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महीना है फाग का
होरी और रसिया की, मदमाती राग का आ गया सखी री, महीना है फाग का कलियों पर झूमते, गुनगुनाते गीत साज रहे सतरंगी, साज सखी बाग का। झूम रहीं खेतों में, गेहूं की बालियां सरसों की पियरी संग, जागे अनुराग का साज गई बौरों से अमुआ की डालियां वन-वन मदिराते महुआ की मांग का कोयलिया कूक सखी गूंज रहीं मधुरिम कण-कण उल्लास भरा ग्रामवन भांग का गरमाने लग गई सूरज की रश्मियां धर रहीं रूप सखी काम भरी आग का तन मन में भरने लागीं सखी मस्तियां रसरंग डूबने चुनरिया संग पाग का रंगों गुलालों से रसभीने अंगों पर प्यार मनुहार भरे सतरंगी दाग का।