टच थैरेपी
- नीता श्रीवास्तव
टेम्पो में सिर्फ एक व्यक्ति बैठा था। जगह भर जाने की आशंका एवं जल्द घर पहुँचने के लोभ में वे तुरंत बैठ गईं। अपने पास बिटिया को बैठाया, तब तक पतिदेव भी कुली को पैसे देकर आ गए। वे सबसे कोने में बैठ गए। सफर की थकान से थक कर चूर-चूर हो रही थीं। फिर भी एकदम सहज-शांत बैठी थीं वे। दरअसल उन्हें अब तक सज्जन ही मिले थे... तो अभद्रता की कल्पना ही नहीं थी। बड़ी उदारता से बस-ट्रेन या मेले-ठेले में पुरुषों द्वारा की जाने वाली धक्का-मुक्की की चर्चा को भी वे यह कहकर ठंडा कर देती हैं कि 'जान-बूझकर कोई नहीं छूता किसी को... भीड़भाड़ की वजह से हो जाती है ऐसी गलतफहमी।' लेकिन टेम्पो स्टार्ट होते ही वे समझ गईं, गलत जगह बैठ गई हैं वे। जितना ज्यादा वे सिमटती जा रही थीं, पास बैठा अधेड़ व्यक्ति उतना ही ज्यादा फैलता जा रहा था। कभी घुटना, कभी कोहनी-बाजू छुए जा रहा था। उन्हें क्या... किसी भी स्त्री को बुरी नीयत भाँपते देर नहीं लगती है। वे भी भाँप गईं और ज्यों ही अगले स्टॉप पर टेम्पो रुका। उन्होंने बिटिया और पति को भी उतरने को कहा और पुनः पहले पति को बिठाया और फिर बिटिया को एवं खुद कोने में बैठ गईं। अब भी एकदम सहज-शांत बैठी थीं वे। किंतु बैठक व्यवस्था परिवर्तित होते ही उस व्यक्ति की मुखमुद्रा भी परिवर्तित हो गई। इतनी देर से उनका अपमान कर वह प्रसन्न था, पर अपनी अनैतिकता पकड़े जाने के अपमान से वह तिलमिला उठा। बड़बड़ाने लगा- 'मेरे बैठने से ज्यादा ही तकलीफ हो रही है साब... तो हुकुम करो उतर जाऊँ?' वे चुप और अन्य पैसेंजर भी चुप तो उस खडूस की हिम्मत बढ़ गई। नेपथ्य में देख पुनः बोला- 'इतना ही मिजाज है तो खुद की गाड़ी में चलो ना...' सुनते ही सामने बैठी एक अन्य महिला लगभग चिल्ला पड़ीं- 'चोप्प... डिफेक्टिव पीस... अभी गाल पर ऐसा झापड़ रसीद करूँगी... कि भूल जाएगा सारी टच थैरेपी लेना।' महिला की दहाड़ सुनते ही वह गंदा आदमी ही नहीं, टेम्पो में बैठे अच्छे आदमी तक संभलकर बैठ गए।