Holi 2025: हंसी ठिठोली के लिए होली पर टाइटल और गाली देने की अनूठी परंपरा
Fun and frolic on Holi 2025: होली पर नाच गाने, भांग, ताड़ी और ठंडाई की बातें तो बहुत होती है। करतब-प्रदर्शन और मेले ठेले भी बहुत देखे होंगे। फाग यात्रा और गेर या जुलूस भी बहुत गए होंगे, लेकिन क्या आपको पता है कि होली पर हंसी ठिठोली के लिए लोगों के व्यक्तित्व के अनुसार उन्हें टाइटल देने और कई जगहों पर गीतों के बीच गाली देने की परंपरा भी है।
टाइटल देना:
हालांकि यह एक ऐसी परंपरा है जो किसी कार्यालय या कमेटी में देखी जा सकती है। सभी लोगों को एक विशेष नाम दिया जाता है उनके स्वभाव के अनुसार। यह कुछ लोग मिलकर तय करते हैं कि किसे क्या नाम देना है। इसके बाद सभी ने नाम का पर्चा बोर्ड या दीवार पर चिपका दिया जाता है। कई जगहों पर तो सभी के कार्टून भी बनाए जाने लगे हैं।
होली पर गाली:
ऐसे कई होली गीत है जिनमें गालियों का उपयोग किया जाता है क्योंकि यह स्थान विशेष की परंपरा होती है। गीतों को अच्छी गालियों में पिरोया जाता है और कुछ इस प्रकार व्यंगात्मक तरीके से गाया जाता है कि सुनने वाले को मजा आता है। सभी ये सुनकर मस्ती, हंसी और ठिठोली करते हैं। ऐसे गीत लोगों को भीतर तक गुदगुदी करते हैं। ऐसी परंपरा खासकर वाराणसी, मिथिलांचल, कुमाऊं, राजस्थान, हरियाणा में होली पर गाली की अनोखी परंपरा है।
लोग गालियों और गीतों के जरिए अपनी भड़ास निकालते हैं। जैसा प्रदेश, वैसे गीत और वैसी ही वहां की गालियां होती हैं। काशी की होली पर गालियों मे भी संस्कार देखने को मिलता है। यहां होली पर गालियां मनभावन लगती हैं। आपने वो फिल्मी गीत तो जरूर सुना होगा– आज मीठी लगे है तेरी गाली रे। जी हां, होली पर कुछ कुछ ऐसा ही नजारा आम होता है। यहां के गाली कवि सम्मेलन की काफी प्रसिद्ध हैं। आमतौर पर हुड़दंगी होली खेलने के बाद कवियों की महफिल जमती है। और गालियों के साथ शुरू हो जाते हैं हंसगुल्ले।
काशी के बाद बिहार के मिथिलांचल में मैथिली ऐसी भाषा है, जो अपनी मिठास और मृदुलता के लिए विख्यात है लिहाजा यहां जब होली पर गालियां दी जाती हैं तो पहली नजर में पता ही नहीं चलता कि किसी ने किसी को गाली भी दी है। अतिथियों का यहां गालियों से स्वागत होता है। होली के मौके पर आमतौर पर मिथिलांचल में ससुराल आए दामाद को खूब गालियां देने का रिवाज है।
इसी तरह कुमाऊं में होली के दिन हंसी ठिठोली के साथ एक दूसरे को चिढ़ाने की भी लंबी परंपरा है। राजस्थान, हरियाणा या फिर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गांवों में ही हंसी ठिठोली में गालियों को सुना जा सकता है।