्गुन महीने की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन से लठमार होली की शुरुआत होती है, जो कि होली का त्योहार खत्म होने तक लगातार चलती है। 
 
पूरे विश्वभर में मशहूर बरसाना की लठमार होली में (हुरियारिनें) महिलाएं, पुरुषों (हुरियारों) के पीछे अपनी लाठी लेकर भागती हैं और लाठी से मारती हैं। हुरियारे खुद को ढाल से बचाते हैं। इस लठमार होली को दुनियाभर से लोग देखने को आते हैं। 
 
लट्ठमार होली की शुरुआत होते ही यह स्वर गूंज उठते हैं 
 
फाग खेलन बरसाने आए हैं
होरी खेलन आयो श्याम आज याहि रंग में बोरौ री...
 
हुरिहारों को देखकर गोपियां न केवल पुलकित होती हैं बल्कि रसिया के स्वर गूंज उठते हैं...
 
गोपियां हुरिहारों से अपने नए फरिया और लहंगा पर रंग न डालने का जितना अनुरोध करती थी हुरिहार उतना ही उन पर न केवल रंग-गुलाल डालते बल्कि आनंद की अनुभूति करते। ऐसे में एक गोपी ने पहले तो दूसरी गोपी से कहा- 
 
नैनन में पिचकारी दई मोय गारी दई होरी खेली न जाय। 
 
और फिर उसकी सहेलियों ने अपनी लाठियों से हुरिहारों पर प्रहार शुरू कर दिया। गोपियां उचक-उचककर हुरिहार की लाठियों से पिटाई कर रही थीं तो हुरिहार चमड़े की ढाल से अपना बचाव कर रहे थे। कभी-कभी एक गोप पर दो या तीन गोपियां लाठियों से प्रहार करती है। कुछ समय बाद ही रंगीली गली में लट्ठमार होलियों के समूह बनते जाते हैं और यह दृश्य बड़ा ही मनोहारी दिखाई देता है। 
 
जहां उचक-उचककर गोपियां गोपों पर प्रहार करतीं वहीं गोप फिर भी मुस्कराकर हंसी-ठिठौली करते हैं। गोपियां बीच-बीच में दर्शकों को अपनी लाठी से कोचतीं तो उसके साथी इसका आनंद लेते। सूर्यास्त होने पर होली का समापन राधारानी की जय और नंद के लाला की जयकार से होता है तथा हुरिहारे इस पावन भूमि की मिट्टी को नमन करते हैं।

यह होली राधारानी के गांव बरसाने और श्रीकृष्ण जी के गांव नंदगांव के लोगों के बीच में होती है। बरसाने और नंदगांव के बीच लठमार होली की परंपरा सदियों से चली आ रही है। होली का ऐसा रोमांचक उत्सव देखते ही बनता है।